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प्रकृति भगवान की शक्ति है, जो सत, रज और तम इन तीनों गुणों से अलग है। वह भगवान की शुद्ध प्रकृति है। यह शुद्ध प्रकृति भगवान का सच्चिदानंद घन स्वरूप हैै। इसी को संधिनी शक्ति, संवित शक्ति, आल्हादिनी शक्ति और चिन्मय शक्ति आदि नामों से जाना जाता है। राधाजी
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ में अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ.. गिरीशानंदजी महाराज ने बुधवार को यह बात अपने नित्य प्रवचन में कही।
भगवान की शक्ति है प्रकृति
महाराजश्री ने कहा कि प्रकृति भगवान की शक्ति है, जैसे अग्नि में दो शक्तियां होती हैं, प्रज्जलन शक्ति और प्रकाशिका शक्ति। प्रकाशिका शक्ति अंधकार को दूर कर प्रकाश देती है या भय दूर करती है। प्रज्ज्वलन शक्ति या दाहिता शक्ति जला देती है, वस्तुओं को पकाती है, ठंड से बचाती है। ये दोनों शक्तियां अग्नि से अलग नहीं हैं और अभिन्न भी नहीं। भिन्न इसलिए नहीं है, कि वे अग्नि रूप ही हैं। इसलिए उन्हें अग्नि से अलग नहीं किया जा सकता। अभिन्न इसलिए नहीं है, क्योंकि अग्नि की दाहिका शक्ति कुंठित की जा सकती है। इसी तरह भगवान की जो शक्ति है, उसे भगवान से भिन्न और अभिन्न दोनों नहीं किया जा सकता। जैसे दियासलाई में अग्नि की सत्ता सदैव रहती है परंतु दाहिका शक्ति एक ही रहती है। इसी तरह भगवान समूचे देश, काल, वस्तु, व्यक्ति आदि में सदा रहते हैं, पर उनकी शक्ति छिपी रहती है। इसी शक्ति को यदि व्यक्ति अपने वश में करता है, तो भगवान प्रकट हो जाते हैं। जैसे दियासलाई का घर्षण करने से अग्नि प्रकट हो जाती है। जब तक भगवान अपनी शक्ति को लेकर प्रकट नहीं होते, तब तक भगवान हरदम रहते हुए भी नहीं दिखते हैं।
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