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Ahilyabai had started giving rights to women, she used to do justice in such a way that both the parties remained satisfied | इंदौर में अभ्यास मंडल की व्याख्यानमाला: अहिल्याबाई ने की थी महिलाओं को अधिकार देने की शुरुआत, न्याय ऐसा करती थीं कि दोनों पक्ष रहते थे संतुष्ट – Indore News

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लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने शासनकाल के दौरान सबसे पहले महिलाओं को अधिकार देने की शुरुआत की थी। उनके द्वारा अपने शासनकाल में न्याय इस तरह से किया जाता था कि उस दोनों ही पक्ष संतुष्ट रहते थे।

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नागपुर की डॉ. मनीष कोठेकर ने अभ्यास मंडल की 63वीं वार्षिक व्याख्यानमाला में गुरुवार को यह बात कही। उनके संबोधन का विषय था भारतीय स्त्री का प्रतिमान देवी अहिल्याबाई। उन्होंने कहा कि आमतौर पर महिलाएं अपने जीवन में होने वाले आघात से विचलित हो जाती हैं, टूट जाती हैं । देवी अहिल्याबाई के जीवन पर तो बहुत सारे आघात हुए । इसके बावजूद हर आघात के बाद भी मजबूत होकर उभरी । उन्होंने हमेशा धर्मनिष्ठ होकर कर्तव्य के पालन को प्रमुखता दी है । उनके पिता ने उन्हें शिक्षा देने का जो सिलसिला शुरू किया था उस सिलसिले को ससुराल में आने के बाद ससुर के द्वारा बढ़ावा दिया गया । यही कारण है कि अहिल्याबाई को गणित, भूगोल, पत्राचार, प्रशासन और युद्ध कला का पूरा ज्ञान था।

अहिल्याबाई ने 28 साल तक राज किया

उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई ने 1725 से 1795 तक के अपने जीवन काल के दौरान खुद की क्षमता को बढ़ाना, अन्य महिलाओं को साथ लेकर चलना, समाज की गलत चीजों को न करना और समाज में परिवर्तन लाना जैसे प्रमुख कार्य किए हैं। उस जमाने में होलकर राजघराने में सती प्रथा का पालन होता था। अपने पति की मृत्यु के पश्चात ससुर के कहने पर देवी अहिल्याबाई सती नहीं हुई थीं और उन्होंने राजकाज को संभाला था। इस राजघराने में उन्होंने 28 साल तक राज किया। उस समय पर विधवा महिला को पति की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया जाता था। देवी अहिल्याबाई ने इस नियम में परिवर्तन कराया और विधवा महिला को भी पति की संपत्ति में अधिकार दिलाया। इसके साथ ही कोई भी विधवा महिला दत्तक के रूप में किसी को नहीं ले सकती थी। इस नियम में भी उन्होंने परिवर्तन कराया। भ्रष्टाचार की स्थिति तो उस समय पर भी बन गई थी। ऐसा मामला सामने आने पर उन्होंने कठोर कार्रवाई करने में भी कोई परहेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि देवी अहिल्याबाई के समय पर एक ब्राह्मण ने जाकर यह कहा कि उसके लिए अपनी बेटी की शादी करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि बहुत दहेज की मांग की जा रही है। इस स्थिति की जानकारी मिलने पर देवी अहिल्याबाई ने यह नियम बनाया था कि जो भी विवाह में पैसा देगा, जो भी पैसा लेगा और जो भी इस तरह का विवाह कराएगा, उन सभी को दंडित किया जाएगा ।

कर्ज की वसूली के लिए देते थे धरना

देवी अहिल्याबाई के शासनकाल के उदाहरण बताते हुए डॉ. कोठेकर ने कहा कि उस समय पर जो लोग राज्य सत्ता से कर्ज लेते थे, उन लोगों को उन्होंने किस्तों में कर्ज चुकाने की भी सुविधा दे रखी थी। उस समय पर रखब चंद्र चौधरी नामक व्यक्ति के द्वारा कर्ज लिया गया था लेकिन कर्ज चुकाया नहीं जा रहा था । उस समय पर यह परंपरा थी कि जो व्यक्ति कर्ज नहीं चुकाता था, राज दरबार के अधिकारी उसके घर के बाहर जाकर धरना देते थे। इस परंपरा के अनुसार राजघराने के अधिकारी चौधरी के घर पर पहुंचे और धरना देकर बैठ गए। उस समय पर चौधरी घर पर नहीं थे। घर पर उनकी पत्नी और बेटी ही थी। इस बात की जानकारी मिलने पर अहिल्याबाई ने नाराजगी जताई और निर्देश दिया कि यदि किसी घर में महिला अकेली है तो वहां पर जाकर कर्ज की वसूली के लिए अधिकारी धरना नहीं देंगे।

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथि का स्वागत नंदलाल मोगरा, अनिल भोजे ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. माला सिंह ठाकुर ने किया। आभार प्रदर्शन अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता ने किया।

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