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निजी स्कूल में हर कक्षा में शिक्षक जरूरी, सरकारी में 60 छात्रों पर 2 शिक्षक का नियम
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नतीजा– प्राइमरी स्कूल में एक साल में 15 हजार विद्यार्थी कम हो गए
हर साल 8 से 10 हजार एडमिशन घट रहे
सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की दर्ज संख्या लगातार घट रही है तो प्राइवेट स्कूलों में बढ़ रही है। इसकी वजह सरकारी नीति ही है। सरकारी स्कूलों में नियम है कि प्राइमरी में कक्षा-1 से लेकर 5वीं तक यदि विद्यार्थियों की दर्ज संख्या 60 है तो उन्हें पढ़ाने 2 शिक्षक ही रहेंगे। इसके चलते ऐसे स्कूलों में एक साथ 3 कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं।
ऐसे में शिक्षक जब किसी एक कक्षा के विद्यार्थी को पढ़ाते हैं तो बाकी के विद्यार्थी उनको देखते हैं। इसके चलते उनका पढ़ाई का स्तर गिरता है। नतीजतन अभिभावक अपने बच्चे का नाम कटवाकर प्राइवेट स्कूल में लिखवा लेते हैं। प्राइवेट स्कूल में हर कक्षा के लिए अलग शिक्षक मिलता है। यह नियम भी सरकार ने ही बनाया है। शासन की नीति है कि प्राइवेट स्कूल में हर कक्षा के लिए एक अलग शिक्षक नहीं हुआ तो उसकी मान्यता चली जाएगी। इसी नीति के चलते निजी स्कूलों में विद्यार्थी बढ़ रहे हैं और सरकारी में घट रहे हैं।
प्राइमरी में 1.23 लाख बच्चे थे, 15 हजार घटे
सागर जिले में प्राइमरी स्कूलों में सत्र 2023-24 में विद्यार्थियों की दर्ज संख्या 1 लाख 23 हजार 458 थी। जाे वर्तमान सत्र 2024-25 मंे घटकर 1 लाख 7 हजार 974 रह गई। सीधे तौर पर 15 हजार 484 विद्यार्थियों की कमी आई। साल दर साल घटते विद्यार्थियों की वजह से ऐसा हुआ।
पिछले सत्र में कक्षा-1 में 20 हजार 914 एडमिशन हुए थे, जो इस साल घटकर 12 हजार 210 ही रह गए। पहली कक्षा में 8 हजार 704 एडमिशन कम हुए। जबकि बीते 5 सालों में सागर में 30 हजार विद्यार्थी घट चुके हैं।
प्राइमरी में ऐसा है शिक्षकों की पदस्थापना का नियम
- 60 विद्यार्थियों पर 2 शिक्षक।
- 90 विद्यार्थियों तक 3 शिक्षक।
- 120 विद्यार्थियों तक 4 शिक्षक।
- 150 विद्यार्थियों पर 5 शिक्षक और 1 प्रधानाध्यापक।
- इसके अलावा प्रति 30 विद्यार्थियों तक एक-एक अतिरिक्त शिक्षक बढ़ेगा।
लाइव…. कक्षा-1, 2 और 3 के विद्यार्थी पढ़ रहे साथ
प्राइमरी स्कूल तिली के निरीक्षण में एक साथ 3 कक्षाओं के विद्यार्थी पढ़ते मिले। पूछने पर जानकारी लगी कि यह कक्षा 1, 2 और 3 के विद्यार्थी थे। तीनों ही कक्षाओं में हिंदी विषय पढ़ाया जा रहा था। पाठ्यक्रम अलग-अलग होने के कारण सबको कुछ न कुछ लिखने के लिए दे दिया गया था। यहां विद्यार्थियों की दर्ज संख्या 196 है। इस हिसाब से 5 शिक्षक हैं। बावजूद इसके एक साथ 3 कक्षाओं पर हेडमास्टर ने बताया कि हमारे यहां के दो शिक्षक अस्थाई व्यवस्था के तहत संकुल में हैं। एक शिक्षक अवकाश पर हैं। इसलिए मजबूरी में 3 कक्षाएं साथ लगाईं। अन्यथा पहली और दूसरी ही साथ लगती है। जबकि बाकी अलग-अलग।
एक्सपर्ट व्यू : शिक्षकों की कमी भविष्य के लिए खतरा
एडीआईएस के पद से सेवानिवृत्त हुए जेपी पांडे ने कहा लगातार शिक्षकों की कमी से सरकारी स्कूलों की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हाे सकती है। यह भविष्य के लिए बड़ा खतरा है। पूर्व प्राचार्य रामसजीवन मिश्रा ने कहा कि यह अलग ही दौर है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरे सिस्टम के लिए नुकसानदायक है। स्कूल बेहतर करने हैं ताे शिक्षक ताे हाेने ही चाहिए।
निजी स्कूलों की ऐसी फिक्र…खाता नंबर लेते हैं
सरकारी स्कूल में जहां 60 विद्यार्थियों तक दो शिक्षकों की व्यवस्था है,वहीं निजी स्कूलों की मान्यता के लिए नियम है कि हर कक्षा के लिए जो अलग-अलग शिक्षक अनिवार्य है, उसका खाता नंबर तक स्कूल संचालक को देना पड़ता है। इस खाते में शिक्षक को स्कूल से वेतन जाता है। ऐसा इसलिए ताकि निजी स्कूल संचालक फर्जी नाम न दे दें। यानी सरकार चाहती है कि निजी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई हो, हर कक्षा का शिक्षक अलग हो।
दर्ज संख्या कम होते ही कर देते हैं अतिशेष
इस साल स्कूल शिक्षा विभाग ने अतिशेष शिक्षकों की काउंसिलिंग की। ऐसे स्कूल जिनमें शासन द्वारा निर्धारित विद्यार्थियों की संख्या से ज्यादा शिक्षक मिले, उन्हें हटा दिया गया। प्राइमरी स्कूलों में जहां 90 तक दर्ज संख्या पर 4 या 60 तक पर 3 शिक्षक थे, उन्हें हटा दिया गया। जबकि पूर्व की स्थिति में ज्यादा शिक्षक होने से अलग-अलग कक्षाओं के लिए अलग-अलग शिक्षक पढ़ा रहे थे। अब दो या तीन कक्षाएं एक साथ लग रही हैं।
निजी स्कूलों में सुविधाओं पर पूरा फोकस, सरकारी में स्वयं उपलब्ध नहीं करा पा रहे
शिक्षक : निजी : हर क्लास के लिए एक शिक्षक अनिवार्य। सरकारी: 60 विद्यार्थियों तक दो ही शिक्षक पांचों कक्षा पढ़ाएंगे।
बिल्डिंग : निजी : एक कक्ष में 40 बच्चे से ज्यादा न बैठें। सरकारी: ऐसी कोई व्यवस्था नहीं।
दिव्यांगों को सुविधा : निजी : दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए रैंप, वॉशरूम अनिवार्य। सरकारी: शासकीय स्कूलों में यह सुविधा नहीं।
खेल मैदान : निजी : मान्यता के लिए खेल मैदान होना अनिवार्य है। सरकारी: अनेक सरकारी स्कूलों में मैदान नहीं हैं।
बाउंड्रीवॉल : निजी : विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। सरकारी: अनेक सरकारी स्कूलों में बाउंड्रीवॉल नहीं है।
फर्नीचर : निजी : सभी की बैठने फर्नीचर होने पर ही मान्यता। सरकारी: अधिकांश सरकारी स्कूलों में टाट-पट्टी पर ही बैठते हैं।
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