[ad_1]
उमरिया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों महुआ के फूल और फल दोनों का ही उपयोग ग्रामीण करते हैं। फल, फूल को जंगल से लाकर अपने उपयोग के साथ फूल को बेचकर रुपए की भी व्यवस्था कर लेते हैं। महुआ का फल को ग्रामीण क्षेत्रों में गोही बोला जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों मे
.

महुआ के फूल के बाद गिरता है फल
जंगल में महुआ के पेड़ से महुआ का फूल गिरता है। जिसको बड़ी संख्या ग्रामीण बीन कर सुखाते हैं। फिर महुआ फूल को बाजार में बेचते हैं। महुआ के फूल को ग्रामीण क्षेत्रों में आय का साधन भी मानते हैं। इसे गांव की इकोनॉमी भी बोला जाता है। महुआ के फूल के बाद फल गिरना शुरू होता है। फल को बीनकर ग्रामीण आदिवासी घर लाते हैं।

महुआ के फल गोही का उपयोग, हलषष्ठी की पूजा में महत्व
महुआ का फल को घर लाकर दो से तीन सुखाते हैं। फल के सूख जाने के बाद फल के उपर से ग्रामीण तकनीक से फल के ऊपर का छिलका हटाते हैं। छिलका हटाने के बाद फिर सुखाया जाता है। गोही को लेकर चक्की में पेराई कराई जाती है। फिर तेल और खरी निकलती है। तेल का उपयोग हलषष्ठी की पूजा में होता है। गोही के तेल का विशेष महत्व हलषष्ठी की पूजा में विशेष रहता है। आदिवासी गोही के तेल का दैनिक उपयोग खाने में भी करते हैं।

इनका कहना
महुआ की गोही बीनने और उसका छिलका हटाने वाले राकेश ने बताया कि गोही को जंगल से बीनने के बाद सुखाते है। बहुत मेहनत के बाद आधा तेल निकलता है। पांच किलो गोही की पेराई में ढाई किलो तेल निकलता है। खरी का उपयोग मवेशियों को खिलाने के काम आता है।
गोही से छिलका रात में पत्थर के सहारे से हटाते हैं। दिन में धूप के कारण छिलका नहीं हटा सकते हैं। सुनील ने बताया कि सुबह से ही पेड़ के नीचे परिवार के सदस्यों के साथ जंगल चले जाते हैं। एक एक फल बीनने के बाद उसका छिलका हटाकर सुखाते हैं। पेराई के बाद तेल निकलता है। पूजा और घर के काम आता है। महुआ फूल और फल आय का सहारा है।
इसलिए हलषष्ठी में महुआ का महत्व
पंडित परमेश्वर दत्त गौतम ने बताया हरछठ के दिन महुआ को पुत्र के रुप में पूजा जाता है। इसलिए महुआ फूल का खाया जाता हैं और महुआ के फल गोही के तेल से पूजा की पूड़ी बनाई जाती है। महुआ का हरछठ के दिन विशेष महत्व होता है।
[ad_2]
Source link

