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Prisoners learning to make idols and lamps | बैतूल जेल में मिट्‌टी की कला को बढ़ावा देने की पहल शुरू

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बैतूल24 मिनट पहले

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जिला जेल के बंदियों को चिखलार और सोनाघाटी से लाई गईं मिट्टी से मूर्तियां बनाना सिखाया जा रहा है। मूर्तिकला में रुचि रखने वाले 60 बंदियों जिनकी रुचि कलात्मक क्षेत्र में है। उन्हें शहर के प्रख्यात मूर्तिकारों द्वारा मूर्तियां बनाना सिखाया जा रहा है।

विधिक सेवा प्राधिकरण के सकारात्मक प्रयास से जिला जेल के बंदी और कैदी इस बार गणेश उत्सव के लिए प्रतिमा अपने हाथों से बना रहे हैं। इतना ही नहीं वे दीपावली के दीये भी स्वयं ही बनाएंगे। जेलर योगेंद्र पवार ने बताया कि इन दीपों से जेल परिसर को दीपावली पर रोशन किया जाएगा। इसके लिए शहर के मूर्तिकार रोजाना विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से जेल में 60 कैदी और बंदी को प्रशिक्षण दे रहे हैं। इससे उनके भीतर छिपी रचनात्मकता सामने आ रही है, वहीं कला से जुड़ने के कारण उनका डिप्रेशन भी दूर हो रहा है।

3 घंटे दिया जा रहा मूर्ति कला का प्रशिक्षण

रोजाना दोपहर में 12 से 3 बजे तक तीन घंटे की मूर्तिकला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मूर्तियों के साथ ही दीपावली के लिए दीये भी बनाए जा रहे हैं। इन्हें बाजार में नहीं बेचा जाएगा। इन्हें बंदी जेल में ही त्योहार मनाने में उपयोग करेंगे। प्रख्यात मूर्तिकार सुनील प्रजापति और उनके साथी अनिल प्रजापति इन बंदियों को मूर्तियां बनाना सिखा रहे हैं। इसके लिए मूर्तियों के निर्माण के लिए उपयुक्त मिट्टी भी वे चिखलार और सोनाघाटी से चुनकर ला रहे हैं। इसमें कितना पानी डालना है, किस तरह हाथ चलाना है। अंगुलियों का घुमाव किस तरह देना है। यह सिखाते हुए मूर्तियां बनवा रहे हैं। मिट्टी को मूर्तियों का आकार देने की यह कला उनमें विकसित हो रही है। साथ ही यह भविष्य में उनके काम भी आएगी। जो गणेश प्रतिमाएं कैदी बना रहे हैं। उस प्रतिमा को गणेश उत्सव के समय स्थापित किया जाएगा।

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