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Castes dominate the electoral politics of MP | 230 विधानसभा सीटों में से 193 पर ये गेमचेंजर; बीजेपी-कांग्रेस पर इन्हें संतुष्ट करने का दबाव

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भोपाल41 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा

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मध्यप्रदेश में जाति की राजनीति कितनी हावी है, इसका अनुमान शिवराज सरकार के हालिया मंत्रिमंडल विस्तार से लगाया जा सकता है। भले ही यह भाजपा सरकार का अब तक का सबसे छोटा मंत्रिमंडल विस्तार है, लेकिन इसके मायने बहुत बड़े हैं।

तीन मंत्रियों को शपथ दिलाकर दो वर्गों- ब्राह्मण और पिछड़ों को साधने की कोशिश की गई है। राज्य में यह पहला मौका है, जब दोनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस जातिगत समीकरण पर विशेष फोकस कर रही हैं।

ब्राह्मण, राजपूत, यादव, कुशवाहा और लोधी समाज का मध्यप्रदेश की राजनीति में वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। इसका कारण इन समाजों से जुड़े लोगों की संख्या दो से सवा दो करोड़ होना है, जो मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 में से 88 सीटों पर गेमचेंजर हैं।

वहीं, शिवराज सरकार ने जिन एक दर्जन से अधिक समाजों के बोर्ड इसी साल गठित किए हैं, वे 105 सीटों पर दबदबा रखते हैं। सीधा मतलब ये है कि 230 में से 193 सीटों पर जाति आधारित वोटर सबसे बड़ा फैक्टर है।

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि सरकार 2018 की गलती को दोहराना नहीं चाहती। इस बार किसी भी वर्ग को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती, इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर जाति और वर्ग को साधने का प्रयास कर रहे हैं।

शनिवार को हुआ मंत्रिमंडल विस्तार और पिछले दिनों आई 39 प्रत्याशियों की पहली सूची इसी रणनीति की बानगी है, जिसमें बीजेपी आदिवासी, अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है।

2018 के चुनाव से पहले मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस डेढ़ दर्जन समाजों को साधने में सफल हो गई थी। यही वजह है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में कारगर साबित हुए छोटी जातियों को साधने के फॉर्मूले पर मध्यप्रदेश में भी काम कर रही है।

पहले समझते हैं एमपी की राजनीति में क्यों हावी हो गई जातियां..

यादव समाज : बुंदेलखंड में पांसा पलटने की ताकत, ग्वालियर-चंबल में भी प्रभाव

यादव समाज का मध्यप्रदेश की राजनीति में अहम रोल है। इसकी आबादी 80 से 90 लाख है। इनमें से 50 लाख से अधिक वोटर हैं, जो आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजों पर काफी प्रभाव डाल सकते हैं। बुंदेलखंड में इनका राजनीतिक वर्चस्व ज्यादा है। ग्वालियर-चंबल में भी इनके प्रभाव को कोई भी पार्टी नजरअंदाज नहीं कर सकती।

प्रदेश में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ही यादव समुदाय के नेता हैं। कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव लंबे समय से अहम पदों पर रहे हैं। इस चुनाव में उन्हें बुंदेलखंड के यादव बहुल चार जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। उनके अलावा सचिन यादव (कसरावद), संजय यादव (बरगी), लाखन सिंह यादव (भितरवार) और हर्ष यादव (देवरी) जैसे विधायक इस समुदाय से मौजूदा समय में कांग्रेस के अहम नेता हैं।

बीजेपी में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव (उज्जैन दक्षिण), ब्रजेंद्र सिंह यादव (मुंगावली) और शिशुपाल यादव (पृथ्वीपुर) जैसे विधायक इस समुदाय से ही हैं।

राजपूत समाज : 40-45 सीटों पर दबदबा, करणी सेना जैसे ताकतवर संगठन

पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एससी-एसटी एक्ट के विरोध में सवर्ण समाज के संगठनों ने प्रदर्शन किए थे। इसमें राजपूत समाज के करणी सेना जैसे संगठनों ने अगुवाई की थी। इसकी वजह से ग्वालियर, चंबल और मालवा जैसे अंचलों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा था।

भले ही राजपूत समाज की आबादी करीब 65 लाख है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व में इनका दबदबा है। प्रदेश की 230 सीटों में से 34 सीटों पर इस समाज के विधायक हैं।

