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मध्यप्रदेश के गवर्नमेंट प्रेस में दलालों का एक ऐसा रैकेट काम रहा है, जो किसी भी व्यक्ति का नाम बदलवाकर गजट यानी राजपत्र में पब्लिश करवा देता है। दैनिक भास्कर ने अपनी पड़ताल में ऐसे ही गिरोह को एक्सपोज किया है। जिसमें दलाल ने कुछ डॉक्यूमेंट और सात हजार
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बता दें कि सरकार के नियम-कानून राजपत्र में प्रकाशन के बाद ही लागू होते हैं। किसी व्यक्ति को सरकारी दस्तावेजों में नाम, सरनेम या जन्मतिथि बदलवानी है तो राजपत्र प्रकाशित होने पर ये सभी जगह मान्य होता है। इन्वेस्टिगेशन के पार्ट-1 में बताएंगे कि किस तरह एजेंट ने मृत व्यक्ति का नाम बदलवाकर गजट नोटिफिकेशन करवा दिया।
दलालों के इस रैकेट को एक्सपोज करने में रामखिलावन के रिश्तेदार ने भास्कर की मदद की। उसने रिश्तेदार के डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल करने की भी सहमति दी। पढ़िए रिपोर्ट…

प्रमाण पत्र में साफ दिखाई दे रहा है कि मृत्यु की तारीख 14 जुलाई 2021 है।
अब जानिए, किस तरह से रामखिलावन का नाम बदल गया
1. रिपोर्टर ने पहले दलाल से डील की भास्कर रिपोर्टर ने गवर्नमेंट प्रेस के सबसे बड़े दलाल दीपक पांडव से संपर्क किया। पांडव पिछले 10 साल से यहां दलाली का काम कर रहा है। उसके मोबाइल 922xxxx786 पर कॉल किया…
रिपोर्टर: दीपक पांडव बोल रहे हैं?
पांडव: हां, क्या काम है?
रिपोर्टर: नाम बदलवाने के लिए राजपत्र (गजट) में प्रकाशन कराना है।
पांडव: आपको मेरा नंबर किसने दिया?
रिपोर्टर: मेरे रिश्तेदार ने आपसे काम कराया था, उन्होंने नंबर दिया।
पांडव: ठीक है, डॉक्यूमेंट्स लगेंगे। सबकुछ मैं ही करूंगा तो ज्यादा पैसा लगेगा।
रिपोर्टर: ठीक है। कितना पेमेंट होगा?
पांडव: आप डॉक्यूमेंट भेजिए, फिर बात करते हैं।
2. दलाल को वॉट्सएप पर डॉक्यूमेंट दिए भास्कर रिपोर्टर ने 24 जनवरी को दस्तावेज दलाल दीपक पांडव को वॉट्सएप पर भेज दिए। मैसेज किया कि रामखिलावन का नाम बदलकर रामखिलावन गौड़ करना है। इसके बाद दीपक से रिपोर्टर की सिलसिलेवार वॉट्सएप चैटिंग हुई।
24 जनवरी को हुई चैटिंग….
रिपोर्टर: दीपक जी, मैंने आपको डॉक्यूमेंट भेज दिए हैं, कितना पेमेंट लगेगा।
पांडव: दूसरों से साढ़े सात हजार लेता हूं। आपसे 7000 रुपए लूंगा।
रिपोर्टर: ये तो ज्यादा है, कुछ कम हो सकता है क्या?
पांडव: इससे कम नहीं होगा, क्योंकि आपका सारा काम मैं ही करूंगा। आपको तो सिर्फ पेमेंट और डॉक्यूमेंट भेजना है।
रिपोर्टर: ठीक है।

3. दलाल को 7 हजार का पेमेंट किया दीपक ने पेमेंट के लिए रिपोर्टर के मोबाइल पर क्यू आर कोड भेजा। जिस पर सात हजार रुपए का पेमेंट कर दिया गया। कुछ घंटे बाद दीपक का वॉट्सएप मैसेज आया…
पांडव : भाईसाहब, इनकी वोटर आईडी कार्ड भेजो।
रिपोर्टर: अभी तो इतने ही डॉक्यूमेंट हैं।

4. नाम परिवर्तन का प्रोफार्मा बनाकर भेजा दलाल ने रिपोर्टर के मोबाइल पर नाम परिवर्तन का प्रोफार्मा बनाकर गलतियां चेक करवाने के लिए भेजा। उसने मैसेज किया कि प्लीज चेक कर कंफर्म कर दीजिए। रिपोर्टर ने ओके लिखकर भेज दिया।
24 जनवरी रात 9.04 बजे दलाल का रिपोर्टर के वॉट्सएप पर मैसेज आया। इसमें उसने बताया कि नाम बदलने के लिए विज्ञप्ति बनाकर अखबार में छपने के लिए भेज दी है। ये भी लिखा कि आप एक बार और चेक कर लीजिए। रिपोर्टर ने अपनी तरफ से ओके कर दिया ।

