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आनंद निगम (उज्जैन)16 मिनट पहले
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‘विवादित ढांचा गिराने के लिए जत्थे गुंबद पर चढ़ गए। सभी ने ढांचा तोड़ना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में गुंबद का बड़ा हिस्सा धराशायी हो गया। मैं भी मलबे के साथ नीचे आ गिरा। प्रशासन को लगा, मैं जीवित नहीं बचा, तो मुझे मुर्दाघर में रखवा दिया गया। 24 घंटे बाद जब मुझे होश आया, तो खुद को लाशों के बीच पाया। मुझे कुछ लोग अस्पताल लेकर गए। यहां खाना बांटने वालों से मदद मांगी, तो उन्होंने गाड़ी में ढंककर अयोध्या में शिविर तक पहुंचा दिया। यहां साथियों ने मेरे शव को उज्जैन लेकर जाने के लिए बर्फ की व्यवस्था कर रखी थी।’
ये कहना है, उज्जैन के रहने वाले अशोक मंडलोई का। वे उन लोगों
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