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देश में 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगाई गई थी। हम लोगों को जेल में रखने के बाद रोटी ऐसी मिलती थी जितनी बार पटको उतनी बार राख निकलती थी और दाल छान लोगे तो भी दाल नहीं नजर आती थी ऐसी दाल हमने खाई। हंसी मजाक में रहे। जिंदगी जी। परिवार से पत्र आता था उसका स
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यह अनुभव आपातकाल दिवस के एक दिन पहले मंगलवार दोपहर भाजपा कार्यालय में आयोजित सम्मान समारोह के दौरान लोकतंत्र सेनानी व अधिवक्ता अरूण शेंडे ने कही। उन्होंने कहा-हम जब जेल में थे तो मित्र, रिश्तेदार संपर्क करता था पुलिस उनके साथ जाती थी। कईं बार उन्हें भी अंदर कर दिया। हम परिवार से अलग रहे। 19 महीने 14 दिन जेल में रहे। शादी के 3 माह बाद ही जेल हो गई थी। कईं की पत्नी, बच्चे मर गए तो उन्हें पैरोल नहीं मिला।
रहने को जगह, पीने को पानी नहीं मिलता था
लोकतंत्र सेनानी प्रकाश कानूनगो आपातकाल का यह 49वां वर्ष याद करने के लायक है। 1975 में जब इंदिरा जी चुनाव हारी तो उन्होंने इस बात को छिपाने के लिए पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी। इसके कारण पूरा देश जेल बन गया था। विरोधी पार्टी के नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था। रहने को जगह नहीं, पीने को पानी नहीं मिलता था। यह प्रजातंत्र के लिए काला धब्बा है। पार्टी ने आज हमारा सम्मान किया।
कुछ लोगों के साथ इतना अन्याय किया कि खाने पीने की जगह नहीं था। धामनगांव में 25 जून को हम 5 लोगों को हथकड़ी लगाकर गांव में घुमाया गया था और खंडवा जेल भेजा गया था। इस दौरान लोकतंत्र सेनानी व अधिवक्ता ज्ञानेश्वर मोरे ने भी अपने अनुभव सुनाए। इस दौरान भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ. मनोज माने, बलराज नावानी आदि ने लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान किया।

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