[ad_1]
छत्रपति नगर के दलाल बाग में मुनि विनम्र सागर महाराज ने कहा कि मैंने आज एक लेख पड़ा, उसमें लिखा था कि साधु के दो काम होते हैं। एक है तप करना और दूसरा है श्रुत का अध्ययन करना। यहां श्रुत का मतलब होता है सुनना। तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक प्रखर विद्वान
.
उन्होंने कहा कि उपवास करने का नाम तप नहीं है, ये बाहरी तप है, अंदर के 12 प्रकार के तप है। साधु के मूल गुणों में उपवास नहीं है, बिना कृत,कारीत, अनुमोदना करते हैं वे साधु धन्य है। हो सकता है लेख लिखने वाले ने भूल से या आवेश में यह लिख दिया हो कि साधु के केवल दो ही कार्य होते हैं, तो उन्हें भूल सुधार कर लेना चाहिए। अपने कुल को शाकाहारी बनाना बड़ी बात नहीं है, मांसाहारी को शाकाहारी बनाना बड़ी बात है। हथकरघा के धागे से मोक्ष नहीं होगा, मंदिर निर्माण से भी मोक्ष नहीं मिलेगा, गोशाला, स्कूल, हॉस्पिटल खुलवाने से भी मोक्ष नहीं होगा। उद्देश्य मंदिर बनाने का नहीं है, मंदिर निर्माण के माध्यम से तुम्हारे पापों को कम करने की कोशिश की है। क्रियाओं में पाप हो सकता है, भावों में पाप नहीं है।

उन्होंने कहा कि प्रवचन में साधु दान, पूजा, मंदिर के जीर्णोद्धार का उपदेश नहीं देगा तो क्या करेगा ? आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने अपनी प्रज्ञा के माध्यम से अजैनों को भी जैन बनाया। नक्सलवादी एरिया में हथकरघा का सेंटर खुलवाकर कमाल कर दिया। पूरे वंश को ही शाकाहारी बना दिया। उन्हें णमोकार मंत्र बोलना सिखा दिया। आज प्रातः गुरुदेव के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के बाद गुरुदेव की आठ द्रव्यों से सभी श्रावक- श्राविकाओं ने पूजन की।
इस अवसर पर मनीष नायक,सतीश डबडेरा, सतीश जैन, आनंद जैन,कमल अग्रवाल, अमित जैन, शिरीष अजमेरा , राकेश सिंघई चेतक,आलोक बंडा , प्रदीप स्टील, भरतेश बड़कुल, रितेश जैन, राजेश गंगवाल आदि विशेष रूप से मौजूद थे। मुनि निस्वार्थ सागर महाराज भी मंच पर विराजित थे। दिगंबर जैन समाज सामाजिक संसद के प्रचार प्रमुख सतीश जैन ने बताया कि रोजाना सुबह 8.30 बजे से आचार्य श्रीजी की पूजन के बाद 9 बजे से मुनि श्रीजी के प्रवचन, दलाल बाग में हो रहे हैं।
[ad_2]
Source link



