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उज्जैन में नरवाई बेरोक-टोक जलाई जा रही है।
– फोटो : अमर उजाला
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गेहूं की फसल की कटाई के बाद उज्जैन जिले मे नरवाई जलाने का काम तेजी से जारी है। नरवाई जलाने को लेकर जिला प्रशासन काफी गंभीर है। नरवाई जलाने वालों के खिलाफ धारा 144 के तहत कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। इसके बावजूद जिले मे नरवाई जलाने का काम जारी है। प्रशासन के सख्त तेवरों का किसानों पर कोई असर नहीं हो रहा है।
फसल कटाई के बाद पिछले कुछ दिनों से फसल कटाई के बाद खेत में पराली (नरवाई) जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अधिकांश किसान दिन में, तो कुछ रात के अंधेरे में खेतों में पराली जला रहे हैं। इसके कारण उज्जैन के प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी हो रही है। यही वजह है कि शहर के कई घरों की छतों व बरामदों, गैलरी व सड़कों पर पराली जलाने के बाद राख के कण उड़कर पहुंचते हैं। पराली जलाने पर रोक लगाने में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन व कृषि विभाग के अधिकारी असफल रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी तो इस पर नियंत्रण लगाने को अपनी जिम्मेदारी ही नहीं मानते हैं। पिछले एक सप्ताह से पराली जलाने की घटनाओं में तेजी आ गई है। अन्य गांवों में तो किसान रात के अंधेरे में पराली में आग लगा रहे हैं। इसके अलावा चिंतामन बायपास, इंदौर, देवास व आगर रोड से लगे खेतों में भी पराली जलाने की घटनाएं बढ़ गई हैं। कृषि की जमीन के आसपास पिछले कुछ वर्षो में रहवासी क्षेत्र व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का निर्माण भी हो गया है। ऐसे में पराली जलाए जाने के कारण रहवासी व व्यवसायिक क्षेत्र के चपेट में आने का खतरा बना रहता है।
पराली जलाने पर यह है जुर्माने का प्रावधान
2 एकड़ जमीन – 2 से 5 हजार रुपये जुर्माना
2-5 एकड़ जमीन – 5 हजार रुपये जुर्माना
5 एकड़ से अधिक – 15 हजार रुपये तक जुर्माना
पराली जलाने से मृदा को होता है नुकसानः नायक
कृषि विभाग के उपसंचालक आरपीएस नायक ने बताया कि फसल काटने के बाद उसमें बची पराली को हटाने की मशक्कत से बचने के लिए किसान अक्सर उसमें आग लगाकर अगली फसल के लिए खेत को तैयार करने का प्रयास करते हैं। पराली जलाने के कारण उसमें मौजूद लाभदायक जीवाणु जलकर नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी भी खराब होती है। भूमि कठोर हो जाती है। भूमि की जल धारण क्षमता कम होती है और फसलें सूखती हैं। खेत की सीमा पर लगे पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं। खेतों में कार्बन की तुलना में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है। केंचुएं नष्ट हो जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
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