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साइकोलॉजिस्‍ट के संगठन ने समलैंगिकों को दिया ये ऑफर, अब DCW की स्‍वाति मालीवाल ने की कड़े एक्‍शन की मांग

नई दिल्‍ली. दिल्ली महिला आयोग ने नेशनल मेडिकल कमीशन को नोटिस जारी कर ‘वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ साइकोलॉजिस्ट्स’ के बैनर तले एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय के लिए जारी किए गए विज्ञापन पर स्वतः संज्ञान लिया है. आयोग ने इस समुदाय के लिए कन्वर्जन थेरेपी और प्रशिक्षण के अवैध ऑफर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.

दिल्ली महिला आयोग ने सोशल मीडिया पर चल रहे एक विज्ञापन का स्वतः संज्ञान लिया है जिसमें दावा किया गया है कि आंध्र प्रदेश के तिरुपति में प्रधान कार्यालय वाला ‘वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ साइकोलॉजिस्ट्स’ नामका एक संगठन मानसिक विकारों पर 3 महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है जो 10 मार्च, 2023 को शुरू हुआ. संगठन ने 47 विभिन्न विकारों से निपटने के लिए प्रशिक्षण की पेशकश की है और इसमें समलैंगिकता और ट्रांसवेस्टिज्‍म को शामिल किया है.

यह एक स्थापित तथ्य है कि समलैंगिकता और ट्रांसवेस्टिज्‍म ‘मनोदैहिक विकार’ नहीं हैं. 50 साल पहले, अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन (APA) ने एक प्रस्ताव जारी किया था जिसमें कहा गया था कि समलैंगिकता कोई मानसिक बीमारी या विकार नहीं है.

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मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा 2021 के W.P.No.7284 द्वारा पारित एक फैसले में, एलजीबीटीआईक्यूए+ लोगों की यौन अवधारणा को बदलने, चिकित्सकीय रूप से ‘इलाज’ करने या ट्रांसजेंडर लोगों की लिंग पहचान को प्रभावित करने का कोई भी प्रयास निषिद्ध है. न्यायालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, भारतीय मनश्चिकित्सीय सोसायटी और भारतीय पुनर्वास परिषद को भी निर्देश दिया कि वे रूपांतरण ‘चिकित्सा’ की विधि में शामिल संबंधित पेशेवर के खिलाफ कार्रवाई करें, जिसमें अभ्यास करने के लिए उनका लाइसेंस वापस लेना शामिल है. इस आदेश के अनुसार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने रूपांतरण चिकित्सा को अवैध घोषित किया और इसे ‘पेशेवर कदाचार’ की श्रेणी में माना और भारतीय चिकित्सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के तहत अभ्यास पर प्रतिबंध लगा दिया.

राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में 2012 के W. P (सिविल) 400/2012 में यह कहा गया था कि लिंग पहचान व्यक्तिगत पहचान का एक महत्वपूर्ण पहलू है और एक व्यक्ति के लिए अंतर्निहित है. यह माना गया था कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बिचार रखने, व्यवहार, प्रस्तुति और कपड़ों आदि के माध्यम से अपनी स्वयं की पहचान को व्यक्त करने का अधिकार है. न्यायालय ने यह भी कहा कि लिंग पहचान की तरह, यौन अभिविन्यास किसी के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है, और है आत्मनिर्णय, गरिमा और स्वतंत्रता का एक बुनियादी पहलू.

आयोग ने क्‍या कहा
आयोग ने कहा कि इन निर्णयों के बावजूद, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कन्वर्शन थेरेपी अभी भी प्रचलित है और इस तरह के कार्यक्रम आयोजित और विज्ञापित प्रतीत होते हैं.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अध्यक्ष को नोटिस जारी कर मामले की जांच रिपोर्ट की प्रति मांगी है. आयोग ने पूछा है कि क्या यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है या पूर्व में आयोजित किया गया था और अगर हां, तो संगठन, उसके पदाधिकारियों और प्रशिक्षकों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई इस का विवरण मांगा है और पूछा है कि क्या उनके लाइसेंस रद्द किए गए हैं. आयोग ने LGBTQIA+ व्यक्तियों के कन्वर्शन थेरेपी पर प्रतिबंध लगाने वाले राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों/सलाहों की एक प्रति भी मांगी है.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समय में भी, देश में ऐसे संगठन प्रतीत होते हैं जो दावा करते हैं कि समलैंगिकता और ट्रांसवेस्टिज़्म ‘मनोदैहिक विकार’ हैं और कन्वर्शन थेरेपी के माध्यम से ‘ठीक’ करने की जरूरत है. यह गैरकानूनी है और LGBTQIA+ समुदाय के खिलाफ समाज में मिथकों, पूर्वाग्रहों और भेदभाव को बढ़ावा देता है. प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वयं के पहचाने गए लिंग को व्यक्त करने और अपने यौन अभिविन्यास को चुनने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने इन अधिकारों की गारंटी दी है. इस तरह के आपराधिक कृत्यों में लिप्त संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए.’

Tags: Delhi Commission for Women, Delhi news, Swati Maliwal


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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