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इंदौर22 मिनट पहले
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ये है इंदौर का 232 साल पुराना श्री यशोदा माता मंदिर। इंदौर के पश्चिम क्षेत्र में राजबाड़ा के पास खजूरी बाजार में ये मंदिर स्थापित है। आपने कृष्ण मंदिर तो कई देखे होंगे। मगर ये मंदिर ऐसा है जहां माता यशोदा की गोद में भगवान कृष्ण विराजमान हैं। संतान प्राप्ति के लिए यहां यशोदा माता की गोद भराई के लिए विदेशों से भी महिलाएं आ चुकी हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी और उसके दूसरे दिन भी यहां गोद भराई के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं आती हैं। वहीं जिनकी शादी नहीं होती है वे भी यहां आकर भगवान कृष्ण को जायफल की माला पहनाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी शादी हो जाती है।
चलिए पहले आपको इस मंदिर के बारे में बताते है…
खजूरी बाजार स्थित श्री यशोदा माता मंदिर की स्थापना 232 साल पहले पं. आनंदी लाल दीक्षित ने की। इस मंदिर में यशोदा माता की प्रतिमा है, जिसमें माता अपनी गोद में श्रीकृष्ण को लेकर विराजमान है। उनके साथ ही नंद बाबा और दाई मां की भी प्रतिमा विराजित है। दूसरी तरफ श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी चींटी उंगली में लेकर खड़े हैं।
उनके आसपास राधा और रुक्मिणी विराजमान हैं। कुछ ही दूरी पर दो ग्वाल बाल और उनके साथ गाय हैं जो अपने बछड़े को दूध पिला रही हैं। इनके पास में ही लक्ष्मी नारायण भी विराजमान हैं। मंदिर के वर्तमान पंडित का दावा है कि यह भारत का एकमात्र यशोदा माता का मंदिर है।
जयपुर से 45 दिनों में बैलगाड़ी पर आई थी प्रतिमाएं
इस मंदिर में माता यशोदा, भगवान कृष्ण सहित सभी प्रतिमाएं उस वक्त जयपुर से इंदौर लाई गई थी। 45 दिनों का सफर तय कर ये प्रतिमाएं इंदौर पहुंची। जहां इन प्रतिमाओं को विधि-विधान के साथ मंदिर में स्थापित किया गया। इन प्रतिमाओं की बात करें तो यशोदा माता की प्रतिमा साढ़े तीन फीट है, उनके साथ नंद बाबा की प्रतिमा है, जो यशोदा माता से छोटी है। साथ ही दाई मां की प्रतिमा है। भगवान श्रीकृष्ण की ब्लैक मार्बल की 3 फीट की प्रतिमा है। साथ ही राधा-रुक्मिणी की सफेद मार्बल की ढ़ाई फीट की प्रतिमा है।

गोवर्धन पर्वत उठाए राधा-रुक्मिणी के साथ भगवान श्रीकृष्ण।
गोद भराई के लिए विदेशों से भी आ चुकी महिलाएं
इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां माता यशोदा की गोद भराई के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं आती है। खासकर कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर। पं. मनीष कुमार दीक्षित ने बताया कि माता यशोदा का चमत्कार है कि जिन महिलाओं को संतान नहीं है वे मंदिर में आकार माता की गोद भरती है।
मान्यता है कि यहां गोद भरने से उनके यहां संतान की प्राप्ति होती है। प्रति गुरुवार को गोद भराई मंदिर में होती है। उन्होंने बताया कि विदेश में रहने वाली भारतीय महिलाएं भी विदेशों से यहां आकर गोद भराई कर चुकी हैं। कोरोना काल के पहले ही यहां अमेरिका, सिंगापुर से महिलाएं गोद भराई के लिए आई थी। यहां नीरा दीक्षित द्वारा गोद भराई की प्रक्रिया पूरी करवाई जाती है।

भगवान कृष्ण को गोद में लिए माता यशोदा।
भगवान कृष्ण को पहनाते हैं जायफल की माला
पं. दीक्षित ने बताया कि यहां वे भक्त भी आते हैं जिनकी शादी नहीं होती है। वे यहां आकर भगवान कृष्ण को 11 जायफल की माला अर्पित करते हैं। मान्यता है कि जायफल की माला पहनाने से उनकी शादी हो जाती है। केवल गुरुवार के दिन ही भगवान को ये माला अर्पित की जाती है।
मंदिर में हो रही खूबसूरत सजावट
यशोदा माता मंदिर में 7 सितंबर, गुरुवार को जन्माष्टमी महोत्सव मनाया जाएगा। दो दिनी महोत्सव को लेकर मंदिर में खूबसूरत सजावट की गई है। मंदिर को बाहर से लेकर अंदर तक सजाया जा रहा है। साथ ही रंग बिरंगी लाइटिंग यहां की जा रही है। भक्तों को दर्शन करने में परेशानी न हो इसके लिए महिलाओं-पुरुषों की अलग-अलग लाइनें रहेंगी।

जन्माष्टमी पर मंदिर में हो रही सुंदर सजावट।
दो दिन होंगे आयोजन
पं.मनीष दीक्षित ने बताया कि 6,7 और 8 सितंबर को सुबह 9 से 12 बजे तक संतान प्राप्ति के लिए यशोदा माता की गोद भराई होगी। 7 और 8 सितंबर को मंदिर में भव्य आयोजन होंगे। इसमें 7 सितंबर को सुबह 6 बजे महाभिषेक होगा। रात 12 बजे भगवान की महापूजा और जन्म आरती होगी। इसके बाद 12.20 बजे प्रसाद वितरण किया जाएगा।
8 सितंबर को नंद उत्सव, छप्पन भोग दर्शन और शाम 7 से 9 बजे तक प्रसाद वितरण होगा। रात 9 बजे से भजन संध्या होगी। जन्माष्टमी पर मेवा युक्त 100 किलो फरियाली पंजरी तैयार की जा रही है। साथ ही एक हजार किलो खिचड़ी और माखन मिश्री का विशेष प्रसाद बांटा जाएगा।
चौथी पीढ़ी संभाल रही मंदिर की व्यवस्था
मंदिर के प्रथम महंत पं. आनंदीलाल दीक्षित थे। उनके बाद उनकी बेटी महंतानी अन्नपूर्णा बाई ने मंदिर की परंपरा को कायम रखा। उनके बाद महंत पं. राजेंद्र कुमार दीक्षित ने चालीस वर्षों तक इस मंदिर का संचालन किया। वर्तमान में ब्रह्मलीन महंत राजेंद्र कुमार दीक्षित के दो बेटे पं. महेंद्र कुमार दीक्षित और पं. मनीष कुमार दीक्षित इस मंदिर का संचालन कर रहे हैं। पं. मनीष दीक्षित ने बताया कि आनंदीलाल जी को स्वप्न आया था, जिसके बाद उन्होंने इस यशोदा माता मंदिर की स्थापना की थी।
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