5. दलाल ने रामखिलावन के नाम से किए फर्जी दस्तखत नियम के मुताबिक, अखबार में प्रकाशित जाहिर सूचना के प्रोफार्मा को एक खाली कागज पर टाइप करना होता है। उसमें नया नाम और पुराने नाम का जिक्र होता है। इस पर आवेदक के हस्ताक्षर होते हैं। दलाल ने नए और पुराने नाम के कागज और नोटरी से लेकर सभी दस्तावेजों पर रामखिलावन के फर्जी हस्ताक्षर कर उन्हें सेल्फ अटेस्टेड किया। सारे दस्तावेज विभाग में जमा करा दिए।

दलाल ने प्रोफार्मा पर रामखिलावन के फर्जी दस्तखत किए।
6. राजपत्र में नाम बदलकर रामखिलावन गौड़ हो गया 31 जनवरी को मध्यप्रदेश के राजपत्र के पृष्ठ संख्या 296 पर (G-368) के रूप में रामखिलावन का नाम बदलकर रामखिलावन गौड़ हो गया। इसकी सूचना प्रकाशित हो गई। केवल सात दिन में नाम परिवर्तन हो गया। 31 जनवरी को ही दलाल दीपक पांडव ने रात 8:30 बजे राजपत्र में प्रकाशित सूचना की कॉपी रिपोर्टर के वॉट्सएप पर भेज दी।

3 प्वाइंट्स में समझिए, क्या है नियम और दलाल ने कैसे किया फर्जीवाड़ा 1. नियम: राजपत्र प्रकाशन के लिए नोटरी से स्टाम्प पेपर आवेदक के नाम से ही खरीदे जाते हैं। खरीदने के दौरान आवेदक की मौजूदगी और हस्ताक्षर जरूरी हैं।
फर्जीवाड़ा: दलाल ने आवेदक को देखा भी नहीं था। नोटरी से स्टाम्प खरीदने का काम उसी ने किया।
2. नियम: जो आवेदक होता है, वो सारे डॉक्यूमेंट सेल्फ अटेस्टेड करता है यानी उसी के हस्ताक्षर होते हैं।
फर्जीवाड़ा: रामखिलावन के सारे दस्तखत दलाल ने किए। उसे ये भी नहीं पता कि मृतक रामखिलावन पढ़ा-लिखा था या नहीं।
3. नियम: आवेदक ही अखबार में जाहिर सूचना का प्रकाशन कराता है।
फर्जीवाड़ा: दलाल दीपक पांडव ने खुद मैटर तैयार किया। उसे केवल क्रॉस चेक कराया। अखबार में जाहिर सूचना प्रकाशित कराई और दस्तावेज गवर्नमेंट प्रेस में जमा कर दिए।

पांडव बोला-फिक्स वाले का काम जल्दी होता है गजट प्रकाशित होने के बाद दलाल दीपक ने प्रेस के बाहर रिपोर्टर को मिलने के लिए बुलाया। दीपक ने बताया- फोन पर बात हुई थी, इसलिए थोड़ा विश्वास कम हो रहा था। अब मिलने के बाद किसी तरह का काम करने में झिझक नहीं रहेगी। हमारी अधिकारियों से सेटिंग है। सिर्फ दफ्तर में आकर फाइल जमा करवाते हैं, साइन करवा कर फ्री हो जाते हैं।
पेमेंट के बारे में पूछा तो बोला- ऑफिस में पेमेंट की कोई बात नहीं होती है। हर हफ्ते पेमेंट उनके घर पर जाकर देते हैं। अधिकारियों की सैलरी बढ़ जाती है, उनका ऊपर का खर्चा हम लोग निकालते हैं।
दीपक ने कहा- एक बार मैंने सारे अधिकारियों को कहा कि मेहनत मैं करता हूं। आप लोग केवल साइन करते हो। मुझे हर फाइल का 700 रुपए मिलता है। आपको 2000 से 2500 मिलते हैं तो अधिकारी बोले कि तू 700 रुपए भी मेरी वजह से ही कमा रहा है।
दीपक ने बताया- एक बार यूपी के मजदूर के पास कोई कागज नहीं थे, उसके सारे कागज मैंने ही तैयार करवाए हैं। किसी को जरूरत होती है तो मैं उसके कागज बनवा देता हू्ं। मेरी अंदर तक अच्छी पकड़ होने के कारण कागजों की जांच भी नहीं होती। पिछले कुछ सालों में मैंने कई लोगों का गजट नोटिफिकेशन में नाम दर्ज करवाया है।

