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Success Story: बोल-सुन नहीं सकती लेकिन सपनों को दी उड़ान…IFDI से हासिल की डिग्री, जानें आयशा की सक्सेस स्टोरी

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Agency:News18 Madhya Pradesh

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Inspiring Success Story of Ayesha: मध्यप्रदेश के खंडवा नगर की एक दिव्यांग बालिका ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए, एक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट से फैशन डिजाइनिंग का डिप्लोमा हासिल किया है.

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अपने इंस्टिट्यूट में आयशा डिजाइन बनाते हए

हाइलाइट्स

  • आयशा ने इंटरनेशनल फैशन डिजाइन इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा हासिल किया.
  • आयशा ने अपनी दिव्यांगता के बावजूद फैशन डिजाइनिंग में सफलता पाई.
  • आयशा की सफलता ने वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड में भी जगह बनाई.

मध्यप्रदेश के खंडवा नगर की एक दिव्यांग बालिका ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए इंटरनेशनल फैशन डिजाइन इंस्टीट्यूट से फैशन डिजाइनिंग का डिप्लोमा प्राप्त किया है. पेशे से शहर के एक दूध व्यवसायी की पुत्री आयशा बचपन से ही बोलने और सुनने में असमर्थ रही हैं, लेकिन उनके हौसले ने उन्हें कभी रुकने नहीं दिया.

दसवीं के बाद आई कठिनाइयां, लेकिन नहीं छोड़ा सपना
आयशा ने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की, लेकिन अपनी दिव्यांगता के कारण आगे की पढ़ाई छोड़नी पड़ी. हालांकि, उनका सपना फैशन डिजाइनर बनने का था. परिजनों ने उनका समर्थन किया और शहर के आनंद नगर स्थित एक फैशन इंस्टीट्यूट से संपर्क किया. इस इंस्टीट्यूट की हेड ने इस चुनौती को स्वीकार किया और आयशा को सिखाने के लिए पहले स्वयं साइन लैंग्वेज सीखी. इसके बाद उन्होंने एक साल तक आयशा को फैशन डिजाइनिंग का प्रशिक्षण दिया.

मेहनत रंग लाई, अच्छे अंकों के साथ डिप्लोमा हासिल किया
आयशा ने अपने समर्पण और मेहनत से परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर डिप्लोमा हासिल किया. अब वे खुद एक फैशन इंस्टीट्यूट शुरू कर अपने जैसे विशेष बच्चों को यह हुनर सिखाने की योजना बना रही हैं.

माता-पिता और गुरु का सहयोग बना सफलता की कुंजी
आयशा के पिता ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हमें बेहद गर्व है कि हमारी बेटी ने यह मुकाम हासिल किया. हम उसके हर सपने को पूरा करेंगे और वह अब दूसरे दिव्यांग बच्चों को भी फैशन डिजाइनिंग सिखाएगी. हम सभी माता-पिता से कहना चाहेंगे कि वे अपने बच्चों का हौसला बढ़ाएं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.

आयशा बनीं मिसाल, वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड में बनाई जगह
आयशा बचपन से ही बोलने और सुनने में असमर्थ रही हैं, लेकिन उन्होंने अपनी कमजोरी को कभी अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया. समाज की जिम्मेदारी है कि विशेष बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें एक समान अवसर दें.

आयशा की इस सफलता ने वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड में भी जगह बनाई है, जो उनके संघर्ष और मेहनत की सच्ची पहचान है. यह कहानी न केवल दिव्यांग बच्चों बल्कि सभी के लिए प्रेरणा है कि अगर हौसला और मेहनत हो, तो कोई भी बाधा आपको अपने सपनों को पूरा करने से नहीं रोक सकती.

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बोल-सुन नहीं सकती लेकिन सपनों को दी उड़ान…IFDI से हासिल की डिग्री

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