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लोकायुक्त ने एक पटवारी को 8 साल पहले ट्रैप किया था। उस पर 5 लाख की रिश्वत मांगने का आरोप था। ट्रैप करने की प्रक्रिया के तहत फरियादी और पटवारी के बीच रिश्वत को लेकर बातचीत हुई थी। जिसकी रिकॉर्डिंग भी थी। रिश्वत के रुपए देते समय भी फरियादी के पास वाइस
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फरियादी खुद अपने बयान से पलट गया। बोला कि उसने लोकायुक्त पुलिस को पटवारी द्वारा रिश्वत मांगने का आवेदन ही नहीं दिया था। उससे कोरे कागज पर साइन करवा लिए गए। इतना ही नहीं रिश्वत की बातचीत जो उसी ने रिकॉर्ड की थी, उसमें खुद की और आरोपी पटवारी की आवाज होने से भी इनकार कर दिया। मामले में कोर्ट ने आरोपी पटवारी और एक अन्य को बरी कर दिया है।
रिश्वत में ट्रैप होने से लेकर पटवारी के बरी होने तक की कहानी जानने से पहले पढ़िए पूरा मामला क्या है
विष्णु शिवाजी ने 7 जनवरी 2016 को लोकायुक्त कार्यालय में शिकायती आवेदन दिया था। जिसमें कहा था कि उसके पिता कन्हैया लाल शिवाजी के नाम से ग्राम धरावरा धाम, तहसील देपालपुर में करीब 11 बीघा जमीन है। पिता की डेढ़ साल पहले मौत हो चुकी है।
जमीन का दोनों भाइयों के बीच बंटवारा करने और 4 बहनों के हक त्याग करने का राजीनामा देने के संबंध में 1 जनवरी 2016 को पटवारी अनिल बांगर से ग्राम कलारिया स्थित प्राइवेट ऑफिस में मिला था। पटवारी अनिल बांगर ने इस काम के लिए 5 लाख रुपए मांगे थे।
पटवारी ने मोबाइल नंबर देते हुए कहा था रुपए की व्यवस्था करके फोन लगाकर आ जाना। मामले को जांच के लिए लोकायुक्त एसपी ने निरीक्षक युवराज सिंह चौहान को दिया था।

ऐसे किया था ट्रैप
लोकायुक्त की टीम 9 जनवरी 2016 की दोपहर में ग्राम कलारिया पहुंची। पटवारी ऑफिस से कुछ दूरी पर टीम रुक गई। आवेदक विष्णु पैदल-पैदल पटवारी के ऑफिस के अंदर गया। कुछ देर बाद वो बाहर निकला। उसने लोकायुक्त टीम को सिर पर हाथ फेर कर इशारा किया। तब टीम पटवारी के ऑफिस में दाखिल हुई।
उसने टीम को बताया कि पटवारी अनिल बांगर (उम्र 47 साल) के कहने पर रिश्वत मनोज चौधरी (45 साल) ने ली है। दोनों को बैठाकर लोकायुक्त टीम चंदन नगर थाने ले आई। फरियादी विष्णु ने लोकायुक्त को वाइस रिकार्डर सौंपा, जिसमें रिश्वत के लेनदेन के संबंध में बातचीत रिकॉर्ड हुई थी।
बाद में जब सील बंद लिफाफे में रिकॉर्डिंग रखी गई, तब फरियादी विष्णु ने ये बात मानी थी कि बातचीत में उसकी और पटवारी की आवाज है।

खुद की आवाज पहचानने से कर दिया मना
जब कोर्ट में फरियादी विष्णु पलट गया तो सरकारी वकील ने उससे सवाल पूछे। लोकायुक्त के मोबाइल से विष्णु और पटवारी के बीच रिश्वत की बातचीत हुई थी। तब फरियादी विष्णु ने पुष्टि की थी कि आवाज उसकी और पटवारी अनिल बांगर की है।
लेकिन कोर्ट में जब रिकॉर्डिंग सुनाई गई तो उसने कहा कि ये आवाज उसकी नहीं है। न ही पटवारी अनिल बांगर और मनोज चौधरी की है। रिश्वत देने के दौरान भी जो बातचीत हुई थी उसकी रिकॉर्डिंग सुनाने पर भी विष्णु पलट गया और खुद की आवाज पहचानने से मना कर दिया।
बचाव पक्ष ने ये तर्क दिया
– आरोपी पटवारी अनिल बांगर निर्दोष है उसे झूठा फंसाया गया है ।
– रिश्वत की राशि क्यों मांगी गई इसका कारण प्रमाणित नहीं हुआ है।
– ये भी प्रमाणित नहीं हुआ कि पटवारी के कहने पर रिश्वत की राशि मनोहर चौधरी ने ली।
– बिना नामांतरण के जमीन का बंटवारा संभव नहीं है। नामांतरण के लिए कोई आवेदन नहीं लगाया गया।
– आरोपी पटवारी के पास कोई आवेदन लंबित नहीं था। न ही हक त्याग व बंटवारा करने का उसके पास अधिकार था।
– रिकॉर्डिंग करने वाले व्यक्ति ने ही आवाज पहचानने से इनकार कर दिया है तो ऐसे सबूत पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
आवाज के सैंपल लेकर नहीं करवाई गई जांच
आरोपी पटवारी अनिल बांगर और फरियादी विष्णु की आवाज का वाइस सैंपल लेकर वैज्ञानिक परीक्षण भी नहीं कराया गया। जांच अधिकारी ने वाइस सैंपल के लिए दोनों आरोपियों को नोटिस दिए थे। लेकिन दोनों ने ही वाइस सैंपल देने से मना कर दिया था। लेकिन जांच अधिकारी ने वाइस सैंपल लेने के लिए कोई सार्थक कोशिश नहीं की। जांच अधिकारी कोर्ट के माध्यम से भी वाइस सैंपल के आदेश ले सकते थे। आवाज की वैज्ञानिक रिपोर्ट कोर्ट के सामने होती तो चीजें स्पष्ट हो जाती।

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