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न स्कूल गए, झाड़ू लगाई, खेतों में मजदूरी की… और कभी 25 रुपये रोज कमाने वाला आज 80 लोगों को दे रहा रोजगार!

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Narayan Sarode Success Story: नासिक के नारायण सरोदे ने गरीबी और संघर्ष के बावजूद सफलता हासिल की. मजदूरी से शुरुआत कर, उन्होंने खुद का सेंट्रिंग काम शुरू किया और अब सरोदे बिल्डर्स के मालिक हैं, जो 70-80 लोगों को…और पढ़ें

झाड़ू लगाई, मजदूरी की और कभी 25 रुपये कमाने वाला आज 80 लोगों को दे रहा रोजगार

नासिक के नारायण सरोदे: संघर्ष से सफलता तक का सफर.

हाइलाइट्स

  • नारायण सरोदे ने गरीबी और संघर्ष के बावजूद सफलता हासिल की.
  • 25 रुपये रोज कमाने वाले नारायण अब 70-80 लोगों को रोजगार दे रहे हैं.
  • सरोदे बिल्डर्स नाशिक के सबसे बड़े बिल्डर्स में से एक हैं.

नासिक: हर किसी के जीवन में संघर्ष होता है और जो इसका सामना कर लेता है. वहीं, सफलता की ऊंचाइयों को छूता है. ऐसी ही कहानी है नासिक के नारायण सरोदे की. नारायण लाभू सरोदे मूल रूप से सिन्नर तालुका के घोडेवाडी गांव के रहने वाले हैं. नारायण के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उनके पिता भी मजदूरी करते थे. परिवार की मदद के लिए नारायण ने छोटी उम्र में ही पढ़ाई छोड़कर काम शुरू कर दिया.

पिता भेड़ें चराते थे
बता दें कि 1972 में उनके गांव घोडेवाडी में सूखा पड़ा, जिससे सभी लोग गांव छोड़कर शहर की ओर जाने लगे. नारायण का परिवार भी गांव छोड़कर पोहेगांव पोट चला गया. वहां उनके पिता भेड़ें चराते थे. उस समय 5 साल के नारायण भी अपने पिता के साथ जाते थे. बाद में उनके पिता ने नारायण को भेड़ें चराने की जिम्मेदारी सौंप दी और खुद गांव लौट गए. नारायण ने बताया कि उस समय उन्हें सालाना 150 रुपये मिलते थे.

कुछ समय बाद महंगाई बढ़ने लगी और नारायण को लगा कि यह पैसे पर्याप्त नहीं हैं. 1980 में नारायण नासिक पहुंचे. उनके पास सिर्फ एक साधारण सफेद शर्ट और हाफ पैंट थी. नासिक में उन्हें काम ढूंढने में काफी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उन्होंने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था और वे अनपढ़ थे.

नासिक के पाथर्डी गांव में एक किसान के खेत में उन्होंने रोजाना मजदूरी का काम शुरू किया. फिर उन्होंने उसी इलाके में एक कमरा किराए पर लिया. सुबह खेत में काम और रात में एक कंपनी में 7 रुपये रोजाना झाड़ू लगाने का काम किया.

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1990 में उन्होंने किसी के अधीन सेंट्रिंग का काम शुरू किया. धीरे-धीरे उन्होंने मजदूरी का काम भी सीख लिया. उस समय उन्हें 25 रुपये रोजाना मिलने लगे. सेंट्रिंग का काम करते हुए उन्होंने खुद का छोटा-मोटा सेंट्रिंग का काम लेना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने अपने भाई-बहनों को भी नाशिक बुला लिया.

आज 70 से 80 लोगों को रोजगार दे रहे हैं
कुछ सालों तक काम करके उन्होंने पैसे बचाए और खुद का कुछ शुरू करने के लिए जमीन लेकर घर बनाने का सपना देखा. 1997 में उन्होंने जमीन लेकर पहला घर बनाया और बिल्डर बन गए. घर बनाने के लिए वे दूसरों के अधीन काम करते रहे और कमाए हुए पैसे अपने बिजनेस में लगाते रहे. बिना किसी शिक्षा के उन्होंने सफलता की ऊंचाइयों को छू लिया और आज सरोदे बिल्डर्स नाशिक के सबसे बड़े बिल्डर्स में से एक हैं. आज नाशिक में उनकी कई बड़ी साइट्स चल रही हैं. 25 रुपये रोज कमाने वाले नारायण सरोदे आज 70 से 80 लोगों को रोजगार दे रहे हैं.

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