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Mahalaxmi resides in Maharashtrian families in Indore | इंदौर में महाराष्ट्रीयन परिवारों में विराजीं महालक्ष्मी: गौरी पूजन का तीन दिवसीय आयोजन, ज्येष्ठा, कनिष्ठा और उनके बालक की हुई स्थापना – Indore News

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महाराष्ट्रीयन परिवारों में महालक्ष्मी के रूप में गौरी पूजन का तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन मंगलवार को शुरू हुआ। भाद्रपद मास में शुद्ध पक्ष में अनुराधा नक्षत्र पर महालक्ष्मी के स्वरूप में महाराष्ट्रीयन परिवारों में पीतल, मिट्टी के मुखौटे, कागज पर चित्र बन

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महालक्ष्मी ने की थी दानवों से रक्षा

समाज के वरिष्ठ अरुण घोलप ने बताया कि कहा जाता है कि एक समय दानवों के अत्याचारों से भयभीत हुए देवतागण में उनकी स्त्रियों की रक्षा को लेकर भय का वातावरण था, तब देवताओं ने महालक्ष्मी की शरण में जाकर उनसे स्त्रियों की रक्षा के लिए गुहार लगाई, महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना की। महालक्ष्मी ने प्रसन्न होकर देवताओं को उनकी स्त्रियों की रक्षा का वचन दिया। इस प्रकार देवतागणों में महालक्ष्मी की जय-जयकार हुई I​​​​​​ घोलप ने कहा कि महाराष्ट्रियन परिवारों में इस घटना को स्त्री रक्षा, सम्मान से जोड़कर देखा जाने लगा और महालक्ष्मी के प्रति जुडी इस आस्था, विश्वास को तीन दिवस के धार्मिक आयोजन के साथ मनाने का संकल्प लिया गया। विघ्नहर्ता गणेश जी की स्थापना के तीसरे दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में उनकी ब्याहता बेटियों को पीहर में बुलाकर महालक्ष्मी की शरण में सदैव उनकी बेटियां प्रसन्न, सुरक्षित, सुहागन रहें, इस कामना के साथ महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाने लगी। वास्तव में महालक्ष्मी गणेश जी की माता पार्वती का दूसरा नाम है।

अलग-अलग परिवारों में परंपरा के अनुसार की जाती है पूजा

कुछ महाराष्ट्रीयन परिवारों में ज्येष्ठा-कनिष्ठा बहनों के रूप में गौरी के मुखौटों की पूजा की जाती है, तो कुछ परिवारों में एकल मुखौटे के रूप में पूजा की जाती है, वहीं अधिकांश कोकणस्थ परिवारों में जलाशय से 5, 7 या 11 कंकर लाकर उसे घर में गौरी पूजन के लिए रखे जाने की परंपरा भी है।

सोलह प्रकार से बनाई गई सब्जियां-चटनियों का भोग

पहले दिन ज्येष्ठा-कनिष्ठा के मुखौटों के साथ बाल गोपाल का मुखौटा भी घर आंगन के हर द्वार पर रखकर सुहागिनियों के साथ घर के सदस्यों के द्वारा यह बोला जाता है कि आज हमारे यहां महालक्ष्मी आई हैं वह भी सोने के पांव के साथ। इसके बाद इन मुखौटों को उनके लिए तैयार किए गए धड़ों पर रखकर साड़ी, बाल गोपाल को उसका ड्रेस पहनाकर शृंगारित, सुसज्जित किया जाता है। दूसरे दिन 11 सितंबर (बुधवार) को दोपहर के समय में ज्येष्ठा गौरी पूजन की महाआरती से पूर्व इन्हें विशेषरूप से शृंगारित करके पूरण की रोटी, कढ़ी, भजिए के साथ सोलह प्रकार से बनाई गई सब्जियां-चटनियों का भोग तैयार कर महाआरती में रखा जाएगा। इस दिन सायंकाल को श्रद्धा अनुसार परिचित, रिश्तेदार, पड़ोसी को बिना बुलावे के दर्शन के लिए आना होता है। ऐसे दर्शनाभिलाषियों को घर की विवाहित स्त्रियां हल्दी, कुंकू और पुरुष वर्ग इत्र लगाकर उन्हें प्रसाद देकर उनका महालक्ष्मी के दरबार में आने का स्वागत करते है। तीसरे दिन 12 सितंबर (गुरुवार) को सायंकाल का समय विसर्जन किया जाएगा। विसर्जन से पूर्व आरती करने के बाद इन मुखौटों को हिलाकर इनका विसर्जन कर दिया जाता है।

विसर्जन के पहले की गई कामना होती है पूरी

ऐसी मान्यता है कि विसर्जन से पूर्व महालक्ष्मी स्वरूप ज्येष्ठा-कनिष्ठा और बाल गोपाल के कानों में यदि कोई मन्नत पूरी होने की अभिलाषा की जाती है तो वह अवश्य ही पूरी होती है। महालक्ष्मी विसर्जन के बाद ससुराल से पीहर को लौटी ब्याहता बेटियों को भी हंसी-ख़ुशी उनके घर ससुराल भेज दिया जाता है, जिसे विदाई की बेला नाम दिया गया है, जहां ख़ुशी भी है और उदासी का माहौल भी देखने को मिलता है। वैसे महाराष्ट्रीयन परिवारों में महालक्ष्मी विसर्जन के बाद पांचवें या फिर सातवें दिन गणेश जी का विसर्जन करने की परंपरा भी है। इस मर्तबा पांचवे दिन सायंकाल से पूर्व गणेश जी का विसर्जन होगा।

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