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शरीर का प्रक्षालन हो जाता हैं, नेत्र निर्मल बन जाते हैं और सारे पाप धुल जाते हैं परमात्मा के दर्शन मात्र से। प्रभु के दर्शन जब हृदय के शुद्ध भाव से हो जाते हैं तब आग के गोले भी पिघल जाते हैं और पानी को भी पसीना आ जाता है।
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उक्त विचार रतनाबाग श्रीसंघ जैन उपाश्रय में आयोजित धर्मसभा में आचार्य मुक्तिसागर सूरीश्वर महाराज ने खुशी की राह-प्रभु की चाह विषय पर सभी श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि प्रभु की महिमा ऐसी अजब-गजब की हैं कि उनके प्रभाव से अंधा भी देखने लगता हैं, लंगड़ा दौड़ने लगता है और गूंगा भी अच्छा भाषण देने लगता है। हमने दुनिया को रिझाने में अपना कीमती वक्त बर्बाद किया, मगर प्रभु की भक्ति के लिए समय नहीं निकाल सके।

प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में शामिल हुए समाजजन।
श्री अर्बुद गिरिराज जैन श्वेतांबर तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट एवं चातुर्मास समिति संयोजक पुण्यपाल सुराणा एवं कैलाश नाहर ने बताया कि प्रवचन से पूर्व कालानी नगर चौराहे से आचार्यश्री का भव्य सामैया शुरू हुआ। प्रवचन के बाद श्रीसंघ का स्वामिवात्सल्य भी हुआ जिसके लाभार्थी भिकमचंदजी जैन परिवार थे। शुरू में सभी श्रीसंघों से पुण्यपाल सुराणा ने 14 जुलाई को आचार्यश्री के प्रवेश प्रसंग पर शामिल होने का सभी जैन धर्मावलंबियों से आग्रह किया। नरेद्र बाफना ने बताया कि मंगलवार 9 जुलाई को आचार्यश्री मुक्ति सागर सूरीश्वर मसा रतनबाग श्रीसंघ में 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे।
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