मध्यप्रदेश

Game of death in the name of tradition on Padwa | गोवर्धन पूजा पर इंसानों को रौंदकर निकलती हैं गायें: उज्जैन के भिड़ावद में सदियों से जारी है ‘गौरी पूजन’ की परंपरा;कभी कोई घायल नहीं हुआ – Ujjain News

क्या आपने कभी सजधज कर तैयार दर्जनों गायों को एक साथ सड़कों पर दौड़ते हुए देखा है? क्या कभी देखा है कि ये गायें सड़क पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से निकल रही हैं? अगर नहीं तो हम आपको दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा, सुहाग पड़वा या धोक पड़वा पर होने वाले एक ऐस

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हम बात कर रहे हैं बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से 76 किलोमीटर दूर बड़नगर तहसील के गांव भिड़ावद की। चार हजार की आबादी वाले इस गांव में दर्जनों लोगों के ऊपर से दौड़ती हुई गायों को देखने अलसुबह से ही लोग जमा होने लगते हैं। इसे देखने वालों के भले ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि गाय के पैरों के नीचे आकर आज तक कोई घायल नहीं हुआ। किसी को एक खरोंच तक नहीं आई। यही कारण है कि प्रशासन ने आज तक कभी इस आयोजन पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रयास नहीं किया।

व्रत करने वालों को गांव के चौक में इस तरह पेट के बल लिटाया जाता है। इसके बाद गायें उनके ऊपर से गुजरती हैं।

सदियों से चली आ रही है ये परंपरा भिड़ावद में यह परंपरा कब से शुरू हुई इस बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं है। लेकिन ग्रामीणों की माने तो इस परंपरा का सदियों से निर्वहन किया जा रहा है। इसमें उपवास रखने वाले ग्रामीण 5 दिन मंदिर में रहकर भजन-कीर्तन करते हैं। दिवाली के दूसरे दिन अल सुबह गायों के पूजन के बाद गांव में जमीन पर लेट जाते हैं। इसके बाद गांव की एक दर्जन से अधिक गायें उनके ऊपर से एक साथ दौड़ती हुई निकलती हैं।

गाय के पैरों के नीचे आने से आशीर्वाद मान्यता के अनुसार ऐसा करने से गांव में खुशहाली आती है और उपवास रखने वाले लोगों की मन्नत पूरी होती है। परंपरा के पीछे लोगों का मानना है की गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। गाय के पैरों के नीचे आने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है। मन्नत पूरी होने पर ग्रामीण हर साल इस परंपरा में भाग लेते हैं।

भिड़ावद के राजू चौधरी ने बताया कि इस इस साल पांच लोगों लाखन अग्रवाल, राधेश्याम अग्रवाल, रामचंदर चौधरी, कमल मालवीय, सोनू सिसोदिया ने उपवास रखा है। इन्हीं लोगों के ऊपर से गाय रौंदते हुए निकली है।

दुनिया भर में होते हैं पशुओं से जुड़े आयोजन पशुओं के साथ क्रूरता या धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजनों में पशुओं का इस्तेमाल भारत सहित दुनिया के कई देशों में होता है। भारत में पाड़ों की लड़ाई, जल्लीकट्‌टू, गौरी पूजन के अलावा बैलगाड़ी दौड़ आदि का आयोजन होता है। अरब देशों में ऊंटों की दौड़, कुत्तों की दौड़, अफगानिस्तान में मुर्गे की लड़ाई, मेंढ़े या भेड़ की लड़ाई और स्पेन में बुल फाइटिंग जैसे खेलों का आयोजन किया जाता है।

इनमें से कई आयोजनों में हर साल कई लोग जान गंवा देते हैं। हालांकि गौरी पूजन में आज तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई है।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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