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खजुराहो नृत्य महोत्सव में पहली बार देश विदेश के लोक वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी लगाई है। इस प्रदर्शनी में 630 वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें प्राचीन लोक संगीत में उपयोग किए जाने वाले वाद्ययंत्रों को भी शामिल किया गया है। इनमें कई वाद्यय
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मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग ने वाद्ययंत्रों की यह प्रदर्शनी लगाई है। इस प्रदर्शनी का संचालन मप्र संस्कृति विभाग उज्जैन का त्रिवेणी संग्रहालय कर रहा है। खजुराहो में नृत्य महोत्सव के पास एक विशाल डोम में देश के 26 राज्यों और विदेश के 6 देशों के लोक वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी लगाई है। यह जो अद्भुत है। 20 फरवरी से शुरू हुई प्रदर्शनी 26 फरवरी तक चलेगी।
त्रिवेणी संग्रहालय उज्जैन के प्रभारी अशोक मिश्रा ने बताया कि उन्होंने अभी तक 1100 लोक वाद्य यंत्रों को ट्रेस किया है। इनमें से 630 वाद्य यंत्रों को संग्रहित कर लिया गया है। प्रदर्शनी में केरल की नागफनी नाग वीना, मणिपुर का राह कबुआई, उत्तर भारत का काछवा सितार, छत्तीसगढ़ का गुडुमबजा, दक्षिण भारत का तृसद, उड़ीसा का रंगीन मृदंग, महाराष्ट्र का नाशी ढोल, राजस्थान की घेरू ढपली, मालवा का तम्बूर और बुंदेलखंड के रमतूला जैसे वाद्ययंत्र को इस संकलन में शामिल किया गया है।
6 अन्य देशों के वाद्य यंत्र : प्रदर्शनी में विदेशी वाद्य यंत्रों को भी स्थान दिया गया है। इनमें ऑस्ट्रेलिया का डफ, रूस का डेडजी, श्रीलंका की शंखली, तिब्बत का कना ढोल, नेपाल का नरसिम्हा, अफ्रीका जम्बे ड्रम शामिल है।
संतूर : यह भारतीय संगीत का एक मुख्य तार वाद्य है, जिसका संगीत बहुत ही कर्णप्रिय होता है। इसे 100 तारों की वीणा के रूप में भी जाना जाता है। यह लकड़ी के एक चौकोर बक्से की तरह दिखाई देता है। इस पर धातु के तार बंधे होते हैं।
नेपाली सारंगी: लकड़ी से बने इस वाद्ययंत्र में चर्मपत्र और धातु का भी उपयोग किया जाता है। नेपाल का गंधर्व समुदाय इस वाद्य यंत्र का बजाता है। नेपाल में इसे संदेश या समाचार पहुंचाने के माध्यम के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
रबाब : इस मूलत: अफगानिस्तान का वाद्य यंत्र है। इसे अफगानिस्तान के लोक संगीत में बजाया जाता है। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर के चक्करी, सूफियाना कलाम और कश्मीर के अन्य लोक शैलियों में उपयोग किया जाता है।
रुद्र वीणा : इसका प्राचीनतम उल्लेख चौथी सदी के नारदकव्रत संगीत मकरंद में मिलता है। रुद्रवीणा में स्थापित एक सप्तक में 12 स्वर स्थानों के कारण भारतीयों ने ग्यारह रुद्र और एक महारुद्र के दर्शन किए। इसलिए इसे रुद्रवीणा कहा जाने लगा। इसमें दो बड़े तुम्बे रहते हैं और बांस के दण्ड से उन्हें जोड़ा जाता है।
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