इसी साल जनवरी में करणी सेना ने भोपाल में 22 मांगों को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया था। इसमें दो मांगें मुख्य थीं। पहली- जाति की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया जाए। दूसरी- एससी-एसटी एक्ट में बिना जांच के गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए।

इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजपूत समाज का सम्मेलन बुलाकर कई घोषणाएं की थीं। इसी दौरान महाराणा प्रताप की जयंती पर प्रदेश में अवकाश का ऐलान भी किया गया था।

कुशवाहा समाज : ग्वालियर-चंबल, सागर संभाग की 24 सीटों पर सीधा दखल

MP में कुशवाहा समाज के लोगों की आबादी करीब 80 लाख है। इनका ग्वालियर-चंबल और सागर संभाग की 24 सीटों पर प्रभाव है। फिलहाल, कुशवाहा समाज से 8 विधायक हैं। इनमें से ग्वालियर ग्रामीण से विधायक भारत सिंह कुशवाहा शिवराज सरकार में राज्यमंत्री हैं। खास बात यह है कि ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में ही कुशवाहा समाज के मतदाताओं की संख्या ढाई लाख से ज्यादा है।

शिवराज सरकार ने हाल ही में कुशवाहा समाज कल्याण बोर्ड बनाया है। इसके अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि प्रदेश में भगवान कुश का भव्य मंदिर और कुशवाहा समाज की धर्मशाला का निर्माण किया जाएगा।

विंध्य में सबसे ज्यादा 29 प्रतिशत वोटर सवर्ण, इनमें से आधे ब्राह्मण

मध्यप्रदेश का विंध्य, देश के उन क्षेत्रों में से एक है, जहां ब्राह्मण आबादी बहुत ज्यादा है। यहां करीब 14% ब्राह्मण वोटर हैं। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के मुताबिक, राज्य के 29% सवर्ण वोटर विंध्य क्षेत्र से ही आते हैं। विंध्य के सात जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 23 सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मण आबादी 30% से भी ज्यादा है।

मध्यप्रदेश में करीब 45 लाख ब्राह्मण वोटर हैं, जो कुल वोट बैंक का करीब 10% है। विंध्य के अलावा महाकौशल और चंबल अंचल की करीब 60 से अधिक सीटों पर ये निर्णायक वोटर भी हैं।

5 समाज, पांच मंत्रियों के साथ हुई थी शिवराज की चौथी पारी की शुरुआत

कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। उनकी चौथी पारी की शुरुआत में जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए 5 मंत्री बनाए गए। डाॅ. नरोत्तम मिश्रा ब्राह्मण, तुलसी सिलावट दलित, गोविंद सिंह राजपूत सवर्ण, मीना सिंह आदिवासी और कमल पटेल ओबीसी के जाट समाज से आते हैं।

शिवराज कैबिनेट में अब 33 मंत्रियों का जातीय समीकरण

33% क्षत्रिय- शिवराज कैबिनेट में 33 में से 9 सदस्य क्षत्रिय हैं। इस वर्ग के महेंद्र सिंह सिसोदिया, गोविंद सिंह राजपूत, अरविंद सिंह भदौरिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, यशोधरा राजे सिंधिया, बृजेंद्र प्रताप सिंह, ऊषा ठाकुर और ओपीएस भदौरिया मंत्री हैं।

33% OBC- कैबिनेट के 11 सदस्य भूपेंद्र सिंह, कमल पटेल, गौरीशंकर बिसेन, मोहन यादव, भारत सिंह कुशवाह, रामकिशोर कांवरे, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, राहुल लोधी और इंदर सिंह परमार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वर्ग से हैं।

4 ST, 3 SC- अनुसूचित जनजाति (ST) कोटे से विजय शाह, बिसाहूलाल सिंह, मीना सिंह और प्रेम सिंह मंत्री हैं। वहीं, जगदीश देवड़ा, तुलसी सिलावट और प्रभुराम चौधरी अनुसूचित जाति (SC) वर्ग से आते हैं।

3 ब्राह्मण- इस कोटे से अब तक दो मंत्री नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव थे। राजेंद्र शुक्ला के शामिल होने से तीन मंत्री हो गए हैं।

इस तरह बढ़ रहा मध्यप्रदेश की राजनीति में जाति का महत्व..