दो केस स्टडी से समझिए कि आम आदमी कैसे परेशान होता है…
केस 1: अधिकारी ने साइड में रख दी फाइल, बोला कि 5-6 हफ्ते लगेंगे ये मामला रायसेन के टोडल सिंह अहिरवार का है। टोडल सिंह ने अपने भाई के नाम को बदलने के लिए गवर्नमेंट प्रेस में आवेदन दिया है। टोडल के मुताबिक, उसके भाई के आधार कार्ड में जसमन हरिजन लिखा है जबकि बाकी दस्तावेजों में उसका नाम जसवंत सिंह अहिरवार है।
टोडल ने बताया कि सारे दस्तावेजों के साथ फाइल विभाग में जमा करवा दी। पहले तो अधिकारियों ने इसे साइड में रख दिया। जब मैंने अधिकारी से पूछा तो बताया कि 5-6 हफ्ते का समय लगेगा। जब मैंने पूछा कि जल्दी कैसे हो सकता है, तो कहा- ‘एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे।’ उन्होंने कहा कि किसी का फोन आएगा। उससे बात करना, वो करवा देगा।
केस 2: दफ्तर के चार चक्कर लगाए, तब जवाब मिला- एक महीना लगेगा गवर्नमेंट प्रेस के बाहर भास्कर रिपोर्टर को छतरपुर के नीरज पाल मिले। नीरज ने बताया कि उनकी बहन का बचपन का नाम सोमवती पाल है, जबकि स्कूल में उसका नाम अश्वनी पाल लिखवाया है। उसका आधार कार्ड सोमवती पाल के नाम से बन गया। उसे नीट एग्जाम का फॉर्म भरना है।
स्कूल की मार्कशीट और आधार कार्ड में अलग-अलग नाम की वजह से वो फॉर्म नहीं भर सकती। मैंने उसका नाम बदलवाने के लिए 24 जनवरी को गवर्नमेंट प्रेस में आवेदन दिया। 29 जनवरी को सारे दस्तावेज जमा करा दिए। अखबार में जाहिर सूचना भी प्रकाशित हो चुकी है।
मुझे कहा गया था कि 7 दिन में बदले नाम का गजट नोटिफिकेशन हो जाएगा। अब तक कुछ नहीं हुआ है। 4 बार दफ्तर के चक्कर काट चुका हूं। अधिकारी साइन कर फाइल आगे ही नहीं बढ़ा रहे हैं।

5 पॉइंट्स में जानिए कि इसका गलत इस्तेमाल कैसे हो सकता है…
- गजट में नाम बदलवाने के बाद कोई भी व्यक्ति आधार और पैन कार्ड में अपना नाम बदलवा सकता है।
- इन दो डॉक्यूमेंट और गजट नोटिफिकेशन का इस्तेमाल कर पासपोर्ट भी बन सकता है। ऐसे में कोई भी अपराधी इसका फायदा उठाकर देश छोड़कर जा सकता है।
- गजट नोटिफिकेशन के आधार पर कोई भी व्यक्ति खुद को मृत व्यक्ति का वारिस बताकर बीमा क्लेम की राशि को हड़प सकता है।
- इस आधार पर खुद को मृत व्यक्ति का रिश्तेदार बताकर उसकी संपत्ति के वारिस के तौर पर हक भी जता सकता है।
- गजट नोटिफिकेशन के बाद सरकारी योजनाओं का फायदा भी उठाया जा सकता है।
क्या है सजा का प्रावधान: फर्जी दस्तावेज बनाने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 318, 318 (1), 336(2), 336(3), 338, 340(2) की धाराओं के तहत उम्र कैद की सजा हो सकती है।
ऐसे ही फर्जीवाड़े का एक मामला सामने आ चुका है ये मामला वेस्टर्न कोलफील्ड पाथाखेड़ा, बैतूल के कर्मचारी अमृत धोटे से जुड़ा है। धोटे ने मारुती धोटे के नाम पर कोल फील्ड में नौकरी हासिल की थी। जब उसके फर्जीवाड़े का पता चला तो वेस्टर्न कोलफील्ड ने धोटे को बर्खास्त कर दिया। धोटे ने ग्रेच्युटी की रकम हासिल करने के लिए अपने बदले नाम का गजट नोटिफिकेशन कराया।
इस मामले की शिकायत के बाद जब जांच हुई तो पाया गया कि धोटे ने 2021 में फर्जी तरीके से राजपत्र में नाम बदलवाया था। एमपी नगर थाने के सूत्रों के मुताबिक, गवर्नमेंट प्रेस के अधिकारी ने 11 जनवरी 2025 को धोटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए आवेदन दिया।

कल पढ़िए इस खबर का पार्ट-2…
कर्मचारी पैसे लेकर बदलते हैं गजट में नाम: गवर्नमेंट प्रेस का बाबू बोला- डॉक्यूमेंट-पेमेंट दो, बाकी टेंशन हमारी

गवर्नमेंट प्रेस में दलाल ही नहीं, बल्कि यहां के कर्मचारी भी पैसे लेकर गजट में नाम बदलवाने की पूरी गारंटी लेते हैं। भास्कर ने इस दफ्तर में काम करने वाले ऐसे 5 कर्मचारियों से गजट में नाम बदलवाने की डील की। कर्मचारियों ने कहा- आप डॉक्यूमेंट और पेमेंट दे दो, बाकी टेंशन हमारी। कल पढ़िए, भास्कर की कैसे हुई इन कर्मचारियों से डील?
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