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पूर्व नपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह सलूजा।
गुना के पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष से 11 लाख रुपए की वसूली की जायेगी। उनके अलावा तत्कालीन CMO और नगरपालिका के दो सब इंजीनियर से भी वसूली होगी। सभी से 11-11 लाख रुपए की वसूली होगी। इन सभी ने मिलीभगत कर तय जगह से दूसरी जगह पार्क निर्माण का काम करा कर 44 ल
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बता दें कि वर्ष 2019 में कुछ पार्षदों ने कलेक्टर से शिकायत की थी। उनका आरोप था कि अमृत योजना के अंतर्गत नगरपालिका क्षेत्र के गोपालपुरा में एक पार्क स्वीकृत हुआ था। इसकी डीपीआर बनाई गई थी। पार्क निर्माण के लिए स्थल चयन, निर्माण की योजना, धनराशि के व्यय की व्यवस्थाएं की गईं। 87 लाख रुपए इसके लिए स्वीकृत हुए थे। योजना तैयार होने के बाद गुना नगरपालिका को भेज दी गई।
शिकायत में पार्षदों का आरोप था कि नगरपालिका ने गोपालपुरा में पार्क निर्माण न कर कैंट स्थित मुक्तिधाम के पास काम शुरू कर दिया गया है, जबकि शासन से गोपालपुरा में पार्क निर्माण के लिए योजना बनी थी। उनका आरोप था कि नपाध्यक्ष और नपा के अधिकारियों ने मिलकर मनमाने तरीके से कैंट मुक्तिधाम के पास काम शुरू करा दिया है। इस काम को रोका जाए और मामले की जांच की जाए। साथ ही नपा ने 44 लाख का भुगतान भी संबंधित ठेकेदार को कर दिया है। ये राशि भी वसूली जाए। तत्कालीन कलेक्टर के आदेश के बाद काम रुकवा दिया गया था। साथ ही मामले की जांच कराई गई।
कलेक्टर की जांच में यह सामने आया कि पार्क निर्माण गोपालपुरा में स्वीकृत हुआ था, लेकिन नगरपालिका ने अपनी मर्जी से जगह बदलकर दूसरी जगह पार्क का निर्माण शुरू करा दिया गया। 2 जनवरी 2020 को तहसीलदार ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष राजेंद्र सलूजा, CMO नगरपालिका पीएस बुंदेला और दो सब इंजीनियर हरीश श्रीवास्तव और आरएस गुप्ता को नोटिस जारी कर कहा कि चारों ने मिलकर पार्क निर्माण में 44 लाख रुपए का भुगतान करा दिया है। इसलिए 9 जनवरी 2020 तक चारों 11-11 लाख रुपए तहसीलदार न्यायालय में जमा करें।
आदेश के खिलाफ गए कोर्ट
सभी को वसूली के नोटिस मिले तो चारों कलेक्टर के आदेश के खिलाफ कोर्ट चले गए। उन्होंने 7 जनवरी 2020 को कोर्ट में परिवाद दायर कर कहा कि यह पूरी योजना राज्य शासन ने ही बनाई है। स्थल चयन से लेकर लेआउट, लागत राशि शासन ने ही तय की है। शासन ने त्रुटिवश कैंट मुक्तिधाम की जगह गोपालपुरा लिख दिया था। स्थल सुधार के लिए नगरपालिका ने स्थान दुरुस्ती के लिए राज्य शासन को पत्र भी लिखा था। उसके बाद ही कैंट मुक्तिधाम के पास पार्क निर्माण कराया गया। कलेक्टर ने जो आदेश किया है, वो आधारहीन है। गुना नगरपालिका ने गलत तरीके से भुगतान नहीं किया है। इसलिए कलेक्टर के आदेश पर स्टे दिया जाए। उन्होंने कलेक्टर, तहसीलदार, नगरपालिका के तत्कालीन CMO संजय श्रीवास्तव और नगरपालिका को पार्टी बनाया।
कोर्ट ने खारिज की स्टे की मांग
चारों के आवेदन पर लगभग चार वर्षों तक कोर्ट में सुनवाई चली। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 23 सितंबर 2024 को स्टे की मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह कहा कि “पक्षों के कथन और प्रस्तुत दस्तावेजों अनुसार केन्द्र सरकार की अमृत योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा नगरपालिका क्षेत्र में मरघट शाला को विकसित और सुन्दर बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अमृत योजना लागू की गई, जिस अमृत योजना के अंतर्गत गुना नगर में कैंट के पास मरघट शाला के बगल से शासकीय भूमि सर्वे क्रमांक 844/2 रकवा 3.249 पर पार्क निर्माण को राज्य शासन की ओर से प्रस्तावित किया गया था। परियोजना गुना नगर पालिका को भेजी गई और त्रुटिवश योजना में गोपालपुरा लिख दिया गया। जिस पर परिवाद लगाने वालों के द्वारा शासकीय धन का दूसरे मद में उपयोग किया गया है या नहीं, यह साक्ष्य का विषय है। किन्तु वादीगण के द्वारा शासकीय धन का उपयोग किया गया है और वसूली के संबंध में कलेक्टर गुना द्वारा तहसीलदार के पत्र दिनांक 2 जनवरी 2020 अनुसार आदेश पारित किया गया है। उक्त राशि शासकीय राशि है। ऐसी स्थिति में प्रथम दृष्टया मामला वादीगण के पक्ष में होना दर्शित नहीं होता है और वादी गण को अपूर्णीय क्षति होने की भी कोई संभावना नहीं है। ऐसी स्थिति में वादी गण के द्वारा चाही गई अस्थाई निषेधाज्ञा की सहायता वादीगण के पक्ष में जारी नहीं की जा सकती है। आता वादीगण की ओर से प्रस्तुत अवेदन पत्र अंतर्गत आदेश 39 नियम 1 व 2 अस्वीकार कर निरस्त किया जाता है।” कोर्ट में नगरपालिका की ओर से पैरवी एडवोकेट मनोज श्रीवास्तव ने की।
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