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Mother Harsiddhi is present near Lord Shiva in the form of Shakti | यहां नवरात्रि में जागरण करती हैं मां भगवती: नहीं होती शयन आरती,गिरी थी सती की कोहनी, 2000 साल से भी पुराना है हरसिद्धि मंदिर – Ujjain News

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हरस्तामाह हे चण्डी, संहृति दानवौ, हरसिद्धि रतो लोके नाम्ना ख्याति गामिष्यासि

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विश्व के चार पौराणिक नगरों में से एक अवंतिका या उज्जैन नगरी 51 शक्ति पीठ में से एक है। यहां विश्व का एकमात्र दक्षिण मुखी ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर रूप में विराजित है। इसके साथ ही सम्राट विक्रमादित्य की अवंतिका नगरी तांत्रिक सिद्ध पीठ हरसिद्धि मंदिर के लिए भी विख्यात है। शारदीय नवरात्र में ‘MP के देवी मंदिरों के दर्शन सीरीज में’ आज आपको दर्शन कराने जा रहे हैं उज्जैन के हरसिद्धि माता मंदिर के।

महाकाल मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर विराजित हैं मां हरसिद्धि। सप्त सागर में से एक रूद्र सागर के तट पर बना मंदिर 2000 साल से भी ज्यादा पुराना है। उज्जैन ही एकमात्र स्थान है जहां ज्योर्तिलिंग के साथ शक्ति पीठ भी है। इसे शिव और शक्ति के मिलन के रूप में भी देखा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के शरीर के 51 टुकडों में से यहां माता की कोहनी गिरी थी।

इसलिए नाम पड़ा हरसिद्धि चण्ड-मुण्ड नाम के जुड़वां राक्षसों का पृथ्वी पर आतंक था। एक बार दोनों कैलाश पर्वत पहुंचे। शिव निवास में माता पार्वती और भगवान शंकर विराजमान थे। द्वारपाल और नंदी ने उन्हें अंदर जाने से रोका। इस पर दोनों ने नंदी पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। क्रोधित होकर भगवान शिव ने मां चण्डी का स्मरण किया। देवी ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मां चण्डी से कहा- देवी तुमने इन दृष्टों का वध कर संसार को इनके आतंक से मुक्ति दिलाई है। अत: अब तुम भक्तों की हर मनोकामना, हर सिद्धि पूर्ण करने के लिए हरसिद्धि के नाम से महाकाल वन में विराजित होकर भक्तों के कष्ट हरो।

नवरात्रि में होते हैं मां हरसिद्धि के रजत मुखौटे के दर्शन।

नवरात्रि में होते हैं मां हरसिद्धि के रजत मुखौटे के दर्शन।

सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी माना जाता है कि इस मंदिर में किसी समय सम्राट विक्रमादित्य सिद्धि किया करते थे। आज भी कई तांत्रिक यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं। राजा विक्रमादित्य को यहां श्री यंत्र की सिद्धि मिली थी। राजा विक्रमादित्य ने इसी के बल पर पूरे देश पर राज किया और न्यायप्रिय राजा कहलाए। हर का कार्य सिद्ध करने वाली हर सिद्धि मूलतः मंगल शक्ति चंडी है।

विक्रमादित्य ने 144 साल शासन किया, 12 बार चढ़ाया शीश लोक कथाओं के मुताबिक विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12वें वर्ष में अपना सिर काटकर चढ़ाया था। उन्होंने 11 बार ऐसा किया। हर बार सिर वापस आ जाता था। लेकिन 12वीं बार सिर काटकर चढ़ाने पर वापस नहीं आया। इसे उनके 144 वर्ष के शासन का अंत माना गया। हरसिद्धि मंदिर में कुछ सिंदूर चढ़े हुए सिर रखे हैं। माना जाता है कि वे विक्रमादित्य के सिर हैं।

2000 साल पुराने 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभ हरसिद्धि मंदिर में 2000 साल पुराने 51 फीट ऊंचे दो दीप स्तंभ हैं। इसमें 1011 दीपक हैं। दीयों को शाम की आरती से पहले 6 लोग 5 मिनट में प्रज्ज्वलित कर देते हैं। पूरा मंदिर रोशनी से जगमग हो उठता है। इसमें 60 लीटर तेल और 4 किलो रुई लगती है। भक्तों की आस्था ऐसी है कि दीप प्रज्ज्वलित करवाने के लिए यहां दिसंबर तक वेटिंग है। दोनों दीप स्तंभों पर दीप जलाने का खर्च करीब 15 हजार रुपए आता है।

2000 साल से भी पुराने मंदिर में 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभ प्रतिदिन रोशनी से जगमगाते हैं।

2000 साल से भी पुराने मंदिर में 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभ प्रतिदिन रोशनी से जगमगाते हैं।

एक घंटे पहले शुरू हो जाती है तैयारी मंदिर में शाम 7 बजे आरती होती है। इसके पहले दोनों दीप स्तंभ पर दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए एक घंटे पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। आरती का समय होते ही 1011 दीयों को रोशन कर दिया जाता है। जब सभी दीप प्रज्ज्वलित हो जाते हैं, तो नजारा देखने लायक होता है। आरती के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं।

100 साल से जोशी परिवार कर रहा दीप स्तंभ को रोशन उज्जैन का रहने वाला जोशी परिवार करीब 100 साल से इन दीप स्तंभों को रोशन कर रहा है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की सफाई भी की जाती है। वर्तमान में मनोहर, राजेंद्र जोशी, ओम चौहान, आकाश चौहान, अर्पित और अभिषेक इस परंपरा को कायम रखे हैं। दीप जलाने के लिए 2500 रुपए का मेहनताना भी दिया जाता है, जो 6 लोगों में बांट दिया जाता है।

नवरात्रि में रोशनी से नहाया हरसिद्धि मंदिर प्रांगण।

नवरात्रि में रोशनी से नहाया हरसिद्धि मंदिर प्रांगण।

शक्ति पीठ बनने के पीछे ये है मान्यता शास्त्रों के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यहां पहुंचने पर माता सती को ये बात पता चली। माता सती को ये अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि के हवाले कर दिया।

भगवान शिव को ये पता चला, तो वे क्रोधित हो गए। वे सती का मृत शरीर उठाकर पृथ्वी का चक्कर लगाने लगे। शिव को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के अंग के 51 टुकड़े कर दिए। माना जाता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के टुकड़े गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। उज्जैन में इस स्थान पर सती माता की कोहनी गिरी थी। इस मंदिर का नाम हरसिद्धि रखा गया।

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