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टीकमगढ़ के नगर भवन में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का समापन श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र के साथ शुक्रवार को हुआ। वृन्दावन निर्मोही आखाड़ा के महंत मदनमोहन दास महाराज ने कथा का वाचन किया।
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महाराज ने भगवान कृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह की कथा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण के पहले आठ विवाह प्रकृति के आठ रूपों से हुए। भोमासुर नाम के दैत्य ने 16,100 कन्याओं को कैद कर रखा था। नारद जी के कहने पर इन कन्याओं ने भगवान का भजन किया। बाद में भगवान कृष्ण ने भोमासुर से उन्हें मुक्त कराकर उनसे विवाह किया।

आरती के दौरान लगाया छप्पन भोग।
सुदामा चरित्र पर बोलते हुए महाराज ने कहा कि सुदामा जी निर्धन थे, लेकिन दरिद्र नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि असंतुष्ट व्यक्ति दरिद्र होता है, जबकि सुदामा जी एक संतुष्ट ब्राह्मण थे।
महाराज ने भक्तों को समझाया कि भगवान की कृपा पाने के लिए हृदय का निर्मल होना जरूरी है। इसके लिए निष्काम भाव से भगवान का नाम स्मरण करना चाहिए। कथा के समापन पर कथा यजमान एडवोकेट केके भट्ट ने सपत्नीक आरती की और महाराज का आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम के अंत में प्रसाद का वितरण किया गया।

महिलाएं भी हुई शामिल।
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