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भारत का न्यायिक इतिहास स्वर्णिम रहा है। देश में यदि प्राचीन भारतीय न्याय प्रणाली लागू होती, तो आज इतने प्रकरण लंबित नहीं रहते। कानूनों के बदलाव के साथ जो नई शब्दावली आई है, वे सबकों अपने इतिहास पर सोचने को विवश करेगी। तकनीकों के युग में अपराध और अपरा
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यह बात विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अखिलेश पांडे ने देश में 1 जुलाई से लागू नये कानूनों पर डॉ. कैलासनाथ काटजू लॉ कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के समापन पर मुख्य अतिथि के रुप में कही है।
सेवानिवृत्त प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसके चौबे एवं वीके निगम, महाविद्यालय ट्रस्ट के उपाध्यक्ष निर्मल कटारिया, कोषाध्यक्ष केदार अग्रवाल और प्राचार्य डॉ. अनुराधा तिवारी मंचासीन रहे।
स्वागत सचिव डॉ संजय वाते, ट्रस्टी निर्मल लुनिया, कैलाश व्यास, सुभाष जैन, प्राचार्य डॉ. तिवारी, डॉ. जितेन्द्र शर्मा, वर्षा शर्मा, पंकज परसाई, विजय मुवेल और प्रतीक आदि ने किया। कुलपति डॉ. पांडे ने कहा कि कानूनों के बदलाव के साथ आज कानून के क्रियान्वयन हेतु बहुउददेशीय कार्य करने की जरूरत है। स्वामी विवेकानंदजी ने वर्ष 2047 में भारत को विकसित देश के रूप में देखने के लिए अपनी विरासत समझने और विरासत पर गर्व करने का संदेश दिया था। भारत की न्याय प्रणाली ऐसी ही गर्व करने जैसी थी। नए कानून उसी से प्रेरित होकर बनाए गए है, जो गुलामी से आजादी का संदेश देते है।
समापन सत्र में हिरेन्द्र प्रताप सिंह ने सेमीनार की रिपोर्ट प्रस्तुत की। संचालन प्राध्यापक मीनाशी बारलो ने किया। आभार प्राचार्य डॉ.अनुराधा तिवारी ने माना।
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