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तमिल मूवी इदी मिन्नल कधल: Hit-Run जैसे विषय पर थ्रिल और सस्पेंस का नया, मगर नाकाम प्रयोग

Idi Minnal Kadhal Movie Review : साउथ के सिनेमा ने मार्च की विदाई को जबर्दस्त और धमाकेदार बनाया है. 29 मार्च को तमिल में एक बहुचर्चित वेबसीरिज ‘इंस्पेक्टर ऋषि’ सहित 10 फिल्में रिलीज हुई हैं. भरपूर मनोरंजन के साथ आईं इन फिल्मों में हर वर्ग के दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखा गया है. इन तमिल फिल्मों में-अझागी (ड्रामा), हॉट स्पॉट (ड्रामा), एपुरा (कॉमेडी ड्रामा), वेप्पम कुलिर मझाई (कॉमेडी ड्रामा), गॉडज़िला एक्स कोंग: द न्यू एम्पायर (एक्शन, साइंस फिक्शन-थ्रिलर…यह फिल्म तेलुगु में भी है), बूमर अंकल (ड्रामा), द बॉयज़ (कॉमेडी ड्रामा), उदय गीताविन अजाही (ड्रामा), इदी मिन्नल कधल (ड्रामा-थ्रिलर) और नेत्रु इन्धा नेरम (मिस्ट्री-थ्रिलर) शामिल हैं.

अगर तेलुगु सिनेमा की बात करें, तो यहां भी 29 मार्च को कई फिल्में रिलीज हुई हैं. इनमें-मार्केट महालक्ष्मी(कॉमेडी, ड्रामा, फैमिली-रोमांस), एग्रिकोस-अनागनागा ओका रायथु(ड्रामा), टिल्लू स्कवायर(एक्शन-कॉमेडी, रोमांटिक),तालाकोना(क्राइम-ड्रामा), बहुमुखम-गुड, बेड एंड द एक्टर(साइकोलॉजिकल, सस्पेंस-थ्रिलर), कलियुगम पट्टनमलो(मिस्ट्री-थ्रिलर) शामिल हैं. वहीं, कन्नड़ में दो फिल्में-युवा(एक्शन-ड्रामा) और थारिनी(ड्रामा) रिलीज हुई हैं. मलयालम का सिनेमा इस बार सूना है. यानी कोई फिल्म रिलीज नहीं हो रही है.

हम तमिल ड्रामा-थ्रिलर ‘इदी मिन्नल कधल’ की बात करते हैं. 2 घंटे 11 मिनट की इस फिल्म का निर्देशन बालाजी माधवन ने किया है. अगर कुछ कमियों को छोड़ दें, तो ये फिल्म एक बार देखने लायक है. कहानी में नयापन है, दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ यह एक मैसेज भी देती है.

कहानी अरन (सिबी) से शुरू होती है, जिसकी गलती से हृतेश नामक एक निर्दोष पैदल यात्री की सड़क दुर्घटना(hit and run accident) में मौत हो जाती है. मृतक का एक छोटा बेटा भी है, जो अपने पिता के लौटने का इंतजार कर रहा है. अरन पुलिस के पास जाकर अपना जुर्म कबूल करना चाहता है, लेकिन उसकी प्रेमिका जननी (भव्या त्रिखा) उसे ऐसा नहीं करने देती. अरन विदेश जाने वाला था, अगर वो अपराध स्वीकार कर लेता, तो फिर विदेश जाने का उसका सपना अधूरा रह जाता. जननी एक मैकेनिक राजा (जगन) की मदद से सबूत मिटाने की कोशिश करती है.

अभि को नहीं मालूम होता है कि अपने पिता की मौत के बाद वो एक बड़ी मुसीबत में फंसने वाला है. उसके पिता ने एक साहूकार अरुल पांडियन नामक एक मनोरोगी से पैसे उधार लिए हैं. अरुल पीडोफाइल प्रवृत्ति का विलेन है. यानी उसे बच्चों के प्रति यौन आकर्षण है. अभि की मदद सेक्स वर्कर(अंजलि) करती है. आखिरकार अरन भी अपना अपराध कबूल करता है और अभि को बचाता है.

