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Gwalior’s Imarti is famous till Delhi | ग्वालियर की इमरती दिल्ली तक फेमस: छोटेलाल की इस मिठाई का स्वाद ऐसा कि सब दीवाने; 100 साल से एक जैसा टेस्ट – Gwalior News

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छोटेलाल की इमरती इतनी स्वादिष्ट है कि लोग दिल्ली तक ले जाते हैं।

मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर ग्वालियर की प्रसिद्धि यहां मौजूद प्राचीन इमारतों से ही नहीं, बल्कि खानपान से भी है। बुलंद इमारतें इतिहास की गौरव गाथा का बखान करती नजर आती हैं तो गलियों-बाजारों में अलग-अलग व्यंजनों का अनोखा स्वाद परोसा जाता है।

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ऐसी ही एक दुकान है पाटनकर बाजार में। इसकी पहचान बताने के लिए यहां न तो कोई बोर्ड है और न ही नेम प्लेट। छोटेलाल की इस दुकान ने अपनी पहचान स्वाद से ही बनाई है। इस दुकान में बनने वाली इमरती के स्वाद की बादशाहत दिल्ली तक कायम है। करीब 100 साल पुरानी इस दुकान में सुबह और शाम इमरती बनने से पहले ही इनकी बुकिंग हो जाती है।

आइए, ‘जायका’ के सफर में छोटेलाल की इमरती के स्वाद से रूबरू कराते हैं

राम मंदिर के पास है छोटेलाल की बहुत ही साधारण सी दुकान। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां सुबह से ही इमरती के लिए भीड़ जुट जाती है। 100 साल पुरानी इस दुकान को अब चौथी पीढ़ी संभाल रही है।

संचालक अशोक कुशवाह बताते हैं कि उनके परदादा ने इस दुकान की शुरुआत की थी। पहले यहां गजक बनाकर बेची जाती थी। समय के साथ लोगों की पसंद को बदलता देख नाश्ता परोसने की शुरुआत की। कचौरी, समोसे और इमरती बनाने लगे।

अशोक ने 10 साल की उम्र से ही दुकान पर दादा और पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। उनका कहना है, ‘हमारे यहां की इमरती और कचौरी लोगों की पहली पसंद बन गई है। सिर्फ ग्वालियर ही नहीं, बल्कि बाहर से आने वाले लोग भी इसे जरूर टेस्ट करते हैं। इनमें इमरती के ज्यादा फैन हैं।’

दुकान के बाहर कोई बोर्ड नजर नहीं आता क्योंकि इमरती का स्वाद ही इसकी पहचान बन गया है।

दुकान के बाहर कोई बोर्ड नजर नहीं आता क्योंकि इमरती का स्वाद ही इसकी पहचान बन गया है।

18 घंटे खुली रहती है दुकान

अशोक कुशवाह बताते हैं कि उनकी दुकान सुबह 6 बजे से खुल जाती है और रात करीब 9 बजे तक खुली रहती है। करीब 18 घंटे खुली रहने वाली दुकान में इमरती, कचौरी के शौकीन लोग दुकान खुलने से पहले ही पहुंच जाते हैं। कुछ लोग तो यहां रोज आते हैं, तो कुछ 2-3 दिन में पहुंच ही जाते हैं। हालांकि इसका निश्चित आंकड़ा नहीं है कि यहां रोजाना कितने ग्राहक पहुंचे हैं। अंदाज के मुताबिक यह संख्या हजार से ज्यादा है।

दुकान संचालक का ये भी कहना है कि उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि रोज उनकी कितनी इमरती बिक जाती हैं। वो बस डिमांड के हिसाब से इसे तैयार करते हैं। इमरती की कीमत 200 रुपए प्रतिकिलो है। वहीं, नग के हिसाब से 10 में बेचा जाता है।

बिना देखे बना देते हैं इमरती

दुकान पर इमरती बनाने वाले कारीगर राम अवतार ने बताया कि वो बीते 40 साल से यहां काम कर रहे हैं। उन्होंने यहीं पर काम करना सीखा था। अब उनका हाथ इतना रम चुका है कि वो दूसरे व्यक्ति से बात करते-करते और बिना देखे भी इमरती बनाते रहते हैं। खास है कि इमरती का साइज और बनावट एक जैसी होती है। ऐसे में कह सकते हैं कि इमरती उनके हाथों नहीं, इशारों पर बनती है।

उड़द की दाल से बनाते हैं बैटर

इमरती उड़द की दाल से बनाई जाती है। उड़द दाल से इसका बैटर तैयार करके उसे शेप देने के बाद डीप फ्राई किया जाता है। इसके बाद इसे चाशनी में भिगोया जाता है और फिर गरम-गरम सर्व किया जाता है।

दिल्ली तक जाती है ये इमरती

दुकान संचालक बताते हैं कि हमारे यहां रोज ताजी और शुद्ध इमरती बनती है। यही कारण है कि इसे लोग झांसी, आगरा, मथुरा और दिल्ली तक ले जाते हैं। कई ग्राहक ऐसे हैं, वह जब शताब्दी एक्सप्रेस से दिल्ली जाते हैं, तो यहां की इमरती जरूर लेकर जाते हैं। ऐसे में चार से पांच घंटे में यहां का स्वाद दिल्ली पहुंच जाता है।

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