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इंदौर4 मिनट पहले
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इंदौर के राजबाडा क्षेत्र में फुटपाथ विक्रेताओं के खिलाफ नगर निगम का अभियान दो दिन से फिलहाल ठण्डा है। इसका कारण फुटपाथ विक्रेताओं द्वारा राखी के लिए पहले से की गई खरीदी है जिसे वे इन चारों दिनों में ज्यादा से ज्यादा सेल करना चाहते हैं। खास बात यह कि राजबाडा सहित आसपास के बाजारों में 1100 से ज्यादा फुटपाथ विक्रेता हैं।
ये लोग ट्रेड लाइसेंस, बिना बिल और जीएसटी के लम्बे समय से धंधा कर रहे हैं। इन छोटे विक्रेताओं द्वारा सालाना 50 करोड़ रु. की जीएसटी नहीं चुकाया जाता। यह आंकड़ा तो सिर्फ राजबाडा के आसपास के क्षेत्रों का है जबकि शहर में हर बाजार में फुटपाथ विक्रेता हैं जिनकी संख्या हजारों में हैं।
दरअसल, तीन-चार दिन चले अभियान के बाद नगर निगम का अभियान सुस्त होने से बड़े कारोबारियों का धंधा फिर मंदा पड़ गया है। राखी के चलते बाजारों में फिर से ठिये लग गए हैं िजनसे ग्राहक मुख्य बाजारों तक पहुंच ही नहीं पहुंच पाते। उनकी अधिकांश खरीदी फुटपाथ विक्रेताओं से ही हो जाती है।
इसका कारण यह है कि इन विक्रेताओं के पास त्यौहारों व रुटिन के काम से जुड़ा वह सारा सामान है जो ग्राहकों की जरूरत है। इनमें कपडे, रेडिमेड, होजियरी, क्रॉकरी, लेदर आइटम्स, वेनिटी बैग्स, कॉस्मेटिक, जूते-चप्पल, इमिटेशन ज्वेलरी सहित ढेरों आइटम्स हैं। राखी के चलते इस बार ये सभी आइटम्स नए-नए वैरायटियों में हैं। इसके अलावा खान-पान के भी कई ठिये हैं जिससे बाजारों में पैर रखने की जगह नहीं है।

इस तरह फैला है धंधा
फुटपाथ विक्रेता वे सारा सामान बेच रहे हैं जो बड़ी दुकानों या शो रूम पर होता है। इनके द्वारा कई ब्राण्डेड कंपनियों के डुप्लीकेट नाम से सामान बेचे जा रहे हैं जो बड़ी दुकानों की तुलना में काफी कम भाव में हैं। इसके चलते अकसर यहां तगड़ी ग्राहकी देखी जा सकती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 5X5 वर्गफीट के ठिये के लिए ये विक्रेता माफियाओं को हर रोज 500 रु. से लेकर 1500 रु. किराया देते हैं। यानी एक विक्रेता द्वारा हर माह 15 15 हजार रु. से 45 हजार रु. का किराया दिया जाता है जबकि बाजारों में ऐसे 1100 विक्रेता हैं।
न बिल, न बिजली और न ही जीएसटी सहित कई टैक्स
इन 1100 विक्रेताओं को ठिये का तगडा किराया इसलिए मुनाफे वाला है क्योंकि व्यापार करने को लेकर फिर इन्हें और कोई अन्य खर्चा नहीं है। यह सारा कारोबार बिना बिल के होता है। ऐसे ही ट्रेड लाइसेंस भी इन लोगों के पास नहीं है। जहां तक बिजली का सवाल है दिन में इनका व्यापार बिना बिजली के चलता है जबकि शाम से ही बाजारों में पर्याप्त रोशनी रहती है। ऐसे ही कुछेक दुकानदारों ने इन्हें आगे जो जमीन किराए से दी है, उनकी दुकानों की रोशनी में इनका भी व्यापार हो जाता है।
3% से 18% तक जीएसटी का रुल लेकिन यहां कुछ नहीं
बड़े कारोबारियों को परेशानी इस बात से है कि शासन को हम सबसे ज्यादा टैक्स चुकाते हैं। इनके लिए ट्रेड लाइसेंस की अनिवार्यता है। बिना बिल ये व्यापार नहीं कर सकते तथा हर साल इनके द्वारा करोड़ों रु. का जीएसटी चुकाया जाता है। ऐसे में ग्राहकी नहीं होने से इनमें नाराजगी है। इन व्यापारियों का कहना है कि फुटपाथ विक्रेताओं को स्थाई रूप से हॉकर्स जोन में शिफ्ट करें तो स्थाई हल निकल सकता है। दूसरी ओर फु़टपाथ विक्रेता राजबाडा क्षेत्र के अलावा कहीं और जाने को राजी नहीं हैं क्योंकि यहां बहुत ग्राहकी होती है। यही कारण कि तीन-चार दिनों में नगर निगम ने अभियान चलाया जिसमें इनका काफी सामान जब्त किया। इसके बावजूद वे आधे घंटे बाद फिर इधर का ही रुख कर रहे हैं।
