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इन दिनों अंधविश्वासियों की संख्या बहुतायत हो गई है। कारण यह है कि ये लोग वेद- शास्त्रों के विशेषज्ञों से दूर हैं। भारतीय सनातनी नियमों को मानना नहीं चाहते। बस बिना कुछ किए इनकी समस्या हल हो जाए, पर होता यह है कि अंधविश्वास में पड़कर ये और भी समस्याग्र
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।
ठगी-सी रह जाती है जनता
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि भीड़ देखकर नेता भी पहुंच जाते हैं। उनको यह मालूम होता है कि ये अंधविश्वास है पर उन्हें तो भीड़ से मतलब होता है। आजकल जनप्रतिनिधियों का रिवाज बन गया है कोई भी हो कैसा भी हो बस भीड़ लगनी चाहिए। इसी कारण अंधविश्वासियों का धंधा बहुत फलता-फूलता है। जब उनकी हकीकत सामने आती है तो नेता तो हाथ खींच लेते हैं पर जनता ठगी-सी रह जाती है। कई बार तो अंधविश्वास में आकर लोग अपने घर तक बेच देते हैं। अंधविश्वास में बच्चों की बलि चढ़ा देते हैं, पर लोगों की समझ में नहीं आता है।
अंधविश्वास के कारण छिन गई स्वतंत्रता
महाराजश्री ने एक दृष्टांत सुनाया- एक जंगल में दो गधे रहते थे। खूब भरपेट खाते-पीते और मौज करते थे। स्वतंत्र घूमते रहते थे। एक लोमड़ी को उनकी यह आजादी देखी नहीं गई। वह मुंह लटकाकर गधों के पास पहुंची। कहनी लगी- भैया में चिंता के मारे मरी जा रही हूं और तुम मौज कर रहे हो। पता नहीं किस समय कौन सा बड़ा संकट आ जाए। गधों ने पूछा- दीदी ऐसा क्या हुआ? भला बताओ तो। लोमड़ी बोली- मैं अपनी आंख से देखकर और कानों से सुनकर आई हूं कि तालाब की मछलियों ने बहुत बड़ी सेना बना ली है और वे तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करने वाली है। अब तुम उनका सामना कैसे करोगे? गधे असमंजस में पड़ गए। उन्होंने सोचा व्यर्थ में जान गंवाने से क्या लाभ? क्यों न हम यह स्थान छोड़कर कहीं और चले जाएं और वे गांव की तरफ चल पड़े। एक ईंट-भट्टे वाले ने घबराए हुए गधों के देखकर उनसे आने का कारण पूछा। फिर उनका खूब स्वागत किया। कहा- आप चिंता मत करो। हमारे यहां रहो। उन्हें बाड़े में बांध दिया और कहा, मछलियों से तो हम निपट लेंगे। तुम चिंता न करो। बस तुम्हें मेरा थोड़ा-सा काम करना पड़ेगा। ईंटों का बोझा ढोना पड़ेगा। गधों की घबराहट तो दूर हो गई, पर उनकी कीमत बहुत महंगी चुकाना पड़ी।
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