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Darshan of 12 forms of Ganapati on Ganesh Chaturthi | गणेश चतुर्थी पर गणपति के 12 रूपों के दर्शन: उज्जैन-सीहोर में उल्टा स्वास्तिक से पूरी होती है मनोकामना; इंदौर में हीरे की आंख वाले बप्पा – Shivpuri News

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आज से 10 दिवसीय गणेशोत्सव शुरू हो रहा है। पूरे प्रदेश में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जा रही है। इस मौके पर दैनिक भास्कर आपको उन 12 गणेश मंदिरों के दर्शन करा रहा है, जहां सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती हैं। मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामनाएं भी

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सीहोर के विक्रमादित्य कालीन चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते हैं। ग्वालियर के अर्जी वाले गणेश जी को राजस्थान से आए मोटी बूंदी के लड्‌डू का ही भोग लगता है। नर्मदापुरम के बाचापानी बनखेड़ी में तिल गणेश धाम में दाहिनी ओर सूंड वाले बप्पा विराजित हैं।

आइए जानते हैं, प्रदेश के इन मंदिरों में गणेश उत्सव के दौरान कैसी रहेगी पूजन-दर्शन व्यवस्था…

मंदिर की खासियत : रक्षा सूत्र बांधकर या फिर उल्टा स्वास्तिक बनाकर भक्त मनोकामना करते हैं। कार्य पूर्ण होने पर रक्षा सूत्र छोड़ा जाता है। उल्टा स्वास्तिक सीधा बनाया जाता है। श्रद्धालु बच्चे की मनोकामना पूरी होने पर बच्चे के वजन के बराबर लड्डू अर्पित करते हैं।

मंदिर का इतिहास : देश का एकमात्र मंदिर है, जहां एक साथ तीन स्वरूप चिंतामन, इच्छामन और सिद्धि विनायक के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि तीनों प्रतिमाएं भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण द्वारा स्थापित की थी। परिसर में एक प्राचीन बावड़ी स्थित है।

जानकारी : पं. जयंत पुजारी के अनुसार।

मंदिर की खासियत : गणेशोत्सव के दौरान 10 दिवसीय मेला लगता है। सालभर हर बुधवार को एमपी समेत देशभर के श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मान्यता है कि मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाने से मनोकामना पूरी होती है। कामना पूरी होने पर सीधा स्वास्तिक बनाना होता है।

मंदिर का इतिहास : करीब 2000 साल पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने स्थापना की थी। मंदिर का नाम उन्होंने श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर रखा था। सिद्ध गणेश मंदिर होने के कारण शहर को सिद्धपुर कहा जाने लगा, लेकिन धीरे-धीरे सिद्धपुर से यह सीहोर बन गया।

जानकारी: पुजारी पृथ्वी वल्लभ दुबे के अनुसार।

मंदिर की खासियत : गणेश जी की आंखें हीरे से बनी हैं। गर्भगृह का द्वार, ऊपरी और बाहरी दीवार चांदी से बनी है। बुधवार-रविवार को बड़ी संख्या में लोग पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं।

मंदिर का इतिहास : औरंगजेब से सुरक्षा के लिए मूर्ति को एक कुएं में छिपा दिया गया था। 1735 में बाहर निकाला गया, तब अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का प्रबंधन भट्ट परिवार द्वारा किया जाता है।

जानकारी : पंडित अशोक भट्ट के अनुसार।

मंदिर की खासियत : मूर्ति चूना पत्थर, गुड़, ईंटों और देश के प्रमुख तीर्थ स्थानों की पवित्र मिट्टी और पानी के एक अनोखे मिश्रण से बनाई गई है। भगवान गणेश की विश्व की एकमात्र मूर्ति है, जिसमें सवा मन घी और सिंदूर चढ़ाया जाता है।

मंदिर का इतिहास : मंदिर का निर्माण पं. नारायण दधीच ने तीन साल में कराया था, जो 17 जनवरी 1901 को पूरा हुआ था। मूर्ति 25 फीट ऊंची और 14 फीट चौड़ी है।

जानकारी : पंडित धनेश्वर दधीच के अनुसार।​​​​​

मंदिर की खासियत : गणेशोत्सव में 50 से 60 हजार लोग पहुंचते हैं। गणेश जी की मूर्ति जागृत अवस्था में हैं। भक्त उन्हें श्रीजी के नाम से भी पुकारते हैं। मंदिर में दर्शन करने से इच्छापूर्ति होती है। कन्याओं को मनचाहा वर पाने के लिए एक वस्तु भगवान को चढ़ानी होती है।

मंदिर का इतिहास : पोहरी किले के अंदर स्थित यह 287 साल पुराना मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खास है। मंदिर में मूर्ति की स्थापना ग्वालियर की जागीरदार बालाजी बाई शितोले ने साल 1737 में कराई थी।

जानकारी : मंदिर के पुजारी अजय खंडलकर के अनुसार।

मंदिर की खासियत : यहां गणेश जी पद्मासन में बैठे हैं। प्रतिमा बहुत ही दुर्लभ है। पूरे भारत में यहीं साथ में रिद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं हैं। तीनों प्रतिमाएं एक ही पत्थर में बनी हैं, उनके पीछे दो मोर भी बने हैं। यहां 7 और 11 बुधवार पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर का इतिहास : फूलबाग गुरुद्वारा के सामने विराजमान गणेशजी की प्रतिमा 350 साल पुरानी है। वर्षों से एक मोटे से पत्थर की पूजा होती आई है। 1980 में अचानक पत्थर ने चोला छोड़ दिया। उसके बाद प्रतिमा अस्तित्व में आई।

