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MangoKi Kheti | MP Hoshanbad Farmer Arun Mehto Success Story | रिटायरमेंट के बाद खेती से कमा रहे ₹8 लाख: एक ही बगीचे में 40 प्रकार के फलों के पेड़; प्रकृति के लगाव से बने किसान – narmadapuram (hoshangabad) News

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दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार आपको एक ऐसे किसान से मिलवाते हैं, जो शौक के लिए लगाए फलों के बगीचे से लाखों रुपए कमा रहे हैं। पांच एकड़ में फैले इस बगीचे का नाम श्री राधा-कृष्ण की बगिया रखा है।

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नर्मदापुरम जिले के पथरौटा के रहने वाले 65 साल के रिटायर्ड अधिकारी अरुण मेहतो ने अपने बगीचे में आम, चीकू, लीची, आंवला, करौंदा, अमरूद, जामुन, नाशपाती, एप्पल, बेर समेत 40 प्रकार के फलों के पेड़ लगाए हैं। इन पेड़ों के फल से हर साल करीब 6 से 7 लाख रुपए का प्रॉफिट हो रहा है। श्री राधा-कृष्ण की बगिया औबेदुल्लागंज-बैतूल नेशनल हाईवे-46 किनारे स्थित है। हर साल बगीचा को नीलाम करते हैं।

किसान अरुण मेहतो के बगीचे में 30 प्रकार की आम की वैरायटी है।

किसान अरुण मेहतो के बगीचे में 30 प्रकार की आम की वैरायटी है।

जानते हैं किसान अरुण मेहतो से ही बगीचा शुरू करने की कहानी

पेड़-पौधों का बचपन से ही शौक है। मैं बचपन से ही इनकी सेवा करते आ रहा हूं। सर्विस में रहते हुए 2007 से बगीचे का शुरुआत किया था। उस समय मैं SDO था, तो शनिवार और रविवार को आता था। पेड़ों को पानी देना, गुड़ाई करना, पेड़ों को देखरेख करना मैं खुद करता था। 2019 में बीएसएनएल के महाप्रबंधक के पद से रिटायर्ड होने के बाद मैं अब ज्यादा ध्यान दे रहा हूं। अभी मैं 4-5 घंटे बगीचे की ओर ध्यान दे रहा हूं। डेली आता हूं। पेड़ों में पानी देना, गुड़ाई करना मेरे डेली रुटिन में शामिल हो गया है। रिटायरमेंट के बाद बगीचा को थोड़ा और विस्तार किया है।

2012 में आम के पेड़ों में फल आने शुरू हो गए। इसके बाद मैंने धीरे-धीरे अलग-अलग फलों के पौधे भी लगाने लगा। मैं पहले दो-तीन पौधे ट्रायल के तौर पर लगाता हूं। अगर वे सक्सेस हो जाते हैं और फल आने लगते हैं तो उस फल के पौधे ओर लगाता हूं। लीची के भी मैंने पहले 2 पौधे लगाए थे। अब 110 लीची के पौधे हो गए हैं।

बगीचे में 30 प्रकार की आम की वैरायटी है। इसमें हापुस, मियाजाकी, मल्लिका, आम्रपाली, दशहरी, लंगड़ा, बादाम, बॉम्बे ग्रीन, चौसा और देसी आम है। मैंने कुछ आम के पौधे हैदराबाद से मंगवाए थे और कुछ पौधे हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने दिए थे। आम्रपाली आम दशहरी और नीलम का क्रॉस वैरायटी है। ये आम हर साल आता है।

इस बगीचे में करीब 600 से ज्यादा फलों के पेड़-पौधे हैं। जिसमें आम के 120, लीची के 110, चीकू के 32 पेड़ के अलावा आंवला, करौंदा, अमरूद, जामुन, नाशपाती, एप्पल, बेर, अनार, कटहल समेत 40 प्रकार के फलों के पेड़ हैं। दो साल पहले स्टार फ्रूट एप्पल के दो, नाशपाती के दो पौधे, वाटर एप्पल, अंजीर, काजू के दो-दो पौधे लगाए हैं। जो अब बड़े हो रहे हैं। अगले साल तक इनमें फल आना शुरू हो जाएंगे। यूएसए का फल एबोकाडो के भी दो पौधे लगाए हैं। महंगे आमों में मशहूर मियाजाकी के 3 पौधे भी लगाया है। इसमें से कुछ पौधे मैंने ऑनलाइन भी मंगवाए हैं।

बगीचे से हर साल करीब 6 से 7 लाख रुपए का मुनाफा हो रहा है। पेड़ों के बीच-बीच में जो जगह बची है। उसमें पहले पौधे छोटे थे तो पपीता लगाता था। उससे भी अच्छी खासी इनकम होती है। उसके बाद इसमें मैंने टमाटर लगाया। इस साल मैंने सरसों लगाया था। जिसमें मुझे करीब एक से डेढ़ लाख की आमदनी हुई।

