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Airforce steps up in self-reliant India | एयरफोर्स में उपयोगी कई पार्टस अब DRDO के सहयोग से भारत में ही बन रहे

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ग्वालियर20 मिनट पहले

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एयरफोर्स और मीडिया के बीच ओरिएंटेशन कैप्सूल कार्यक्रम के बाद स्वदेशी तकनीक से बने मिसाइल को दिखाया गया। - Dainik Bhaskar

एयरफोर्स और मीडिया के बीच ओरिएंटेशन कैप्सूल कार्यक्रम के बाद स्वदेशी तकनीक से बने मिसाइल को दिखाया गया।

  • एयरफोर्स में हुआ मीडिया ओरिएंटेशन कैप्सूल वर्कशॉप

एयरफोर्स का ग्वालियर सेंटर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। देश के कई सीक्रेट मिशन से लेकर ट्रेनिंग सेंशन तक ग्वालियर एयरबेस से उड़े फाइटर प्लेन ने अपना लोहा मनवाया है। पर इंडियन एयरफोर्स आत्मनिर्भर भारत की सोच के तहत आगे कदम बढ़ा रही है। ऐसे पार्टस जो एयरफोर्स के लिए उपयोगी हैं और अभी तक भारत उनके लिए दूसरे देशों पर निर्भर था अब वह पार्टस भारत में ही निजी क्षेत्र में तैयार हो रहे हैं। इसके लिए भारत के रक्षा अनुसंधान विभाग DRDO की प्रमुख भूमिका है। इतना ही नहीं भारत ने स्वदेशी को बढ़ावा देते हुए अपनी आकाश मिसाइल को भी अनेक स्थानों पर तैनात किया है।

मीडिया से बात करते एयरफोर्स के अफसर

मीडिया से बात करते एयरफोर्स के अफसर

भारतीय तकनीक की विदेशों में बढ़ने लगी डिमांड
इसके साथ ही हल्का लडाकू विमान “तेजस’ जिसे हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड ने बनाया है। “तेजस’ को भी अमेरिका सहित अन्य देशों ने खरीदने में रूचि दिखाई है। इतना ही नहीं आत्म निर्भर भारत के तहत अब कई विमान से लेकर अन्य उपकरण भी स्वदेशी बनने लगे हैं इससे तकनीक का लाभ भारत को मिलेगा ही वहीं विदेशी पैसे का निर्यात भी रूकेगा और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण होगा।
वायुसेना की क्षमता, उपलब्धियां किसी से कम नहीं : एम रंगाचारी
इंडियन एयरफोर्स का अपना एक समृद्ध गौरवशाली इतिहास है। वायुसेना की क्षमता और उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। वायुसेना अपने देश के लिये हर मुकाबले के लिये सदैव तत्पर है। इसी के साथ वायुसेना विभिन्न सामायिक विषयों पर भी सबसे बेहतर कार्य कर रही है। सोमवार को ग्वालियर एयरफोर्स स्टेशन पर मीडिया के साथ आपसी समझ बढ़ाने और भविष्य में भी एयरफोर्स और मीडिया बीच सहयोग को और मजबूत करने के प्रयास के चलते मीडिया ओरिएंटेशन कैप्सूल कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ एयर कमोडोर एम रंगाचारी ने किया। उन्होंने एयरफोर्स को एक महत्वपूर्ण केन्द्र बताते हुये मीडिया कर्मियों से भी विभिन्न सामायिक विषयों पर सहयोग करने का आव्हान किया। इस कार्यशाला में भारतीय वायु सेना के समृद्ध गौरव शाली इतिहास की एक झलक भी दिखाई दी। इस मौके पर वायुसेना के अधिकारियों ने वायु सेना की महत्वपूर्ण क्षमताओं, उपलब्धियों और राष्ट्र निर्माण में निभाई जा रही भूमिका को मीडिया के सामने रखा।

