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अब सिर्फ डेंटिस्ट्री में ही नहीं बल्कि मेडिकल फील्ड में मोबाइल फोटोग्राफी जरूरी हो गई है। क्योंकि डॉक्यूमेंट, केसेस वर्चुअल प्रूफ रहते हैं। फोटोग्राफी से वर्क इम्प्रूवमेंट होता है। साथ ही स्किल डेवलपमेंट होता है। आपकी गलतियां आपको पता चलती है। लम्बे
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यह कहना है डॉ. आकाश अकिलवार (मुंबई) का। इंदौर में आयोजित इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरल इंप्लांटोलॉजिस्ट्स (ISOI) में उन्होंने इस बात पर खास जोर दिया। ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में उन्होंने बताया कि वे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर भी हैं और 13 साल से फोटोग्राफी कर रहे हैं।
बतौर डेंटिस्ट्री में 10 सालों से फोटोग्राफी कर रहे हैं। 7 साल से देशभर के डॉक्टरों को फोटोग्राफी सिखाते हैं। अब तक 2 हजार को सिखा चुके हैं। वे इम्प्लांट भी 17 सालों से कर रहे हैं और फोटोग्राफी पर डेढ़ सौ से ज्यादा वर्कशॉप कर चुके हैं।
अब इम्प्लांट तीसरा मजबूत विकल्प
डॉ. अकिलवार ने कहा कि इम्प्लांट लक्जरी होने के साथ लम्बे समय तक चलने वाला ट्रीटमेंट है। इसमें टाइटेनियम स्क्रू होते हैं। सर्जिकल पार्ट होता है। इसमें कैप बनाने की अलग टेक्निक्स होती है। लैब प्रोसेस होती है। इसके रिजल्ट 100% रहते हैं।
व्यक्ति के दूध के और पक्के दो तरह के दांत होते हैं लेकिन इम्प्लांट तीसरा मजबूत विकल्प है। इम्प्लांट में भी भोजन बहुत अच्छे से चबाया जा सकता है। यह जरूरी नहीं है कि टेढ़े-मेढ़े या सड़े दांत होने पर ही इम्प्लांट कराया जाए। अब तो बड़ी संख्या में सेलिब्रिटी सुंदरता के लिए इम्प्लांट करा रहे हैं।
भारत में इम्प्लांट बनाने वाली सिर्फ दो ही कंपनियां
डॉ. संदीप सिंह के मुताबिक भारत में हर साल 15 से 20 हजार डेंटिस्ट बन रहे हैं। यह दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है। नए डेंटिस्ट को ओरल हेल्थ से जुड़े अपडेट्स और नॉलेज की जरूरत है। डॉक्टर्स की संख्या के साथ ही मार्केट का साइज भी बढ़ गया है।
भारत में इम्प्लांट का साइज 10% हो गया है, जो किसी भी देश से ज्यादा है। अब टेक्नोलॉजी का उपयोग करके इम्प्लांट किया जाता है। अभी 30 इम्प्लांट कंपनियां काम कर रहे है, जो विदेशी हैं। भारत में इम्प्लांट बनाने वाली सिर्फ दो ही कंपनियां हैं।
ट्रेंड में है इम्प्लांट, 93 वर्षीय बुजुर्ग ने लगवाया
मुंबई से आए डॉ. सुश्रुत प्रभुदेसाई ने बताया कि आजकल लोग अपने लुक को लेकर काफी एक्टिव है। वे ब्रेसेस लगाने की जगह इम्प्लांट करवाना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पास 93 साल के एक बिजनेस टायकून आए थे। उन्होंने ब्रेसेस लगवाने की जगह इम्प्लांट लगवाया है।
कई पेशेंट हैं, जो पैसे बचाने के बारे में नहीं सोचते उनका मुख्य फोकस अपने लुक्स को बेहतर बनाना होता है। दांत आपके शरीर का मुख्य हिस्सा है। बिना दांतों के आप कुछ भी अच्छे से नहीं खा सकते। जब तक भोजन अच्छे से चबाएंगे नहीं तो आपको न्यूट्रिशन नहीं मिलेगा। इसके लिए स्वस्थ दांत जरूरी है। इस वजह से आजकल लोग इम्प्लांट करवाना पसंद करते हैं।
