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भास्कर एक्सपर्ट सहदेव सिंह, पूर्व डायरेक्टर, अहमदाबाद मेट्रो
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इंदौर मेट्रो के अंडरग्राउंड टैक पर उपजे विवाद की बड़ी वजह यह है कि प्लान को लेकर जिम्मेदार कभी जनता के बीच गए ही नहीं। मौजूदा प्लान के अनुसार 8.7 किमी का अंडरग्राउंड मेट्रो ट्रैक ढाई हजार करोड़ की लागत से बनना है। ट्रैक को लेकर उपजे विवाद के कारण रोबोट चौराहे से पलासिया तक 540 करोड़ का एलिवेटेड कॉरिडोर का काम भी अटक गया है।
अहमदाबाद मेट्रो के पूर्व डायरेक्टर सहदेव सिंह का कहना है, प्लानिंग और डिजाइन में फॉल्ट के कारण ही ऐसी नौबत आई। अफसरों ने जो प्लानिंग केबिन में बैठकर की उसे ही फाइनल कर टेंडर जारी कर दिए। प्रोजेक्ट को पूरी पारदर्शिता से प्रभावित व्यापारियों और रहवासियों के सामने रखना था। उनका भरोसा जीत लेते तो यह नौबत नहीं आती। दीपेश शर्मा की रिपोर्ट…
दिल्ली मेट्रो सबसे सफल क्योंकि सबसे खुलकर बात की लोगों की संतुष्टि के लिए टनल दो मीटर गहरी तक की
दिल्ली में जब भिकाजी-कामाजी से एम्स, डिफेंस कॉलोनी से कालिंदीकुंज तक मेट्रो के अंडरग्राउंड ट्रैक का काम चल रहा था तो लोगों में वाइब्रेशन का डर फैलने लगा। यहां 8 अंडरग्राउंड स्टेशन थे। इससे पहले के एक ट्रैक में वाइब्रेशन की शिकायत हुई थी, लोगों को डर था कि ऐसा उनके घर के नीचे से निकलने वाली मेट्रो में हुआ तो घर न गिर जाएं। इस क्षेत्र में पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी का भी घर था।
डिफेंस कॉलोनी में आईएएस के साथ कई वीवीआईपी के घर थे। दिल्ली मेट्रो के चीफ डायरेक्टर व टीम ने हर प्रभावित से बात की। लोगों को भरोसा नहीं हुआ तो टनल को दो मीटर गहरा किया। जब तक लोग सहमत नहीं हुए लगातार बात की। इसके बाद काम पूरा किया। चार साल में कहीं से वाइब्रेशन की शिकायत नहीं आई।
अहमदाबाद-गांधीनगर के बीच 20 किमी ट्रैक 3 साल में पूरा, प्रभावितों से बात करने अलग ऑफिस बनाया
अहमदाबाद से गांधीनगर के बीच मेट्रो के 20 किमी के अंडरग्राउंड ट्रैक का वर्क ऑर्डर 2021 में हुआ था, जिसका उद्घाटन जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। सटीक प्लानिंग और डिजाइन से इसे समय पर पूरा कर पाए हैं। अहमदाबाद हेरिटेज सिटी है और यहां कई ऐतिहासिक धरोहरों के पास से मेट्रो का अंडरग्राउंड ट्रैक निकला है।
यहां भी लोगों को कई तरह की आशंका थी। अहमदाबाद मेट्रो की टीम ने सभी प्रभावितों से लगातार बात की और पूरे प्रोजेक्ट को समझाया। इसके लिए विशेष ऑफिस भी बनाना पड़ा, ताकि कोई भी प्रभावित व्यक्ति वहां जाकर अपनी दुविधा का समाधान कर सकता है। यहां दूसरे रूट को पूरा हुए भी डेढ़ साल हो चुके हैं, लेकिन कोई शिकायत नहीं आई।
यूरोप में जनता से चर्चा में ही लगते हैं 4-5 साल
यूरोप में मेट्रो ट्रैक को लोगों पर कभी थोपा नहीं जाता। पब्लिक कंसल्टेशन में सरकार चार से पांच साल लगाती है। प्रत्येक व्यक्ति के सवालों पर उसे संतुष्ट किया जाता है। इसके बाद ही काम करते हैं। बाद में दिक्कत नहीं होती।
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