सिबी भुवनचंद्रन, भव्या त्रिखा, यास्मिन पोनप्पा जेैसे कई कलाकार फिल्म में हैं.

फिल्म की कहानी क्राइम, सस्पेंस और अपराध बोध (guilty) के साथ जुड़ीं जटिल मानवीय भावनाओं को पेश करती है. कहानी दिल को झकझोरती है.

फिल्म के मुख्य कलाकारों में सिबी भुवनचंद्रन, भव्या त्रिखा, यास्मिन पोनप्पा, राधा रवि, बालाजीशक्तिवेल, जगन पुरुषोत्तम, अजय आदित्य, विन्सेंट नकुल, मनोज मुल्लाथ आदि हैं. जहां तक कलाकारों के प्रदर्शन की बात है, तो सभी ने ठीक अभिनय किया है. अभि के किरदार में जय आदित्य प्रभावित करते हैं. हालांकि कहीं-कहीं उनकी मासूमियत छूटती नजर आती है. सेक्स वर्कर के किरदार में यास्मिन जंची हैं.

फिल्म की कहानी खुद बालाजी ने लिखी है. कहानी कुछ जगह उलझी नजर आई, मगर बाकी बेहतर है. फिल्म के प्रोड्यूसर जयचंदर पिन्नामनेनी है. उन्होंने ही सिनेमेटोग्राफी की है. उन्होंने अपना काम बखूबी निभाया है. सैम सीएस का म्यूजिक भी प्रभाव छोड़ता है. एंथोनी गोंजाल्विस की संपादन और टी बालासुब्रमण्यम का प्रोडक्शन डिजाइन भी ठीक-ठाक है. कुछ जगह संपादन में कमियां दिखीं.

फिल्म की लोकेशंस पर भी गहराई से काम किया गया है. हाल में अभिनेत्री भव्या त्रिखा ने खुलासा किया था कि जब आधी रात चेन्नई में युद्ध स्मारक के पास कुछ खास दृश्य फिल्माए जाने थे, लेकिन तकनीकी समस्याओं से शूटिंग में काफी समय लगा था.

किसी भी फिल्म की सक्सेस इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसके प्री-प्रॉडक्शन पर कितनी मेहनत की गई. बालाजी माधवन ने इस दिशा में काफी मेहनत की, फोकस किया. शूटिंग शुरू करने से पहले एक वर्कशॉप रखी गई थी. इसमें छोटे-छोटे दृश्यों को बारीकी से समझाया गया. इसका फायदा यह हुआ कि क्रू और कलाकारों को सेट पर दृश्य क्रियेट करने में परेशानी नहीं हुई, अधिक सोचना नहीं पड़ा.

फिल्म के फाइट सीक्वेंस ठीक-ठाक हैं. चूंकि कहानी जटिल है, लिहाजा कई जगह डायरेक्टर दृश्यों को बांधने में कामयाब नहीं रहा. अगर संक्षिप्त में कहें, तो कहानी की जटिलता दर्शकों को ध्यान भटकती है. निर्देशन ने हाईपरलिंक नरैटिव को पिरोने की कोशिश की है. शुरुआत ठीक है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, पात्रों का पर्दे पर खुलना शुरू होता है, पकड़ ढीली पड़ने लगती है. संवादों पर और काम होना था. कॉमेडी के जरिये बीच-बीच में हल्का-फुल्का आनंद पैदा करने की कोशिश की गई है, हालांकि वो उतनी असरकार नहीं दिखी. कह सकते हैं कि फिल्म की कहानी में नयापन है, अच्छी है, लेकिन उसे ठीक से पर्दे पर नहीं उतारा जा सका. लेकिन एक बार देखी जा सकती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Movie review, South cinema


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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