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पूरे देश में विजयादशमी पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के दहन की परंपरा है। लेकिन यह कम ही लोग जानते होंगे कि रावण के पुतले के जलने के बाद उसकी अस्थि यानी जली लकड़ी घर ले जाने की अनोखी रस्म भी कई लोग निभाते हैं। धन धान्य की प्राप्ति के लिए ऐसी र
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बैतूल के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में पिछले 67 साल से रावण कुंभकर्ण के पुतलों का दहन श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति करती आ रही है। यहां रावण दहन कार्यक्रम देखने के लिए हजारों दर्शकों की भीड़ जुटती है। अधिकांश लोग इस दहन को देखने और यहां होने वाली आतिशबाजी को देखने पहुंचते हैं। लेकिन सैकड़ों ऐसे लोग भी होते हैं जो इस मौके पर रावण के पुतले के दहन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लोगों को इंतजार होता है कि रावण के पुतले का दहन जल्द हो तो वे उसकी अस्थियां यानी पुतले की जली लकड़ियां बटोर लें।

जली लकड़ियों को बुझाकर घर ले जाते हैं रावण के पुतले के दहन के बाद लोग पुतले की जली लकड़ियां जिसमे बांस की कीमचिया व लकड़ियां होती हैं, को लोग जमीन पर रगड़कर बुझाते हैं। इन लकड़ियों को ठंडा कर उन्हें घर ले जाकर कुछ लोग पूजन कक्ष में रख देते हैं, तो कई लोग इसे घर के मुख्य हिस्से में सुरक्षित रख देते हैं। यही वजह है कि पुतला जलते ही दर्जनों लोग इसकी जली लकड़ी बटोरने में जुट जाते हैं। कोशिश रहती है कि पुतला राख बनने से पहले उसकी लकड़ी कब्जे में कर ली जाए।

यह है मान्यता… पुतला दहन के बाद लकड़ियां बटोरती गृहणी माधुरी पवार के मुताबिक रावण ज्ञानी पंडित था। शनि उनके पैर में रहते थे, देवी देवता ग्रह नक्षत्र उनके वश में थे, पर घमंड की वजह से उनकी मृत्यु हुई। ज्ञानी पंडित होने की वजह से और धन-धान्य से परिपूर्ण होने के कारण उनकी राख और लकड़ी को घर ले जाते हैं ताकि सुख संपत्ति बनी रहती है। धन की कमी नहीं होती ऐसी परंपरा है। क्योंकि रावण बहुत ज्ञानी थे और भगवान के हाथों मारे गए। इसलिए मान्यता है कि वह भगवान के धाम चले गए।
एक अन्य ग्रहणी अर्पिता सोनी ने बताया, उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि रावण दहन के बाद पुतले की जली लकड़ी घर पर रखने से सब कुछ अच्छा होता है। बैतूल में सिद्धिविनायक ज्योतिष संस्थान के निदेशक पंडित संजीव शर्मा बताते हैं कि इस तरह पुतले की लकड़ी ले जाने को लोग शुभ मानते हैं। हालांकि इसकी कोई धार्मिक या लिखित मान्यता नहीं है। यह परंपरागत चला आ रहा है। श्री शर्मा ने बताया कि आमतौर पर अस्थियों को घर लेकर नहीं जाता। क्योंकि रावण भगवान राम के हाथ मारा गया था और बहुत ज्ञानी था। उसकी अस्थियां प्रतीक के रूप में ले जाई जाती है। रावण में सिर्फ एक ही बुराई थी वह घमंडी था।
ऐसी भी मान्यता है कि घर में उसकी बुराई ना आए इसलिए भी जली हुई लकड़ियां घर ले जाई जाती हैं। श्री शर्मा ने कहा कि विजयादशमी पर हम रावण को नहीं बल्कि उस बुराई को जलाते हैं जो मनुष्य के बीच होती है, रावण प्रतीक मात्र है।

दीमक, कीटो, प्रेतात्माओं को भगाने अस्थियां का सहारा अशोक पवार बताते हैं कि रावण बुराई का प्रतीक है। इसकी लकड़ियां जो अस्थि स्वरूप होती हैं। उसे घर के दरवाजे पर रख दिया जाता है। इससे खराबी बलाएं अंदर प्रवेश नहीं करती। इसे सामने के दरवाजे पर रख दिया जाता है। जिससे नकारात्मक आत्मा घर में प्रवेश नहीं करती। ग्रहणी आशा चौधरी बताती हैं कि इससे घर में कॉकरोच नहीं होते। दीमक नहीं लगती। लकड़ी को ले जाकर वह बिस्तर के नीचे रख देते हैं। जिससे पूरे वर्ष कीट पतंगे घर में प्रवेश नहीं करते।
सुरेश सोनी बताते हैं कि लकड़ी को ले जाने पर घर में रोग और कीटाणु नहीं होते। उनके पूर्वजों से यह परंपरा चली आ रही है। सुभाष आहूजा बताते हैं कि शुरू से ही ब्राह्मणों की पूजा की जाती है। यह पुरातन काल से चली आ रही है। दुनिया में दो ही व्यक्ति हैं जो किसी के मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ सकते हैं। पहला ब्रह्मा जी और दूसरा रावण।

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