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इंदौर19 मिनट पहले
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इंदौर के सहज हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने एक 70 वर्षीय रिटायर्ड फौजी जिनका एक पैर का पंजा पूरी तरह से सड़ चुका था उसे बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट से इलाज कर कटने से बचा लिया। उक्त फौजी क्रोनिक डायबिटीज पेशेंट है तथा किडनी खराब होने के कारण सात माह से डायलिसिस भी चल रहा है। उनका इलाज बॉयोलॉजिकल ट्रीटमेंट में दो प्रकार के ट्रीटमेंट से हुआ।
इसमें पहली स्टेप में हाईपरबैरिक ऑक्सीजन थैरपी (HBOT) से ट्रीटमेंट किया गया। HBOT ट्रीटमेंट सेंट्रल इंडिया में सिर्फ सहज हॉस्पिटल में ही होता है। दूसरी स्टेप में एडिपोज डराइव्ड स्ट्रोमल वसकुलर फैक्शन (ADSVF) से ट्रीटमेंट किया गया। इस ट्रीटमेंट के राइट्स पूरे भारत में केवल सहज हॉस्पिटल के पास हैं।
मामला रिटायर्ड फौजी कमलजीतसिंह अहलूवालिया निवासी सिंगापुर टॉउनशिप का है। वे बीएसएफ में पदस्थ थे। उनके बेटे जसपालसिंह ने बताया कि उन्हें करीब 15 साल से डायबिटीज थी जो बीते दो सालों में काफी बढ़ गई थी। इस बीच पिछले साल उन्हें किडनी की समस्या हो गई। डॉक्टरों ने बताया कि दोनों किडनी काम नहीं कर रही है।

कुछ दिन दवाइयों से इलाज चला और अब जनवरी से हफ्ते में दो बार नियमित डायलिसिस चल रहा है। उनका किडनी का इलाज चल रहा था कि पिछले साल दिसम्बर में उनके एक पैर का अंगूठा पलंग से टकरा गया जिससे जख्म हो गया। चूंकि उस दौरान शुगर ज्यादा थी इसलिए घाव बढ़ता गया। इसके तहत पहले उनका नाखून काटना पड़ा। इलाज चलने के बावजूद घाव बढ़ता गया और एक प्राइवेट अस्पताल में उनके अंगूठा सहित एक उंगली काटनी पड़ी।
इसलिए हुई यह परेशानी
डॉक्टरों के मुताबिक शुगर के मरीजों की नसें जल्द सिकुड़ने लगती हैं जिससे खून का प्रवाह ठीक से नहीं होता। दूसरा वृद्धावस्था भी एक कारण है जिसमें एक समय बाद शरीर के अन्य अंगों में खून का प्रवाह तो होता है लेकिन पैरों में ठीक से नहीं होता जिससे चलने-फिरने की शक्ति कम हो जाती है। इस मामले शुगर बढ़ने के कारण पंजे में काफी इन्फेक्शन हो गया था।
डॉक्टरों ने बताया कि अब अन्य उंगलियां भी काटनी पड़ी। इसके बाद परिजन ने उन्हें सहज हॉस्पिटल में दिखाया तो डॉक्टरों ने उनकी जांच की। परिजन को बताया कि उनका दो तरह के बॉयोलॉजिकल ट्रीटमेंट से होगा। इसमें पहला हाईपरबैरिक ऑक्सीजन थैरेपी (HBOT) और दूसरा एडिपोज डराइव्ड स्ट्रोमल वसकुलर फैक्शन (ADSVF) से किया गया।

जानिए क्या है HBOT
सहज हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. विनोद वोरा ने बताया कि डायबिटीक फुट, अल्सर, लकवा, क्रोनिक अल्सर, जला हुआ अंग, गैंगरीन, नॉन हिलिंग जख्म, हेड इंज्युरी, स्पाइल कॉर्ड में भीतरी चोट, अचानक दिखना या बंद हो जाना जैसी कई बीमारियां हैं जिसका इलाज इस हाईपर बैरिक ऑक्सीजन थैरपी से संभव है।