बॉलीवुड और हॉलीवुड स्माइल
साइंटिफिक चेयरमैन डॉ. शालीन खेत्रपाल और ऑर्गेनाइसिंग कमेटी के मेंबर डॉ.गगन जैसवाल ने कहा कि ग्लैमर वर्ल्ड में सभी अपनी स्माइल को लेकर बहुत सजग होते हैं। सेलिब्रिटी की स्माइल डिजाइन में बॉलीवुड और हॉलीवुड दो तरह के ट्रेंड हैं।
बॉलीवुड स्माइल में पूरे दांत दिखाई नहीं देते हैं जबकि हॉलीवुड स्माइल में पूरे दांत दिखाई देते हैं। यह अंतर ईस्ट और वेस्ट के जेनेटिक पैटर्न में अंतर के कारण प्राकृतिक रूप से होता है। पश्चिमी देशों में लोगों के दांत ज्यादा बड़े होते हैं जबकि भारत में छोटे।
ISOI के प्रेसिडेंट डॉ शरत शेट्टी ने कहा कि आज भी सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही डेंटल इम्प्लांट ट्रीटमेंट अफोर्ड कर पाते हैं। ओरल हेल्थ व्यक्ति के पूरे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। सरकार को देश में ही इम्प्लांट से जुड़े उपकरण बनाने में मदद करना चाहिए।
मॉडर्न किट से साइनस की गाइडेड सर्जरी
महाराष्ट्र से आए डॉ. राजेश जंबुरे ने बताया कि हम साइनस को भी लिफ्ट करना चाहते हैं, इसके लिए हड्डी और साइनस के बीच आर्टिफिशियल हड्डी डालते हैं। यह सामान्य फ्री हेंड सर्जरी में होती थी लेकिन अब आधुनिक किट से गाइडेड साइनस सर्जरी करते हैं। इसमें पहले मुंह के अंदर का माप लिया जाता है, इसकी डिजिटल प्लानिंग की जाती है। इसी प्लानिंग से प्रिंटेड गाइड बनकर आता है। इससे बिल्कुल सटीक जगह पर इम्पलांट होता हैं।
मरीज की बाइट सही होना जरूरी
डॉ. कोमल मजुमदार (मुंबई) ने बताया कि इम्प्लांट को लंबे समय तक बनाए रहने के लिए यह जरूरी होता है कि मरीज की बाइट सही है या नहीं। यदि बाइट बराबर नहीं तो इम्प्लांट फेल होने की संभावना रहती है। इसे देखने के लिए हम माप लेते हैं जिससे बाइट समझ में आती है।
तीन डिपार्टमेंट के कॉम्बिनेशन से होता है इम्प्लांट
डॉ. धुव्र अरोरा (दिल्ली) ने बताया कि नई हड्डी और टिशू बनाने में 50% मरीज की बॉडी और 50 प्रतिशत फॉरेन बॉडी का इस्तेमाल होता है। यदि मरीज अपने इम्प्लांट को अच्छा रखना चाहता है तो हर तीन या छह महीने में उसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
इससे मरीज का इम्प्लांट कभी खराब नहीं होगा। इम्प्लांट को लेकर भारत में जागरूकता की काफी कमी है। टीअर-1 और टीअर-2 शहरों में फिर भी काफी जागरुकता है। अगर एक दांत भी गिरता है तो वह डॉक्टर के पास आ जाते हैं, लेकिन गांवों में ऐसा नहीं है। जब उन्हें ज्यादा तकलीफ होती है तब ही वे डॉक्टर के पास जाते हैं।
ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ मनीष वर्मा ने बताया कि पहली बार शहर में हुई इस कांफ्रेंस ने सिर्फ डॉक्टर्स ही नहीं बल्कि आम जनता के बीच भी दांतों की देखभाल और इम्प्लांट्स के प्रति जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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