सियासी जानकार बताते हैं कि 1957 यानी नए मध्यप्रदेश के पहले चुनाव के समय 20% विधायक सवर्ण थे, मतलब हर पांचवां विधायक इस वर्ग से था। 1972 में यह आंकड़ा 25% हो गया। इसके बाद हालात बदले। डीपी मिश्र और श्यामाचरण शुक्ल जैसे कद्दावर नेताओं के साथ सवर्णों का वर्चस्व घटता गया।

1980 के बाद अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में राजपूत हावी होते रहे। बीजेपी में उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के युग में ओबीसी वर्ग को बढ़ावा मिला।

राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि जातीय समीकरण किस प्रकार राजनीति को बदलते हैं, इसे सीधे और ऊपरी गिनती से नहीं, अंडर करंट से समझा जाना चाहिए। लंबे समय तक आदिवासी और अनुसूचित जाति को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था।

वे उदाहरण देते हुए बताते हैं कि दिग्विजय सिंह ने 2003 में चुनाव परिणाम की सूचना के दौरान जैसे ही सुना कि झाबुआ से कांग्रेस हार गई, तब उन्होंने समझ लिया कि सरकार का जाना तय है। बीजेपी पहले ब्राह्मण और बनियों की पार्टी मानी जाती थी, लेकिन उसे चुनाव में ओबीसी का साथ मिलने से ही पार्टी को बहुमत मिला और वो सत्ता में आई थी।

कांग्रेस ने सवर्णों को मुख्यमंत्री बनाया, बीजेपी ने पिछड़ों को बढ़ाया

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का पद भी जातीय राजनीति से अछूता नहीं रहा है। कांग्रेस के सभी मुख्यमंत्री सवर्ण रहे तो बीजेपी ने पिछड़ों को आगे बढ़ाया। राजनीति के जानकार 1980 का एक घटनाक्रम बताते हैं, जब मुख्यमंत्री पद के लिए आदिवासी नेता शिवभानु सोलंकी ने अर्जुन सिंह को कड़ी टक्कर दी थी।

1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्कालीन विधानसभा की 320 में से 246 सीटें जीती थीं। मुख्यमंत्री पद के लिए अर्जुन सिंह और शिवभानु सोलंकी के बीच मुकाबला था। तीसरी दावेदारी कमलनाथ ने कर दी थी। हाई कमान ने तब प्रणव मुखर्जी को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। ज्यादातर विधायक सोलंकी को सीएम बनाने के पक्ष में थे, लेकिन कमलनाथ ने अपना समर्थन अर्जुन सिंह को दे दिया था। ऐसे में अर्जुन सिंह सीएम और सोलंकी डिप्टी सीएम बने।

1993 में अर्जुन सिंह, सुभाष यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन दिग्विजय सिंह ही मुख्यमंत्री बने। अगर सुभाष यादव मुख्यमंत्री बनते तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस को पहला ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय मिलता। 1957 से लेकर 1998 तक कांग्रेस के 11 मुख्यमंत्री बने, ये सभी सवर्ण समाज के थे। 2003 में बीजेपी ने उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाकर प्रदेश को पहला ओबीसी सीएम देने का श्रेय अपने नाम किया। इसके बाद बाबूलाल गौर और अब शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से ही मुख्यमंत्री हैं।

एक सीट ऐसी, जहां 61 साल में 22 बार ब्राह्मण ही विधायक बने

मध्यप्रदेश में होशंगाबाद एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां 61 साल में 22 बार ब्राह्मण ही विधायक बना। भले ही पार्टी कोई भी रही हो। इसकी सिर्फ एक ही वजह है कि यह क्षेत्र सवर्ण बहुल है। बता दें कि 2003 में इटारसी सीट को भंग कर इसे होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र में जोड़ दिया गया। इसके बाद सोहागपुर के नाम से नई सीट अस्तित्व में आई। यह गुर्जर बहुल है। नई सीट बनने के बाद से गुर्जर समाज के मेहरबान सिंह, रनवीर पटेल और विजयपाल सिंह विधायक बने।

अब जानिए, समाज कल्याण बोर्ड के हाल..

