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जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य मोह के बंधन में जकड़ा रहता है। जन्म लेते ही मां की गोद का मोह, युवा अवस्था में पत्नी व बच्चों को मोह तथा वृद्धावस्था में भी घर परिवार के प्रति मोह के कारण मनुष्य उसी में उलझा रहता है तथा अपने आत्मकल्याण की चिन्ता नहीं करत
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उन्होंने पयुर्षण पर्व के पांचवें दिन कहा, पर्वाधिराज पर्युषण पर्व हमें संदेश देते हैं कि हम राग अर्थात मोह को छोड़े तथा परमात्मा की भक्ति की ओर अग्रसर हो। उन्होंने कहा कि संसार को प्रभु महावीर ने असार और दुखमय कहा है। जीवन में हमें जो सुख अनुभव होता है वह क्षणिक है वह स्थायी नहीं है। हमें विचार करना चाहिए कि जीवन में दुख का कारण क्या है? जब तक हमारा मोह कम नहीं होगा, हम सांसारिक रिश्ते नातों व भौतिक पदार्थों में ही उलझे रहेंगे। हमारा घर परिवार व भौतिक पदार्थों में इतना मोह होता है कि हम जीवन भर उससे निकल नहीं पाते हैं। जिस प्रकार पुष्प की सुगंधित रस के कारण पतंगा उसमें ही फंस कर प्राण गंवा देता है, उसी प्रकार हम भी राग में फंसकर अपना पूरा जीवन बर्बाद कर देते हैं। हमें कीड़े की तरह नहीं बल्कि कमल के पुष्प के भांति जीवन जीना चाहिए जो पूरे समय पानी में रहता है, लेकिन पानी की एक भी बूंद उस पर टिकती नहीं है।
रविवार को संवत्सरी का पर्व स्थानकवासी जैन समाज के द्वारा संवत्सरी का पर्व 8 सितम्बर, रविवार को मनाया जाएगा। संवत्सरी के पर्व के उपलक्ष्य में स्थानकवासी जैन समाज के श्रावक श्राविका 24 घण्टे का उपवास रखेंगे तथा अपना पूरा समय सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय व पोषण में लगाएंगे।
कोई भी प्राणी कर्म बंधन से मुक्त नहीं नई आबादी स्थित आराधना भवन मंदिर के हाल में आयोजित धर्मसभा में जैन संत योग रुचि विजयजी कहा कि जैन धर्म व दर्शन कर्म बंधन में विश्वास रखता है। अर्थात जो भी प्राणी जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा। कोई भी मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त नहीं है। यहां तक की तीर्थंकर भगवान को भी अपने कर्म बंधन के कारण कठोर उपसर्ग (दुख) सहन करना पड़ा। इसलिए जीवन में शुभ व अच्छे कर्म करो।
उन्होंने कहा कि भगवान आदिनाथ से लेकर प्रभु महावीर तक सभी तीर्थंकरों को भी कर्म बंधन के कारण उपसर्ग (दुख) सहन करना पड़ा था। आदिनाथ प्रभु ने दीक्षा ली और वे जब आहार के लिए निकले तो उन्हें निर्दोष गोचरी नहीं मिली, लोग उन्हें धन संपत्ति गोचरी में देने को तैयार थे लेकिन आहार नहीं दिया। भगवान आदिनाथ ने पूर्व भव में बैल के मूंह पर कपड़ा बांध दिया था। जिसके कारण बैल को भूखे रहना पड़ा, उसी पापकर्म के उदय में आने के कारण आदिनाथजी को 400 दिवस तक निर्दोष गोचरी (भोजन) नहीं मिला और उन्हें बिना आहार के ही रहना पड़ा।
कोई भी मनुष्य इस कर्म बंधन से मुक्त नहीं हैं, प्रभु महावीर को भी पूर्व भव में किए गए कर्म के कारण अपनी दीक्षा के बाद केवल ज्ञान प्राप्त होने तक साढ़े बारह वर्ष तक की अवधि में कई कठोर दुख सहन करने पड़े। इसका कारण भी कर्म बंधन ही था। इसलिए जीवन में सदैव अच्छे कार्य करें। दान पुण्य करो, राग द्वेष से बचो, लोभ क्रोध का त्याग करो तथा ऐसा कोई कार्य मत करो जो पापकर्म का बंधन करता हो।
75 श्रावक श्राविकाएं कर रहे हैं आठ तप जैन संत योग रुचि विजयजी की प्रेरणा से आराधना भवन श्रीसंघ से जुड़े कई परिवारों में तप तपस्याएं चल रही हैं। लगभग 75 श्रावक श्राविकाएं पयुर्षण पर्व के प्रथम दिवस से उपवास कर रहे हैं। शुक्रवार तक उनके सात उपवास की तपस्या पूर्ण हो चुकी है। संवत्सरी के उपवास के बाद इन सभी 75 श्रावक श्राविकाओं की आठ उपवास की तपस्या पूर्ण हो जाएगी। इन सभी तपस्वियों का सामूहिक पारणा 8 सितम्बर को प्रातः 7.30 बजे बाद फतेहपुरिया अग्रवाल धर्मशाला मे होगा। पारणे का धर्मलाभ लाभार्थी परिवारों के सौजन्य से जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्रीसंध ने लिया है।

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