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चीता वीरा कूनो के जंगल से निकलकर ग्वालियर की सीमा में घुस आया।
ग्वालियर के भंवरपुरा में इस समय दहशत का माहौल है। दस्यु प्रभावित इस गांव में इस बार दहशत डकैतों की नहीं बल्कि एक चीता “वीरा’ की है। शनिवार सुबह कूनो से निकलकर चीता ग्वालियर-मुरैना की सीमा पर बसे गांव भंवरपुरा के बाग वाला गांव पहुंचा है। यहां एक किसान
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खेत की मेड़ पर पेड़ के छांव के नीचे बैठकर चीता बकरी को खाता दिखा है। जिससे गांव के लोगों में दहशत है। गांव के लोग अकेले नहीं निकल रहे हैं। झुंड में खेतों की ओर जा रहे थे। गांव में चीता “वीरा’ के आने की खबर के बाद वन विभाग की टीम अलर्ट हो गई है। चीता की तलाश में टीमें लगा दी गई हैं।

बकरी का शिकार कर उसे खाते हुए चीता
श्योपुर के पालपुर कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीता में से एक नर चीता “वीरा’ को ग्वालियर-मुरैना की सीमा से लगे जंगलों में देखा गया है। शनिवार सुबह भंवरपुरा के बाग वाला गांव में “वीरा’ ने दस्तक दी है। गांव के नजदीक खेतों पर बकरी चरा रहे चरवाहे धर्मवीर गुर्जर की बकरीयों पर “वीरा’ ने हमला कर दिया। दो बकरियों को बुरी तरह घायल कर दिया, जबकि एक बकरी को चीता मारकर अपने साथ घसीटकर जंगल किनारे एक खेत में ले गया है। धर्मवीर गुर्जर के द्वारा सूचना मिलते ही गांव के सरपंच शिव सिंह गुर्जर, गांव के अन्य लोगों के साथ झुंड में खेतों की ओर पहुंचे हैं। गांव के लोगों ने देखा कि चीता, बकरी का शिकार करने के बाद खेत की मेड़ पर पेड़ की छांव में पैरो से दबाकर उसे खा रहा था, जबकि वहां अन्य दो बकरी घायल पड़ी थीं।
भंवरपुरा पहुंचा वन अमला, नहीं कर पाया रेस्क्यू
गांव के लोगों ने चीता के गांव की सीमा में घुस आने की सूचना वन विभाग के अधिकारियों दी गई। सूचना मिलने के एक घंटे बाद वन विभाग जिला ग्वालियर की टीम से रेंजर अंकित पाण्डे, रेंजर शैलेन्द्र गुर्जर, रेंजर मोहना सचिन गुप्ता वन चौकी भंवरपुरा सहित अन्य के साथ घटनास्थल पर पहुंचे। पर वन विभाग की टीम रेस्क्यू नहीं कर पाई। जबकि चीता सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खेत की मेड़ पर पेड़ की छांव में बेखौफ बैठा रहा। डीएफओ और सीसीएफ ने चीता “वीरा’ को पकड़कर वापस कूनो पहुंचाने के लिए विभाग के जरिए प्रयास शुरू कर दिए हैं।
दहशत में गांव वाले, खेतों पर रात को ग्रुप में दे रहे पहरा
भंवरपुरा व आसपास के गांव में दहशत का माहौल है। बाग वाले गांव में लोग खेतों पर समूहों में जा रहे हैं। खेतों पर मवेशी भी होते हैं। उनकी रक्षा के लिए गांव वाले डंडे लेकर पहरा दे रहे हैं, क्योंकि आचार संहिता के चलते गांव में जितने भी लाइसेंसी हथियार हैं वह थानों में जमा हैं।
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