जानकारी : पुजारी राजेंद्र शर्मा के अनुसार।

मंदिर की खासियत : बिना दूब (घास) के पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। खास बात यह है कि श्रद्धालु पूजा-अर्चना के दौरान अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान गणेश को दूबा का भी भोग लगाते हैं। हर बुधवार को यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते हैं।

मंदिर का इतिहास : करीब 850 साल पहले पृथ्वीराज चौहान भिंड आए थे, तब उन्होंने गौरी तालाब का निर्माण कराकर किनारे पर 108 शिव मंदिर और अन्य मंदिरों का निर्माण कराया था। इन सभी मंदिरों के निर्माण से पहले यहां श्रीजी के विग्रह की स्थापना की गई थी।

जानकारी : पुजारी संजय नगाइच के मुताबिक।

मंदिर की खासियत : तिल चतुर्थी पर मेला लगता है। दाहिनी ओर सूंड वाली प्रतिमाएं बहुत बिरली हैं। ऐसी प्रतिमा एमपी में कहीं और नहीं है। हर जगह बायीं ओर सूंड वाली प्रतिमाएं ही मिलती हैं।

मंदिर का इतिहास : मान्यता है कि बाचावानी में यह मूर्ति अपने आप प्रकट हुई है, जो हर साल तिल चतुर्थी पर तिल बराबर बढ़ जाती है। राजा-महाराजाओं के समय में मूर्ति को महल ले जाना चाहा, लेकिन मूर्ति अपने स्थान से हिली भी नहीं।

जानकारी : पुजारी मनोहरदास बैरागी के अनुसार।

मंदिर की खासियत : विराजमान भगवान की शिला को कल्कि स्वरूप कहा जाता है। भगवान श्री गणेश घोड़े पर सवार हैं, जिनके केवल ऊपरी हिस्से के ही दर्शन होते हैं। शेष भाग धरती के अंदर है। ऐसी मान्यता है कि यहां 40 दिनों तक लगातार दर्शन पूजन करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान को हर तीन माह में 25 किलो सिंदूर चढ़ाया जाता है। 32 मीटर की माला और 32 मीटर का वस्त्र पहनाया जाता है।

मंदिर का इतिहास : मंदिर की संस्थापक सुधा अविनाश राजे को भगवान ने सपने में दर्शन दिए। बार-बार उन्हें दर्शन देकर पूजा के लिए भगवान गणेश की स्थापना का आदेश दिया था। सपने में बताए हुए मार्ग से वे यहां पहुंचे और 4 सितंबर 1989 को भक्तों ने गीत सिंदूर लगाकर भगवान का पूजन किया। तब से लगातार यह सिलसिला जारी है।

जानकारी : पुजारी हिमांशु तिवारी के अनुसार।

मंदिर की खासियत : यहां दो गणेश प्रतिमाएं हैं। इसमें एक गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के साथ विराजमान हैं। इसके अलावा एक प्राचीन मूर्ति है, जिस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है। वहीं, मंदिर के द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। यहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में गणेशोत्सव के दौरान पहुंचते हैं।

मंदिर का इतिहास : मंदिर करीब 60 साल पुराना है। यहां पर सभी सिद्ध कार्य होते हैं। यहां पर गजानंद भगवान की एक प्राचीन मूर्ति है। मान्यता है कि यहां विराजित प्रतिमा जमीन से निकली थी। जिसके बाद 1996 में यहां पर मंदिर बनाने का काम शुरू हुआ।

जानकारी : पुजारी अजय दुबे के अनुसार।

मंदिर की खासियत : गणेश जी की सवा 11 फीट ऊंची खड़ी मूर्ति है। यहां जो मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है। मंदिर परिसर में श्रीराम दरबार, भोलेनाथ और हनुमान जी का भी मंदिर है।

मंदिर का इतिहास : गणेश जी की स्थापना 370 साल पहले की गई थी। यह स्थापना राजस्थान के जोधपुर के राजा रतनसिंह ने की थी। राजा ने अपने साथ कसारा समाज को मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी थी, तब से लेकर आज तक कसारा समाजजन ही मंदिर की देखरेख करते हैं। मंदिर के सामने पानी के तीन कुंड हैं। जब कुंड खोदा गया था तब पानी उकलता हुआ बाहर निकला था, इसीलिए इस क्षेत्र का नाम ऊंकाला रखा गया। इसी नाम से ऊंकाला खड़े गणेश मंदिर नाम रखा गया।

जानकारी : श्री राम मंदिर कसारा समाज ऊंकाला ट्रस्ट अध्यक्ष घनश्याम कसारा के अनुसार।

मंदिर की खासियत : मुंह में गुड़, लड्डू या पान खाते हुए दर्शन और पूजन का शास्त्रीय विधान है। श्रद्धालु आराधना के दौरान जो भी सामग्री मुंह में रखेंगे फल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होता है।

मंदिर का इतिहास : 10 साल पहले स्थापित किया गया। इस तरह की प्रतिमा तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के समीप है। उसी की तर्ज पर यह मंदिर बना है। तमिलनाडु का मंदिर 13वीं सदी का है। उच्छिष्ट गणपति के मंदिर देश में कम ही हैं।

जानकारी : मंदिर प्रमुख आचार्य पं. संदीप बर्वे के अनुसार।

  • इनपुट: उज्जैन से आनंद निगम, सीहोर से महेंद्र ठाकुर, शिवपुरी से कपिल मिश्रा, इंदौर से अभय शुक्ला, ग्वालियर से रामेंद्र परिहार, भिंड से पवन दीक्षित, नर्मदापुरम से धर्मेंद्र दीवान, जबलपुर से सुनील विश्वकर्मा, भोपाल से साकिब खान, रतलाम से केके शर्मा, खरगोन (सनावद) से अमित जोशी।

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