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बेंगलुरू में इंटरेक्टिव सेशन के पहले फैक्ट्री का निरीक्षण करते सीएम डॉ मोहन यादव (फाइल फोटो)
ग्वालियर में तीसरी रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव होने के पहले औद्योगिक नीति और निवेश प्रोत्साहन विभाग ने हर जिले में फैसिलिटेशन सेंटर खोलने के निर्देश कलेक्टरों को दिए हैं। जिलों में निवेशकों को निवेश का सुपर माहौल बताने के लिए खोले जाने वाले इन सेंटर्स
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मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा हर जिले में फैसिलिटेशन सेंटर खोलने का फैसला लेने के बाद अब जिलों में कलेक्टरों को इसके निर्देश जारी कर दिए गए हैं। औद्योगिक नीति और निवेश प्रोत्साहन विभाग ने हर जिले में यह सेंटर खोलने और डिप्टी कलेक्टर या उससे सीनियर रैंक का राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी नोडल अधिकारी के रूप में पदस्थ करने के निर्देश जारी किए हैं। इसके अलावा जिला स्तरीय निवेश संवर्धन समिति के गठन और उसमें शामिल होने वाले अफसरों के साथ समिति और नोडल अधिकारियों के दायित्व भी तय कर दिए गए हैं। जिला स्तर पर निवेश को सुगम बनाने और निवेशकों को सही मार्गदर्शन देने तथा निवेश परियोजनाओं को क्रियान्वित कर स्थापित कराने के लिए जिला स्तर पर दी जाने वाली परमिशन, लाइसेंस और अन्य कार्यवाही को सेंट्रलाइज्ड किए जाने की व्यवस्था तय की गई है।
डिप्टी कलेक्टर या उससे सीनियर अफसर बनेगा नोडल अधिकारी
हर कलेक्टर कार्यालय में आसानी से आ जा सकने वाले स्थान पर इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन सेंटर स्थापित किया जाए। फैसिलिटेशन सेंटर वेल मेंटेन और आधुनिक होना चाहिए जहां इन्वेस्टर्स के सम्मान के साथ बैठने की व्यवस्था रहे। यहां कम्युनिकेशन के नए संसाधन भी उपलब्ध रखे जाएं। कलेक्टर इसके लिए जिले में पदस्थ डिप्टी कलेक्टर या उससे सीनियर अफसर के फैसिलिटेशन सेंटर का नोडल अधिकारी बनाएंगे।
नोडल अधिकारी की यह होगी जिम्मेदारी
- फैसिलिटेशन सेंटर में आने वाले निवेशकों की कलेक्टर के साथ बैठक कराना।
- निवेश के लिए आवश्यक सभी वैधानिक परमिशन, लाइसेंस का चिन्हांकन कर निवेशक को जानकारी देना।
- इन्वेस्टर का आवेदन या प्रकरण संबंधित विभागों को भेजकर उसका समाधान कराकर वापस लौटाना।
- निवेश परियोजना या उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक कार्यवाही करना। जिनका निराकरण जिला स्तर पर न हो, उनके निवेश प्रकरण को निवेश कैटेगरी के अनुरूप प्रमुख सचिव, सचिव औद्योगिक नीति और निवेश प्रोत्साहन विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पर्यटन विभाग, पर्यटन विभाग, एमएसएमई आदि विभागों को सबंधित कार्यवाही के लिए भेजना।
- नए औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के लिए जिले में मौजूद अविकसित शासकीय भूमि की तलाश करना और चिन्हित भूमि को औद्योगिक नीति और निवेश प्रोत्साहन या एमएसएमई विभाग या विज्ञान और प्रौद्योगिकी व अन्य विभागों को ट्रांसफर करने के लिए जिला स्तर पर कार्यवाही कराना।
- जिले में मौजूद स्थानीय संसाधनों और इंडस्ट्रियल इको सिस्टम की जानकारी रखना ताकि सेंटर में आने वाले निवेशकों को स्थितियों से अवगत कराया जा सके।
- निवेश परियोजना के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं को कलेक्टर के संज्ञान में लाकर जिला स्तरीय निवेश संवर्धन समिति और समन्वय समिति के समक्ष पेश करना।
- फैसिलिटेशन सेंटर में आने वाले आवेदन, प्रकरण की जानकारी और उसके निराकरण से संबंधित डिटेल जिला स्तरीय निवेश संवर्धन समिति और समन्वय समिति के समक्ष पेश करना।
ये अधिकारी रहेंगे जिला स्तरीय निवेश संवर्धन समिति में
- कलेक्टर
- डीएफओ
- कार्यकारी संचालक एमपीआईडीसी या महाप्रबंधक, उपसंचालक स्तर का उसका प्रतिनिधि
- परिक्षेत्रीय उद्योग अधिकारी
- जिले की संबंधित विद्युत वितरण कम्पनी का वरिष्ठतम अधिकारी
- जिला अधिकारी नगर व ग्राम निवेश
- जिला अधिकारी श्रम विभाग
- उपायुक्त या सहायक आयुक्त स्टेट टैक्स
- क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
- जिला अग्रणी प्रबंधक
- जिला खनिज अधिकारी
- आयुक्त नगर निगम, मुख्य नगरपालिका अधिकारी
- महाप्रबंधक जिला व्यापार और उद्योग केंद्र
- नोडल अधिकारी, फैसिलिटेशन सेंटर
- अन्य जिम्मेदार अधिकारी
यह होगा निवेश संवर्धन समिति का काम
- निवेश परियोजना, उद्योगों के क्रियान्वयन के लिए जिला स्तरीय अनुमति, एनओसी, लाइसेंस और नवीनीकरण का काम समय सीमा में पूरा करना।
- निवेश परियोजना, उद्योगों की स्थापना से सबंधित फाइलों का जिला स्तर से निराकरण न होने पर राज्य शासन स्तर पर विभागों से समन्वय स्थापित करना।
- उद्योग लगाने के लिए जरूरी प्रक्रिया को सरलीकृत करने के लिए सलाह और सुझाव देना।
- फैसिलेटेशन सेंटर संचालन के लिए सहयोग और सुझाव देना।
- फैसिलिटेशन सेंटर की गतिविधियों की समीक्षा और सुपरवीजन करना।
- समिति की बैठक महीने में कम से कम एक बार होगी और जरूरत हो तो एक से अधिक बार भी हो सकेगी।
- हर माह की रिव्यू मीटिंग की रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी जाएगी।
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