माटी कला बोर्ड : बिल्डिंग तक नहीं, चुनाव से पहले बनाया अध्यक्ष

वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश सरकार ने माटी कला बोर्ड की स्थापना की थी, लेकिन इसका लाभ प्रजापति समाज को नहीं मिला। स्थिति यह है कि मिट्टी में खुशबू बिखेरने की कला सिखाने वाले माटी कला बोर्ड का स्वयं का भवन ही नहीं है। जब बोर्ड का गठन हुआ था, तब उज्जैन के अशोक प्रजापति को अध्यक्ष बनाया गया था।

उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद लंबे समय तक किसी की नियुक्ति नहीं की गई। चुनावी साल में जनवरी 2023 में पूर्व विधायक आरडी प्रजापति को बोर्ड की कमान सौंपी गई है। समाज का दावा है कि प्रदेश में 65 लाख से अधिक कुम्हार हैं। इनमें से 40 लाख अब भी अपने परंपरागत पेशे से जुड़े हैं।

केश शिल्पी बोर्ड : 2013 में गठन, चुनाव से पहले होती है अध्यक्ष की नियुक्ति

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2013 के चुनाव के पहले सेन समाज की पंचायत बुलाई थी। इसमें केश शिल्पी बोर्ड के गठन का ऐलान किया गया। बोर्ड बन भी गया। धार के नंदकिशोर वर्मा को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। चुनाव से ठीक एक महीने पहले वर्मा को राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया गया, लेकिन उनका कार्यकाल मात्र 6 महीने रहा।

2018 चुनाव से पहले दिसंबर 2017 में एक बार फिर वर्मा को अध्यक्ष बनाया गया। खास बात यह है कि उनकी नियुक्ति के दोनों आदेशों में यह उल्लेख नहीं किया गया था कि अध्यक्ष का कार्यकाल कितना होगा। अब 2023 चुनाव के ठीक पहले 21 जुलाई को सरकार ने यह कुर्सी फिर वर्मा को सौंप दी है। हालांकि, इस बार नियुक्ति आदेश में उनका कार्यकाल दो साल का बताया गया है।

प्राधिकरणों की नियुक्तियों में भी जातीय समीकरण..

देवास विकास प्राधिकरण– बीजेपी के जिला महामंत्री राजेश यादव को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। 2014 से प्राधिकरण में अध्यक्ष का पद खाली था, कलेक्टर इसकी कमान संभाले हुए थे। यादव की नियुक्ति तब हुई, जब अहीर रेजिमेंट की मांग को लेकर 28 फरवरी को यादव समाज ने भोपाल में शक्ति प्रदर्शन किया था। इसमें प्रदेशभर से यादव समाज के 25 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे।

कटनी विकास प्राधिकरण- पीतांबर टोपनानी को अध्यक्ष बनाया गया है। उनकी नियुक्ति से पहले भोपाल में सिंधी समाज का सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत शामिल हुए थे। MP में सिंधी समाज की आबादी 9 लाख से ज्यादा है। खासकर कटनी जिले के व्यापार में सिंधी समाज का वर्चस्व है।

सिंगरौली विकास प्राधिकरण- दिलीप शाह की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति इस जिले में आदिवासियों को खुश करने की कोशिश के तौर पर देखी जा रही है। निकाय चुनाव में बीजेपी को महापौर पद से हाथ धोना पड़ा था। यहां तीन में से एक विधानसभा सीट आदिवासी बाहुल्य है। जिले की कुल 11 लाख 79 हजार जनसंख्या में 3 लाख 83 हजार से ज्यादा आदिवासी हैं।

25 सीटों पर जीत-हार तय करते हैं मुसलमान, लेकिन प्रतिनिधित्व घटा..

मध्यप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटा है। पिछले 7 चुनावों में केवल 9 मुस्लिम विधायक बने हैं। 2018 में दो ही मुस्लिम प्रत्याशी- कांग्रेस से आरिफ अकील और आरिफ मसूद (दोनों भोपाल) चुनाव जीते।

राज्य में 50 लाख से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। ये मालवा-निमाड़, भोपाल संभाग सहित अन्य क्षेत्रों की 25 सीटों पर असर डालते हैं। इनमें भोपाल की नरेला विधानसभा, बुरहानपुर, शाजापुर, देवास, रतलाम सिटी, उज्जैन उत्तर, जबलपुर पूर्व, मंदसौर, रीवा, सतना, सागर, ग्वालियर दक्षिण, खंडवा, खरगोन, इंदौर-एक, देपालपुर शामिल हैं।

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