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A young woman died of rare Stevens-Johnson syndrome in Indore | इंदौर में दुर्लभ स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम से युवती की मौत: 10 लाख में एक-दो को होती है ये बीमारी; परिजनों का आरोप- शुजालपुर में नहीं किया उचित उपचार – Indore News

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रितिका (22) का बुधवार को स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम बीमारी के कारण निधन हो गया।

इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में दुर्लभ और गंभीर स्किन डिसीज स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम से एक युवती (22) की बुधवार को माैत हो गई। यह सिंड्रोम 10 लाख में से एकाध व्यक्ति को प्रभावित करता है। शुजालपुर निवासी रितिका मीणा पिछले एक महीने से अधिक समय से इलाज करा रह

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रितिका बॉम्बे हॉस्पिटल में डॉ. मनीष जैन की देखरेख में इलाज किया जा रहा था। साथ में डर्मेटोलॉजिस्ट, हेमेटोलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन और इन्फेक्शियस डिजीज एक्सपर्ट्स भी शामिल थे।

मृतिका अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। परिवार ने आरोप लगाया कि बीमारी की शुरुआती स्थिति में उन्हें शुजालपुर में उचित उपचार नहीं मिला। उन्होंने बताया रितिका को पहले स्किन पर जलन हुई, जो बाद में फफोले में बदल गई। शुरू में शुजालपुर में स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया लेकिन दवाओं से कोई फायदा नहीं हुआ, इसके बाद हालत बिगड़ती गई।

उसके शरीर पर फफोले फैल गए और स्किन छिलने लगी। उसकी हालत खराब होते देख उसे 8 फरवरी को इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में एडमिट किया। तब उसमें दुर्लभ बीमारी का पता चला था। इसके बाद 14 फरवरी को छुट्टी दे दी गई, लेकिन उसकी हालत फिर से बिगड़ गई।

डॉक्टरों ने बताया कि

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शुजालपुर में ही उसकी हालत काफी खराब हो गई थी। डॉ मनीष जैन (आईसीयू), डॉ. अविनाश जैन (पल्मोनोलोजिस्ट), डॉ. अंकेश गुप्ता (इंफेक्शियस डिजीज एक्सपर्ट), डॉ. योगेश टटवाडे (प्लास्टिक सर्जन) और डॉ. विनय वोरा (हेमेटोलॉजिस्ट) सहित विशेषज्ञों की एक टीम ने उसे बचाने के लिए काफी प्रयास किया लेकिन बचाया नहीं जा सका।

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स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम बीमारी में स्किन पर ऐसे पड़ जाते हैं चकते।

स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम बीमारी में स्किन पर ऐसे पड़ जाते हैं चकते।

हर साल 10 लाख में एक-दो मामले डॉ. मनीष जैन के मुताबिक स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी है। हर साल 10 लाख में से एकाध को यह बीमारी होती है। इसमें स्किन और झिल्ली को प्रभावित करती है। इससे छाले, स्किन का छिलना आदि से दर्द होने लगता है। ऐसे में समय पर इसकी पहचान और तुरंत इलाज जरूरी है।

डॉ. जैन के मुताबिक एसजेएस सबसे आम तौर पर दवाइयों के रिएक्शन के कारण होता है। हालांकि कोई भी दवा एसजेएस को ट्रिगर कर सकती है। कुछ दवाएं अकसर इस स्थिति से जुड़ी होती हैं, इनमें एंटीबायोटिक्स, एंटीकॉन्वल्सेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं शामिल हैं। एसजेएस आमतौर पर बच्चों और युवा वयस्कों में देखा जाता है लेकिन किसी भी उम्र में हो सकता है।

स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम के लक्षण एसजेएस के शुरुआती लक्षण अक्सर फ्लू जैसे होते हैं। इसमें बुखार, गले में खराश, खांसी और जोड़ों में दर्द शामिल है। कुछ दिनों बाद, स्किन पर चकते और छाले होना शुरू हो जाते हैं। ये चकते शरीर पर कहीं भी दिखाई दे सकते हैं और गंभीर सनबर्न या खुले घावों की तरह महसूस हो सकते हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, स्किन छिलने लगती है। इस दौरान मुंह, होंठ, गले और चेहरे पर सूजन आ जाती है।

स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम का इलाज एसजेएस इलाज के लिए मेडिकल, स्किन, आई स्पेशलिस्ट्स की जरूरत होती है। मरीज की हिस्ट्री जानी जाती है। कई बार स्किन की बायोप्सी की जाती है। इसके इलाज के गहन देखभाल की आवश्यकता होती है। स्किन के नुकसान के कारण मरीज को IV लगाई जाती है। दर्द को कम करने और संक्रमण को रोकने के लिए ठंडी सिकाई, क्रीम और पट्टियों का उपयोग किया जाता है। शुरुआती दौर में इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी या हाई डोज स्टेरॉयड दिए जा सकते हैं। मरीज को अगर शक है कि किसी दवाई से रिएक्शन हुआ है तो उसे तुरंत बंद करना चाहिए।

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