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महाकालेश्वर मंदिर में होलिका पर्व के चलते गुरुवार काे सबसे पहले होली मनाई गई। संध्या आरती के पहले नैवेद्य कक्ष में श्री चंद्रमौलेश्वर भगवान, कोटितीर्थ कुंड परिसर में स्थित श्री कोटेश्वर, श्री रामेश्वर व सभा मंडपम् में विराजमान श्री वीरभद्र को गुलाल
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भगवान महाकाल काल के देवता, इसलिए सबसे पहले महाकालेश्वर के आंगन में होली पर्व
महाकालेश्वर काल के भी देवता हैं। वर्ष पर्यंत मनाए जाने वाले पर्व, त्योहार का प्रारंभ सबसे पहले महाकालेश्वर के आंगन से ही किया जाता है। मंदिर प्रबंध समिति सदस्य व पुजारी प्रदीप गुरु के अनुसार महाकाल पृथ्वी के अधिष्ठाता हैं, वे अनंत हैं। वे निराकार भी हैं, साकार भी हैं। वे देवों के भी देव हैं।
ऐसी मान्यता है कि होलिका अज्ञान व अहंकार को निरूपित करती है, इसलिए अपने जीवन को प्रगति की ओर ले जाना कर्मयज्ञ है, जैसे अग्नि समापन का प्रतीक है, वैसे ही अगले दिन होने वाला रंगोत्सव सृजन का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्त प्रहलाद की भक्ति के कारण होलिका का अंत हुआ, जो दर्शाता है कि सत्य- धर्म के पथ पर चलने वालो की विजय होती है।

होली पर शाम 6 बजे बाद सभी गेटों पर तालाबंदी, होलिका दहन के बाद प्रवेश
पर्व की पूर्व संध्या पर मंदिर में लोग होलिका दहन और दर्शन के लिए बड़ी तादाद में पहुंचने लगे। प्रशासन ने सभी गेट पर ताला लगवा दिए। अवंतिका द्वार पर भी शाम 6.30 बजे बाद प्रवेश बंद कर दिया। इससे लोग सभी गेटों पर जमा हो गए।
निर्माल्य द्वार के बाहर लोगों की भीड़ लग गई, जिनकी पुलिसकर्मी, सिक्युरिटी वालों से बहस भी होती रही लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था। होलिका दहन के बाद अधिकारी पूजन कर बाहर निकले तो सारे गेट खोल प्रवेश दिया गया। लोगों का कहना था कि महाशिवरात्रि के दूसरे दिन की भस्मआरती में भी ऐसी ही तालाबंदी की जाती है, जो इस बार होली पर भी शुरू कर दी गई।
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