औबेदुल्लागंज-बैतूल नेशनल हाईवे-46 किनारे स्थित है बगीचा।

औबेदुल्लागंज-बैतूल नेशनल हाईवे-46 किनारे स्थित है बगीचा।

गोबर खाद से जमीन की उर्वरक क्षमता बनी रहती है

बगीचे में गोबर खाद का इस्तेमाल करते हैं। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता बनी रहती है। सिर्फ बीमारियों से बचाव के लिए ही रासायनिक दवाओं का छिड़काव बगीचे में करते हैं। गोबर खाद मिट्टी की संरचना में सुधार करती, मिट्टी के लाभकारी जीवाणुओं और केंचुओं के लिए बेहद फायदेमंद होती है। गोबर की खाद में 50% नाइट्रोजन, 20% फास्फोरस और पोटेशियम पाया जाता है। जो पौधों के पोषण के लिए जरूरी होता है। चीकू के पेड़ों में अभी तक किसी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ी। आम और लीची में कभी-कभी दवा का छिड़काव करते हैं। दीमक न लगे इसके लिए चूना और नीला थोता पोता जाता है।

ऐसे लगा सकते हैं आम, लीची, चीकू का बगीचा

किसान अरुण मेहतो ने बताया कि आम, चीकू, लीची का बगीचा तैयार करने के लिए खेत में पहले 10 फीट की बराबर दूरी पर गड्ढे खोद लेते हैं। इन गड्ढों को खोदने के बाद इसमें कुछ गोबर खाद मिलाकर मिट्टी डालते हैं। कुछ दिनों तक इन गड्‌ढों को ऐसे ही छोड़ देते हैं। 8 से 10 दिन बाद इनमें पौधे लगाते हैं। इन पौधों की कुछ दिनों तक लगातार देखभाल करनी होती है। उन्होंने बताया कि यदि पौधों पर कोई बीमारी आती है, तो उस पर दवाई का छिड़काव भी करना पड़ता है। जब पौधे 6 महीने से ज्यादा के हो जाते हैं, तो इतनी समस्या नहीं आती। एक बार पौधा पेड़ बन जाए तो फिर चिंता नहीं रहती है।

अगर पौधे छोटे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें

किसान अरुण मेहतो का कहना है कि छोटे-छोटे पेड़ में सावधानीपूर्वक ही खाद देना चाहिए, क्योंकि ज्यादा खाद पड़ जाने से पेड़ सूख जाता हैं। खाद एवं उर्वरकों का इस्तेमाल सितंबर महीने के पहले हफ्ते तक कर लेना चाहिए। यदि किसी वजह से खाद एवं उर्वरकों का इस्तेमाल समय रहते नहीं कर पाए हों, तो 15 सितंबर के बाद इनका प्रयोग नहीं करें, क्योंकि इसके बाद बाग में जुताई गुड़ाई, खाद व उर्वरकों के प्रयोग से बाग में मंजर निकलने के स्थान पर नई-नई पत्तियां निकल आएगी। इसकी वजह से फायदा होने की बजाय नुकसान हो जाएगा।

2 साल तक पौधों की करें नियमित सिंचाई

आम के पौधे लगाने के लिए सबसे सही समय बारिश का मौसम होता है। जुलाई से लेकर सितंबर तक आम के पौधे लगाए जाते हैं। पौधे लगाने के बाद दो साल तक नियमित सिंचाई की जरूरत होती है। छोटे पौधों को गर्मियों में 4 से 7 दिन के अंतर पर और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। फल वाले पेड़ों की अक्टूबर से जनवरी तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अक्टूबर के बाद यदि भूमि में नमी अधिक रहेगी तो फल कम आते हैं। मिट्टी में कितनी नमी है, इसे टेंसियोमीटर नामक यंत्र से नापते हैं। यह मिट्‌टी की नमी का पता लगाने में मददगार होता है।

कीटों से ऐसे बचाते हैं

आम के बाग में जनवरी से लेकर मार्च तक जमीन से गुजिया कीट निकलकर पेड़ों पर चढ़ जाते हैं। इन कीटों की ज्यादा संख्या से नुकसान हो जाता है, क्योंकि ये कीट पेड़ पर चढ़कर पत्तियों और बौर का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। प्रति बौर कीट की ज्यादा संख्या होने से फल भी नहीं बन पाते हैं। इन कीटों की वजह से पत्तियों और बौर में चिपचिपा पदार्थ बढ़ जाता है, जिससे फफूंद बढ़ने लगते हैं। अगर ये कीट पत्तियों और बौर पर दिखाई दें तो इनके प्रबंधन के लिए 20 लीटर पानी में पांच ग्राम छिड़काव करते है।

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कद्दू की खेती से एक लाख रुपए महीने का मुनाफा

छिंदवाड़ा के चिन्हियाकला गांव के रहने वाले बलराम उसरेठे (54) 8वीं तक पढ़े हैं। उनके पास करीब 8 एकड़ जमीन है। तीन एकड़ में कद्दू और 5 एकड़ में परंपरागत खेती कर रहे हैं। इनके कद्दू छिंदवाड़ा, नागपुर और रायपुर के बाजारों में ज्यादा डिमांड रहता है। किसान बताते हैं कि देसी कद्दू की खेती कम समय और कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है। पूरी खबर पढ़िए।

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