ऐसे समझे बिना GST का व्यापार
मामले में ‘दैनिक भास्कर’ ने सीनियर टैक्स प्रेक्टिशनर विनोद भट्ट से अलग-अलग आइटम्स पर जीएसटी की प्रक्रिया को समझा। इसमें पता चला कि ये 1100 वेंडर्स (फुटपाथ विक्रेता) अलग-अलग तरह का व्यापार कर रहे हैं। यहां साल करोड़ों का व्यापार होता है। िसर्फ राजबाडा क्षेत्र के ही वेंडर्स की बात करें तो इन फुटपाथ विक्रेताओं द्वारा सालभर का 50 करोड़ रु. से ज्यादा जीएसटी नहीं चुकाया जाता। इस लिहाज से हर साल शासन को करोड़ों की नुकसान हो रहा है।
हाल ही में फुटपाथ विक्रेताओं से नगर निगम ने जब सामान जब्त किया तो एक विक्रेता ने सबके सामने कहा कि मेरी आज की 30 हजार रु. की ग्राहकी चली गई और निगम ने मेरा 50 हजार रु. का माल जब्त कर लिया। अब इस उदाहरण से समझे कि कैसा है इनका बड़ा कारोबार।
होजियरी, लेदर आइटम्स, कॉस्मेटिक के 100 से ज्यादा विक्रेता 9.15 करोड़ रु. जीएसटी नहीं देते
राजबाडा और उसके आसपास के एमटी क्लॉथ मार्केट, रिटेल मार्केट, सराफा, बर्तन बाजार, पिपली बाजार, सुभाष चौक, यशवंत रोड, आडा बाजार, गोपाल मंदिर की लाइन, खजूरी बाजार, सीतलामाता बाजार, बजाज खाना, बोहरा बाजार, निहालुपरा के बाजारों में 1100 से ज्यादा वेंडर्स हैं। इनमें होजियरी (सामान्य), क्रॉकरी, लेदर आइटम्स, वेनिटी बैग्स, कॉस्मेटिक के करीब 100 से ज्यादा फुटपाथ विक्रेता हैं। ये सभी वे आइटम हैं जिनकी कीमत 1 हजार रु. से ज्यादा है। इन आइटम्स पर 18% जीएसटी का प्रावधान है। इनकी एक विक्रेता की रोज की 20 हजार रु ग्राहकी माने तो उस पर 18% से 25 दिनों का (चार अवकाश छोड़कर) हर माह 76 हजार रु. से ज्यादा का जीएसटी बनता है। यानी 100 वेंडरों का हर माह 76 लाख रु. का जीएसटी बनता है। इस तरह इस कैटेगरी में हर साल 9.15 करोड़ रु. से ज्यादा की जीएसटी चोरी की जाती है।
रेेडिमेड, जूते-चप्पलों के 400 विक्रेताओं का 25 करोड़ से ज्यादा का जीएसटी
इन बाजारों में होजियरी (लक्जरी), जूते, चप्पल के व्यापार से जुड़े करीब 400 से ज्यादा फुटपाथ विक्रेता हैं। ये आइटम्स लगभग वे ही हैं लेकिन इनकी कीमत 1 हजार रु. से कम होने के कारण इन पर 12% जीएसटी का प्रावधान है। इसमें एक दुकानदार की रोज की 20 हजार की ग्राहकी पर 2143 रु. रोज का जीएसटी होता है। लगना चाहिए। इसी तरह एक फुटपाथ विक्रेता से हर माह 53 हजार रु का जीएसटी नहीं चुकाया जाता। इसी तरह 400 विक्रेताओं द्वारा हर माह 2.14 करोड़ का जीएसटी नहीं चुकाया जाता। इस तरह सालभर में इनका सालभर का 25.71 करोड़ रु. का जीएसटी बनता है।
इनका बनता है 14.29 करोड़ का सालाना जीएसटी
इन क्षेत्रों में ऐसे करीब 500 से ज्यादा फुटपाथ विक्रेता हैं जो 1 हजार रु. से कम कीमत वाले जूते-चप्पल, रेडिमेड आइटम्स बेचते हैं। इसी कैटेगरी में खान-पान के ठिये भी हैं जो सालों से जमे हैं। इन 1 हजार रु. से कम वाले आइटम्स पर 5% जीएसटी देय है। एक दुकानदार का एक दिन का धंधा 20 हजार रु. माने तो उस पर 952 रु. जीएसटी होता है यानी माह का 23 हजार रु. का जीएसटी होता है। इस तरह 500 विक्रेताओं का 1.19 करोड़ रु. का जीएसटी हर माह होता है। इसी तरह सालभर का 14.29 करोड़ रु. का जीएसटी इनके द्वारा नहीं चुकाया जाता।
इमिटेशन ज्वेलरी विक्रेता भी नहीं चुकाते 1.75 करोड़ रु. का जीएसटी
राजबाडा क्षेत्र में में इमिटेशन ज्वेलरी के भी 25 से ज्यादा फुटपाथ विक्रेता हैं। एक विक्रेता की एक दिन की 20 हजार रु. की ग्राहकी पर एक दिन का 583 रु जीएसटी बनता है। यानी माह का 14 हजार रु. से ज्यादा जीएसटी देय हैं। इस तरह 25 दुकानदारों का 15 लाख रु. हर माह का जीएसटी होता है। यानी इनके द्वारा सालभर का 1.75 करोड़ रु. का जीएसटी नहीं चुकाया जाता।
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