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Minor son found accused of doctor’s murder | डॉक्टर की हत्या का आरोपी निकाला नाबालिग बेटा: कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा, घर वाले बताते रहे नकाबपोशों ने किया था हमला – Betul News

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चार साल पहले बैतूल के चोपना थाना इलाके में हुई एक डॉक्टर की हत्या के आरोप में उसके 17 वर्षीय नाबालिग बेटे को अदालत ने आजीवन कारावास की सजने दंडित किया है, जबकि डॉक्टर की पत्नी को आरोप से दोषमुक्त कर दिया है। हत्या के समय परिजनों ने बताया था की अज्ञात

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घटना 2020 में हुई थी जब थाना इलाके में एक डॉक्टर की कुल्हाड़ी, फावड़े और धारदार हथियारों से हत्या की जानकारी पुलिस को मिली थी। घटना के समय पुलिस को डॉक्टर की पत्नी, बेटे और बेटी ने बताया था की अज्ञात नकाबपोशों ने घर में घुसकर घटना को अंजाम दिया था। जिसमें बीच बचाव करने पर पुत्र और पुत्री घायल भी हो गए थे।

फिंगरप्रिंट से हुआ हत्यारे का खुलासा

हत्या के इस मामले में मृतक के परिजनों ने यह बात बार बार दोहराई की अज्ञात नकाबपोशों के द्वारा कुल्हाड़ी, गैती, फावड़ा और लोहे के वसूले से हत्या कर फरार हो गए हैं। बीच बचाव में लड़की को भी चोट आई है। पीड़ितों के इन बयानों के बाद पुलिस का पूरा ध्यान अज्ञात नकाबपोशों को ढूंढने में लग रहा। इस बीच फोरेंसिक विशेषज्ञों ने इस मामले में अहम भूमिका निभाई।

अंगुल चिन्ह विशेषज्ञ आबिद अहमद अंसारी द्वारा घटनास्थल निरीक्षण के दौरान मौके पर फिंगरप्रिंट प्राप्त किए गए थे। जिसके मिलान किए जाने के लिए उन्होंने थाना प्रभारी चोपना को संदेहियो और परिजनों के आदर्श अंगुल चिन्ह भेजे जाने को कहा। यह फिंगर प्रिंट मिलते ही जब इनका मिलान किया गया तो हत्या में उपयोग किए गए औजारों पर 17 साल के बेटे के उंगलियों के निशान पाए गए।

जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो मां बेटों ने हत्या का जुर्म कुबूल लिया। इसी आधार पर कोर्ट ने भी आरोपी नाबालिग को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि कोई साक्ष्य न मिलने पर महिला को बरी कर दिया।

सेशन कोर्ट ने सुनाई सजा

प्रकरण में अपचारी बालक के के।खिलाफ आरोप पत्र किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश किया गया था। परंतु घटना के समय अपचारी बालक की आयु 17 वर्ष होने से प्रधान मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड बैतूल द्वारा पारित आदेश अनुसार अपचारी बालक के विरुद्ध वयस्क के रूप में विचारण किया जाना पाते हुए *किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 18(3)* के आलोक में इस मामले को विचारण के लिए सत्र न्यायालय को भेजा गया था।

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