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New business of wildlife smugglers: | बाघ का बताकर 7 हजार में बेचे प्लास्टिक के दांत: आटे से बनाते थे जानवरों के प्राइवेट पार्ट, ताबीज में डालकर चमत्कार के दावे – Madhya Pradesh News

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जबलपुर की स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स ने डिंडोरी में एक ऐसे शिकारी गिरोह को पकड़ा है, जो बाघों के प्लास्टिक से बने दांत और आटे से एनिमल का प्राइवेट पार्ट बनाकर बेच रहा था। गिरोह के सदस्य बाजार में इसे असली बताकर 25 से 30 हजार रुपए में बेचते थे।

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वहीं जंगली सूअर और अन्य जानवरों के बाल को बाघ की पूंछ और मूंछ के बाल का ताबीज बनाकर हजारों में बेच रहे थे। इनके पास से 940 किलो गांजा भी पकड़ा गया है। अफसरों का कहना है कि गिरोह पहले से वन्यप्राणियों की तस्करी में शामिल रहा है।

आठ महीने पहले ही गिरोह ने असम से बाघों के नकली दांत मंगाए थे। फॉरेस्ट और पुलिस की टीम इनसे पूछताछ कर रही है कि ये गांजा और बाघों के नकली दांत कहां खपाने वाले थे। पढ़िए रिपोर्ट

9 फरवरी को डिंडोरी में पारदियों के डेरे से जब्त गांजा और तस्करी का सामान।

9 फरवरी को डिंडोरी में पारदियों के डेरे से जब्त गांजा और तस्करी का सामान।

पहले जान लीजिए क्या है मामला? स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स के जबलपुर रीजन के इंचार्ज राजा खरे बताते हैं, 27 जनवरी को महाराष्ट्र के चंद्रपुर से बाघ के शिकारियों को गिरफ्तार किया था। उनमें से एक फरार होने में कामयाब रहा। ये शिकारी मध्यप्रदेश के पारदी समुदाय से थे।

जो गिरफ्तार हुए उनसे पूछताछ में पता चला कि गिरोह के तार डिंडोरी के पडरिया कला के पारदी समुदाय के डेरे से जुड़े हैं। 9 फरवरी को इस डेरे पर एसटीएसएफ और पुलिस की एसटीएफ ने मिलकर छापामार कार्रवाई की।

बाघ के नकली दांत, गोह के नकली प्राइवेट पार्ट मिले तस्करों के डेरे से फॉरेस्ट विभाग को बाघ के 13 दांत, कुछ नाखून, वन्य जीवों के बाल मिले। साथ ही गोह का प्राइवेट पार्ट जिसे सामान्य भाषा में हत्था जोड़ी कहते हैं, वो भी मिला। बाघ और गोह संरक्षित प्राणियों की कैटेगरी में आते हैं।

जब एक्सपर्ट ने इसकी जांच की तो पता चला कि ये नकली है। गोह के प्राइवेट पार्ट को आटे से बनाया गया था। इसी तरह बाघ के दांतों को एक्सपर्ट ने जांचा तो साफ हो गया कि यह हार्ड प्लास्टिक के बने हैं। इसके अलावा एसटीएसएफ को पारदियों के डेरे से तलवारों के साथ प्राणियों को फंसाने वाला फंदा और करंट लगाकर मारने वाले तार के साथ 44 जिंदा प्रेशर बम भी मिले हैं।

राजा खरे बताते हैं कि पारदी समुदाय इन बमों को आटे की लोई में फंसाकर शिकार के अंदर रख देते हैं, जैसे ही जानवर शिकार को चबाता है तो बम फट जाता है और जानवर की मौत हो जाती है। साल 2018 में भी पारदियों के डेरे से 40 जिंदा बम मिले थे।

वन अधिकारी बोले- अंधविश्वास को देते हैं बढ़ावा वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक गिरोह के लोग असली शिकार भी करते हैं। इनके कॉन्टैक्ट बड़े तस्करों से हैं। साथ ही नकली दांत और नकली बाल बेचकर ये अंधविश्वास को मानने वाले लोगों को मूर्ख बनाते हैं। उनसे इसके एवज में मोटी रकम वसूल करते हैं।

इनके पास से बड़ी संख्या में ताबीज भी बरामद हुए हैं। जिसमें जंगली सूअर के बाल सहित अन्य वन्य प्राणियों के बाल भरकर बेचे जाते हैं। अंधविश्वास को मानने वालों को बताया जाता है कि ताबीज में शेर की मूंछ या पूंछ का बाल है जिससे ताकत मिलेगी।

पर्यावरण मंत्रालय की एसआईटी कर रही मानिटरिंग वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक गिरोह के तार मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड से लेकर असम तक फैले हैं। पूरे मामले पर केंद्र सरकार की पर्यावरण मंत्रालय की एसआईटी नजर रख रही है। एसआईटी के कोआर्डिनेशन के बीच महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और झारखंड में वन विभाग की टीम सर्चिंग में जुटी हैं।

अब जानिए कैसे मिला 940 किलो गांजा

एसटीएफ जबलपुर के एसपी राजेश भदौरिया बताते हैं, पहले सूचना वन्यप्राणियों के तस्करों से जुड़े होने की ही थी। हमने इनके डेरे पर नजर रखना शुरू की। पुलिस और फॉरेस्ट की 5 टीमों ने जैसे ही छापा मारा।डेरे के ज्यादातर पुरुष सदस्य जंगल में भाग गए थे। एक नाबालिग और एक सदस्य पकड़ा गया। इसके बाद इस गिरोह के अपराध करने और बचने के तरीके पर ध्यान दिया गया, तो तस्वीर बदल गई।

दरअसल, गुना से लेकर राजगढ़ तक सक्रिय पारदी समुदाय लूट के माल को को जमीन में गाड़ देता है। इस लीड पर आगे बढ़े और डेरे और आसपास खुदाई की तो 2–3 फीट खोदने पर गांजे के पैकेट मिले। इसके बाद जेसीबी से पूरे इलाके की खुदाई की तो 940 किलो गांजा बरामद किया।

जमीन में दबे गांजे के पैकेट्स को निकालते पुलिसकर्मी।

जमीन में दबे गांजे के पैकेट्स को निकालते पुलिसकर्मी।

बिहार से लाए गांजा एसटीएफ एसपी भदौरिया के मुताबिक गांजे की बाजार कीमत 3.5 करोड़ रुपए है। इसके अलावा तस्करों के डेरे से जो बाइक मिली हैं उनकी कीमत दो तीन लाख रुपए है। इस तरह बरामद माल की कुल कीमत करीब 4.5 करोड़ रुपए आंकी गई है।

गिरोह का जो सदस्य पकड़ा गया उससे पूछताछ में पता चला है कि ये वन्य प्राणियों का शिकार और तस्करी का ही काम करते थे। पिछले 7 महीने से गांजे की तस्करी कर रहे हैं।

कटनी से आकर जंगल में बसे, 12 साल तक जांच नहीं पुलिस की पड़ताल में पता चला है कि डिंडोरी से पहले पारदियों का डेरा कटनी में था। करीब 12 साल पहले ये लोग परिवार समेत डिंडोरी आए और जंगल के नजदीक बस गए। धीरे–धीरे इन्होंने अपने कागजात भी तैयार करा लिए । जांच में पता चला कि गिरोह के लोग मूलत: झारखंड के हैं और अपने ठिकाने बदलकर जांच एजेंसियों को चकमा देते हैं।

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