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In the Gita, the meaning of sacrifice is not the sacrifice of action but the sacrifice of the fruit of action – Dr. Girishanandji Maharaj | इंदौर के शंकराचार्य मठ में नित्य प्रवचन: गीता में त्याग का अर्थ, कर्म का नहीं बल्कि कर्म-फल का त्याग है- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

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ओजस पालीवाल.इंदौर3 मिनट पहले

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संसार के किसी भी जीव के लिए कर्मों का त्याग संभव नहीं है, क्योंकि प्रकृति के सतो, रजो, तमो गुण सभी प्राणियों को कर्म करने के लिए विवश करते हैं। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…अर्थात- कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फल से नहीं। यह सारा संसार कर्म में बंधा है। गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति का अद्भुत समन्वय किया गया है, जो कर्म योग में आता है। कर्म में फल की आसक्ति या कामना का निषेध है। वासना, कामना, आसक्ति या फल की आकांक्षा वास्तव में कर्म के विषदंत हैं, जो कर्ता को बंधन में बांधते हैं। इस विषदंत को निकाल देने पर कर्म में बांधने की शक्ति नहीं रह जाती।

एरोड्रम क्षेत्र में पीथमपुर बायपास रोड स्थित शंकराचार्य मठ

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