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God leaves the arrogant people to their fate – Dr. Girishanandji Maharaj | इंदौर के शंकराचार्य मठ में नित्य प्रवचन: अहंकारियों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं भगवान- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

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किसी भी व्यक्ति को ईश्वर से प्रदत्त शक्ति, धन, बल, ज्ञान, प्राप्त होने पर यदि अहंकार आ जाए तो उसका पतन होने में देर नहीं लगती। अहंकारी व्यक्ति के भय के कारण, धनी व्यक्ति के धन के कारण, बलवान से रक्षा के लिए, विद्वान से ज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यक्

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने प्रवचन में रविवार को यह बात कही।

जब हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाया भीम

महाराजश्री ने एक दृष्टांत सुनाया- एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया था कि मैं बहुत बड़ा धनुर्धर हूं। भीम को अहंकार हो गया था कि मैं सबसे बलवान हूं। वे धर्मराज युधिष्ठिर के भाई थे, धार्मिक थे, इसलिए हनुमानजी को भेजकर भगवान ने उनका अहंकार भुला दिया। भीम एक बार कमल का पुष्प लेने जा रहा था, तब हनुमानजी रास्ते में बैठ गए। भीम ने हनुमानजी से कहा- वानर रास्ते से हट जाओ, आप वृद्ध हो, आपमें कोई बल नहीं है, इसलिए मैं कह रहा हूं। नहीं तो मैंने अपनी भुजाओं से बड़े-बड़े हाथी उठाकर फेंक दिए हैं। आपको लांघकर जाने में मुझे पाप लगेगा। हनुमानजी ने कहा भाई आप सही कह रहे हैं। मैं वृद्ध और निर्बल हूं। अपनी पूंछ हटाने में असमर्थ हूं। इसलिए आप ही मेरी पूंछ को हटा दीजिए। भीम ने प्रयास किया, हटाना तो दूर भीम उनकी पूंछ को हिला भी नहीं सका। उसका अहंकार टूट गया। वह विनम्र हो गया, नम्रतापूर्वक हनुमानजी के हाथ जोड़कर बोला- आप कोई महाशक्ति हैं, मुझे अपना परिचय दीजिए। तब हनुमानजी ने भीम को अपना असली रूप दिखाया। उसने हनुमानजी को प्रणाम किया और हनुमानजी से ज्ञान प्राप्त कर आशीर्वाद लिया और चला गया।

अर्जुन को भी हो गया था अहंकार

डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया इसी तरह एक बार अर्जुन जा रहा था, रास्ते में नदी मिली। नदी से बोला कि मेरा रास्ता छोड़ दे। तुम्हें पता नहीं मैं त्रिलोक का सबसे बड़ा धनुर्धर हूं। एक ही बाण में मैं तुझे सोख लूंगा। जब व्यक्ति अहंकारी हो जाता है, तो उसे हर कोई विरोधी लगने लगता है, कि यह जानबूझकर ऐसा कर रहा है। नदी ने कहा आप आगे चले जाइए, आपको रास्ता मिल जाएगा। जब अर्जुन उस तट पर आगे बढ़ा तो एक पत्थर की चोटी पर बैठे हनुमानजी मिले। उसने हनुमानजी से कहा क्या आपने पत्थर का सेतु बनाया है, हनुमानजी ने कहा- भगवान राम ने भी समुद्र पर पत्थर का सेतु बनाया था। अर्जुन कहने लगा- वे तो बडे़ धनुर्धर थे। उन्हें बाणों का सेतु बना लेना था। बेवजह पत्थर का सेतु बनाया। हनुमानजी ने कहा भाई, उनकी सेना में मुझसे भी बलशाली सैनिक थे, उनके भार से वह टूट सकता था। अर्जुन ने कहा ठीक है। मैं बाणों का सेतु बनाता हूं। इसे आप तोड़कर बताइए। यह टूटा तो मैं आपका शिष्य बन जाउंगा। नहीं टूटा तो आप मेरे दास बन जाओगे। हनुमानजी ने कहा जैसी आपकी इच्छा। अर्जुन ने बाणों का सेतु बना दिया। जैसे ही हनुमानजी उस पर चढ़े, सेतु टूट गया। अर्जुन ने हनुमानजी से क्षमा मांगी। हनुमानजी ने उसे अपना असली रूप दिखाया और कहा अर्जुन तुमने एक बहुत बड़ा अपराध किया है। इसके लिए मैं क्षमा नहीं कर सकता। तुमने अहंकार के वशीभूत होकर भगवान राम का उपहास किया। अर्जुन लज्जित हो गया। कहना लगा अब तो मैं इस संसार में रहने लायक भी नहीं और उसने आत्मदाह की अग्नि प्रज्ज्वलित कर ली। इसी समय भगवान कृष्ण प्रकट हुए और अर्जुन को समझाया। अर्जुन तुम धार्मिक हो तुम्हारा अहंकार तोड़ने के लिए मैंने हनुमानजी को भेजा। अब तुममें नम्रता आ गई है। इसलिए अब कभी अहंकार मत करना।हनुमानजी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- प्रभु आप मुझे राम स्वरूप में दर्शन करा दीजिए। कृष्ण बोले- आप द्वारका आइए, वहां वाटिका में रहिए। वहीं पर मैं तुम्हें अपने राम रूप से दर्शन कराउंगा। और वे अंतरध्यान हो गए। परिणाम यह हुआ कि अहंकार नहीं होने के कारण ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए और अहंकार होने के कारण दुर्योधन पराजित।

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