– जिन लोगों के अल्सर या जख्म ठीक नहीं होते उनके लिए यह ट्रीटमेंट काफी कारगर है।
– यह मशीन विदेश से मंगवाई गई है। जब अल्सर पूरी तरह से ठीक नहीं होते या कई बार डायबिटीज पेशेंट की उंगलियां या पैर काटने की नौबत आ जाती है, इस थैरपी से मरीजों को ऐसी स्थिति से बचाया जा सकता है।
– इसका ट्रीटमेंट कांच के बंद केबिन की तरह एक यूनिट में होता है। इसमें मरीज को एक स्ट्रेचर पर लेटाया जाता है। फिर स्ट्रेचर को आगे खिसकाकर यूनिट में सेट किया जाता है। इस दौरान मरीज सीधा लेटा होता है और हर ओर से पैक हो जाता है। अंदर फिर उसे अलग-अलग अनुपात में ऑक्सीजन दी जाती है। इससे ऑक्सीजन प्लाज्मा में डिजॉल्व हो जाती है।
– इस दौरान प्लाज्मा हर सेल में ऑक्सीजन बढ़ा देता है जिससे नई वेसल्स बनती है। ऐसे में जिस सेल में ऑक्सीजन न जाने से अंग को नुकसान हो रहा था उसमें ऑक्सीजन जाने से फिर खून प्रवाहित होने लगता है। – खास बात यह मरीज के ठीक ऊपर (कांच के बाहर) उसके मनोरंजन के लिए टीवी होता है। यह थैरेपी एक घंटे की होती है।
इस दौरान मरीज लेटकर टीवी भी देख सकता है। उसे कुछ कहना है तो वह बंद चेम्बर के अंदर से बोलता है तो बाहर मशीन संचालित कर रहे टेक्नीशियन को मशीन के स्पीकर से उसकी आवाज सुनाई देती है और कांच खुलकर उससे बात कर निदान कर सकता है।

एडिपोज ड्राइव्ड स्ट्रोमल वेस्कुलर फैक्शन (ADSVF)
– मरीज के पेट के ऊपर या एब्डोमेन के स्किन के नीचे जो चर्बी है उससे कुछ टिश्युज निकाले जाते हैं। इस दौरान मरीज को लोकल एनीस्थेसिया दिया जाता है।
– फिर निकाले गए टिश्युज से एक पेटेंटेट टेक्नोलॉजी से ऑपरेशन थिएटर में इंजेक्शन बनाया जाता है। इसमें रिजनरेट सेल्स रहते हैं। इस इंजेक्शन को मरीज के अल्सर, जख्म जहां भी जरूरत हो वहां लगाया जाता है। इससे जहां जख्म है वहां के सेल्स भी रिजनरेट होने लगते हैं। ऐसे में गहरा जख्म नए सेल बनने से ठीक होने लगता है। नए सेल्स के साथ स्किन तेजी से ग्रोथ करती है और जख्मी पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
पैर कटने से बचने के बाद कृतज्ञ है पेशेंट
मरीज कमलजीत सिंह का इलाज करने वाले डॉ. संजय कुचारिया (प्लास्टिक सर्जन) ने बताया कि उन्हें HBOT की 13 बार थैरपी दी गई। इसके बाद दूसरी स्टेप में ADSVF से ट्रीटमेंट किया। इसके चलते तीन माह में उनका पंजा जो सड़ चुका था वह घाव लगभग पूरा भर गया और वे अब फिर से धीरे-धीरे चलने लगे हैं।
इन दोनों स्टेप्स उन्हें इलाज के लिए तीन दिन ही एडमिट होना पड़ा। इसके बाद फिर परिजन उन्हें एक घंटे की थैरपी के लिए हॉस्पिटल लाते रहे। वे और उनके बेटे जसपालसिंह सहित पूरा परिनार इसके लिए सहज हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. विनोद वोरा, डॉ. संजय कुचारिया सहित पूरी टीम के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हैं।
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