स्क्रीन पर एयरफोर्स की पूरी जर्नी पर प्रेजेंटेशन देते हुए अफसर

स्क्रीन पर एयरफोर्स की पूरी जर्नी पर प्रेजेंटेशन देते हुए अफसर

ऐसे रहा एयरफोर्स का पूरा सफर
एयर कमोडोर माधव रंगाचारी ने बताया कि 1932 में वायुसेना ने रॉयल एयरफोर्स के छह ट्रेंड अधिकारियों और 19 सीपॉई के साथ अपना सफर शुरू किया था। उसके बाद से एयरफोर्स ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। साढ़े चार साल बाद, विद्रोही भिट्टानी आदिवासियों के खिलाफ भारतीय सेना के अभियानों का समर्थन करने के लिए उत्तरी वजीरिस्तान के मिरानशाह से पहली बार ‘ए’ फ्लाइट ने उड़ान भरी थी। इस बीच अप्रैल 1936 में विंटेज वैपिटी पर एक ‘बी’ फ्लाइट भी बनाई गई थी, लेकिन जून 1938 तक ऐसा नहीं हुआ था कि नंबर 1 स्क्वाड्रन को पूरी ताकत से लाने के लिए ‘सी’ उड़ान उठाई गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर यह एक मात्र आईएएफ गठन बना रहा, हालांकि कर्मियों की संख्या अब 16 अधिकारियों तक बढ़ गई थी और सीपॉई 662 थे । इसके बाद धीरे-धीरे एयरफोर्स ने लगातार वृद्धि की और अब रॉयल एयरफोर्स से इंडियन एयरफोर्स 1947 में एक कमेटी बनाकर तैयार की गई।
एयरफोर्स के पास आज विश्व के टॉप फाइटर प्लेन हैं
इंडियन एयरफोर्स के पास आज विश्व के सर्वोत्तम पांचवी पीढी का विमान रफाल, चेतक, एमआई हेलीकाप्टर तक हैं। इसी के साथ मिग सीरीज के विमानों के साथ मिराज , बाइसन आदि लडाकू विमान भी भारत ने पाए हैं। इतना ही नहीं मिराज ने भारत सहित अन्य देशों में भी अपनी सेवाएं देकर वायुसेना का लोहा विश्व में मनवाया है। वहीं स्वदेशी लडाकू विमान तेजस भी अब आत्म निर्भर योजना में अपनी धूम मचा रहा है। स्वदेशी मिसाइल आकाश तथा रडार सिस्टम तक भारत स्वयं का निर्माण कर रहा है।
इंडियन एयरफोर्स सुरक्षा को लेकर भी सतर्क
भारतीय वायुसेना अपनी सुरक्षा के प्रति भी सतर्क रहती है। इसी के तहत जिला प्रशासन की एक कमेटी के साथ समय समय पर वायुसेना के अधिकारी बैठक कर समस्याओं को दूर करते हैं। साथ ही लडाकू विमान के लिए सबसे घातक पक्षियों को रोकने के लिए भी वायुसेना और जिला प्रशासन समय समय पर वातावरण तैयार कर रहे हैं। लडाकू विमानों को सबसे ज्यादा माइग्रेट कर आने वाले पक्षियों से खतरा अधिक है। वहीं प्रशासन और वायुसेना के अधिकारी हवाई उडान क्षेत्र में भी लगातार समीक्षा कर तय सीमा में बन रहे पक्के निर्माणों को भी हटवा रही है। साथ ही अन्य वन पशुओं से भी निपटने के उपाय भी करती रही है।
प्राकृतिक आपदाओं में भी एयरफोर्स निभाती है भूमिका
वायुसेना के अधिकारियों ने बताया कि वायुसेना विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी अपने विमानों हेलीकाप्टरों के साथ मानव जीवन को सुरक्षित करने के साथ ही लोगों तक भोजन अन्य सामग्री पहुंचाने में भी मदद करती है। इंडियन एयरफोर्स ने विदेशों में भी जाकर मानव जीवन की रक्षा की है। जिसमें श्रीलंका, हेती, सीरिया, आदि देशों में जाकर उन्हें सहायता पहुंचाई है। यूक्रेन युद्ध में भी वहां से भारतीय छात्रों को वायुसेना द्वारा भारत वापस लाया गया है। वहीं वायुसेना ने हाल ही में पाकिस्तान,चीन के साथ हुये युद्ध में भी अपने कौशल को दिखाया है। यह मीडिया ओरिएंटेशन कैप्सूल भारतीय वायु सेना की एकजुटता को बढ़ावा देने और मीडिया के साथ संचार बढ़ाने की प्रतिबद्धता की दिशा में भी एक प्रयास था। कार्यक्रम में मीडिया कर्मियों ने बेस पर लड़ाकू विमान और अन्य हथियार प्रणालियों का स्टैटिक डिस्प्ले भी देखा। कैप्सूल के दौरान एयरोस्पेस शक्ति के प्रमुख सैद्धांतिक पहलुओं, हालिया और आगामी प्रेरणों के माध्यम से आत्मानिर्भरता के लिए भारतीय वायुसेना की खोज, विभिन्न अभियानों के दौरान भारतीय वायु सेना द्वारा निभाई गई तारकीय भूमिका और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।

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