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You will be able to see the solar system during the day | दिन में देख सकेंगे सौरमंडल के नजारे: देश की छठी वेधशाला डोंगला में बनी, यहीं से तय हो रहा भारतीय मानक समय, 6 माह में तारामंडल भी बन जाएगा – Ujjain News

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डोंगला में एक करोड़ 40 लाख रुपए की लागत से नया तारामंडल भवन बनाया जा रहा है। इसमें एक साथ 50 लोग बैठकर सौरमंडल के नजारे देख सकेंगे। भवन का काम शुरू हो गया है। चार से पांच महीने में बनकर तैयार हो जाएगा। बिल्डिंग की लागत 25 लाख रुपए है। इसमें एक करोड़

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आचार्य वराह मिहिर न्यास के सचिव डॉ. रमन सोलंकी ने बताया कि डोंगला में एक टेलिस्कोप और लगाया जा रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के लोग और स्टूडेंट्स तारे देख सकेंगे, क्योंकि डोंगला में वर्तमान में जो टेलिस्कोप लगा है, वह सिर्फ रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स के लिए है। प्रकल्प अधिकारी घनश्याम रत्नानी ने बताया डोंगला में देश की छठी वेधशाला बनाई है।

इसके साथ ही नक्षत्र वाटिका विकसित की जा रही है। इसके पास में 27 नक्षत्र, 12 राशि, 9 गृह पर आधारित शिवलिंग स्थापना होगी। बड़े आंतरिक विज्ञान केंद्र के रूप में डोंगला को विकसित किया जा रहा है। यहां हेलीपैड बन चुका है। देश-दुनिया से आने वाले शोधार्थियों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी, जहां खगोलीय आधारित गणित और भौतिकी विज्ञान पर कार्य करेंगे।

बड़े आतंरिक विज्ञान केंद्र के रूप में विकसित हो रहा डोंगला

डॉ. सोलंकी ने बताया कि डोंगला से ही टाइम सेट किया जाएगा। डोंगला के समय को भारतीय मानक समय माना जाए। इसके लिए शोध कार्य होंगे। 1888 में ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) विकसित हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयास से डोंगला मीन टाइम (डीएमटी) भारतीय मानक समय निर्धारित होगा।

भारत के वरिष्ठ वैज्ञानिक काल निर्धारण करने आने लगे हैं। 21 जून को 12 बजकर 28 मिनट पर सूर्य की लंबवत किरणें जमीन पर गिरती हैं। इस समय ज्योतिषाचार्य, खगोलविद, भूगोलवेत्ता, इतिहास वेत्ता और पुरातत्वविद एकत्र होते हैं। यहां विद्वानों का जमघट लगता है, जो शोध कार्य के लिए अग्रसर होते हैं।

21 जून को लंबवत पड़ती सूर्य की किरणें

21 जून को यहां बादल आ जाते हैं। बूंदाबांदी होती है, लेकिन 12 बजे सूर्य की किरणें आ जाती है। यह नजारा देखने के लिए ग्रामीणजन भी आते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि 100 वर्षों से यही नजारा देखने को मिल रहा है। इस स्थान की खोज पद्मश्री विष्णुश्रीधर वाकणकर ने की थी।

उन्होंने बेंगलुरु की एक्स्ट्रनामिकल सोसायटी से उपग्रह से चित्र बुलवाकर इस स्थान की खोज की थी। सीएम डॉ. यादव ने भारत की छठी वेधशाला यहां बना दी। वेधशाला में शंकु यंत्र, भित्तीय यंत्र, भास्कर यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र और सम्राट यंत्र बनाए गए हैं। शासक जयसिंह ने 1732 में जयपुर, दिल्ली, बनारस, मथुरा और उज्जैन में जंतर-मंतर यानी वेधशालाएं बनाए हैं। इसके बाद यह छठी वेधशाला बनी है। इस वेधशाला के बनने से भारतीय मानक समय निर्धारित हो गया है।

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