Opinion: राजनीतिक दखल बंद होने से अपराधियों पर कानून का शिकंजा कसा है मोदी – योगी राज में

कुछ लोग कानून तोड़ना जन्मसिद्ध अधिकार मान लेते हैं. उन्हें लगता है कि वे लोग कानून से ऊपर हैं या कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. या फिर रसूख का उपयोग करके वे जैसे-तैसे बच ही जाएंगे. आम लोगों के मन में भी ये धारणा रही है कि राजनीतिक रूप से सक्षम लोग कानून के काम में दखलंदाजी करते हैं और अपने हिसाब से उसे हैंडल करते हैं.
यहां 2 अलग-अलग घटनाओं का जिक्र करना आवश्यक हो जाता है, जो कानून और राजनीति से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं और इस बात की तस्दीक भी करती हैं कि समय बदल गया है. गुनाह करने वाले अब कानून से नहीं बच सकते.
पहली, लक्षद्वीप से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के सांसद मोहम्मद फैजल से जुड़ी है. लक्षद्वीप के कवारत्ती की एक अदालत ने 11 जनवरी 2023 को सांसद मो. फैजल को 2009 के एक मामले में 10 साल सश्रम की सजा सुनाई, फैजल पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है. मोहम्मद फैजल 2014 से केंद्र शासित प्रदेश के सांसद हैं. सजा होते ही नियमानुसार 13 जनवरी को लोकसभा सचिवालय ने फैजल की संसद सदस्यता खत्म कर दी. फैजल ने केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और केरल हाई कोर्ट ने 25 जनवरी को सजा और दोषसिद्धि दोनों पर रोक लगा दी.
डराने वाले अतीक और अशरफ डरे
दूसरा और सबसे अहम वाकया, यूपी के कुख्यात माफिया अतीक अहमद को प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अपहरण के एक मामले में उम्रकैद की सजा का है. उस पर 2004 में बसपा के विधायक रहे राजू पाल की हत्या का आरोप है, साथ ही हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल के अपहरण और हाल ही में उसकी हत्या का मामला भी माफिया अतीक और उसके परिवार वालों पर दर्ज है.
माफिया होने के साथ-साथ अतीक की एक अलग पहचान भी रही. अतीक अहमद 1989-2004 तक यूपी विधानसभा का सदस्य रहा और 2004 से 2009 तक संसद सदस्य भी.
हाल के ये दो केस बताते हैं कि अब ये कहना कि ‘कानून अपना काम कर रहा है’ सिर्फ कहना भर नहीं है. लक्षद्वीप से लेकर प्रयागराज तक, इसके उदाहरण देखने को मिल रहे हैं. 10 साल पहले तक जिस अतीक के खिलाफ कोई वकील केस लड़ने को तैयार नहीं होता था, प्रयागराज में उसकी पेशी के दौरान वकीलों ने ना केवल मुर्दाबाद के नारे लगाए बल्कि अतीक को घेरने की कोशिश भी की. वकीलों की भीड़ गुस्से में थी हालांकि पुलिस बल ने अतीक को सुरक्षित कोर्ट रूम तक पहुंचा दिया.
दबी जुबान में कानून से खिलवाड़ की बात कही जाती है लेकिन अतीक और अशरफ की पेशी ने बहुत पुरानी इस धारणा को तोड़ने में बड़ा योगदान दिया है. पेशी के बाद जब अशरफ बरेली जेल पहुंचा तो मौत का खौफ उसके चेहरे पर साफ-साफ दिख रहा था. चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. अशरफ का ये कहना कि ‘पुलिस के बड़े अधिकारी ने उसे जान से मारने की धमकी दी है, किसी ना किसी बहाने से जेल से निकाल कर उसका एनकाउंटर कर दिया जाएगा’ उसके डर को जाहिर कर रहा था. इसी तरह, अहमदाबाद की साबरमति जेल पहुंचने पर अतीक का कहना कि ‘मीडिया की वजह से जान बच गई,’ उसके खौफ का उदाहरण है.
उपद्रव नहीं, उत्सव हो
रामनवमी पर मां दुर्गा की शक्ति पूजा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इशारे ही इशारे में माफिया पर बढ़ते शिकंजे की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा-‘ पर्व और त्योहारों में हम दंगों के भय से घर से बाहर नहीं निकलते थे, हर पर्व के पहले एक दंगा हो जाता था. शासन पर्व और त्योहार को बैन कर देता था. आज हर पर्व और त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाये जा रहे हैं. एक तरफ नवरात्रि और दूसरी ओर रमजान भी है, लेकिन कोई हलचल नहीं है. अब प्रदेश किसी प्रकार का उपद्रव नहीं उत्सव में विश्वास करता है. अब प्रदेश माफिया नहीं, महोत्सव में विश्वास करता है.’
ये भरोसा तब आता है जब प्रदेश में कानून का राज होता है. ये भरोसा तक आता है जब पुलिस शत्रु नहीं, मित्र की भूमिका में होती है. ये भरोसा तब आता है जब चोटी की कुर्सी पर बैठे नेता दिनरात जनता के हित के लिए चिंतित होता है.
बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल अपहरण केस में 17 साल बाद प्रयागराज की एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. अतीक के 43 साल के आपराधिक और राजनीतिक कैरियर में अतीक अहमद को किसी मामले में पहली बार सजा सुनाई गई.
बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के दबदबे वाली सीट इलाहाबाद शहर पश्चिमी से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि किसी समय में समाजवादी पार्टी अतीक अहमद को संरक्षण देती रही. उस पर लगे केस वापस करवा दिये जाते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है. सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि अतीक अहमद समेत दूसरे माफियाओं को बचाना और उन्हें संरक्षण देना समाजवादी पार्टी का पुराना इतिहास रहा है. समाजवादी पार्टी की वजह से ही अतीक जैसे लोग अब तक बचते रहे हैं. दरअसल, अतीक अहमद को उम्र कैद की सजा मिलने के बाद अखिलेश यादव ने कहा था कि बीजेपी के लोग अतीक का इस्तेमाल करते थे और जेल जाकर उससे चुनाव का पर्चा भरवाते थे. अतीक के भाई अशरफ द्वारा 2 हफ्ते में हत्या कराए जाने की आशंका पर सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा है कि अतीक और अशरफ को पहले खुद के माफिया और डॉन होने का गुमान था. लेकिन उनका यह घमंड अब गायब हो गया है और उसकी जगह इन्हें योगी फोबिया हो गया है. अब दूसरे केस में भी लोग इनके खिलाफ गवाही देने आएंगे.
जेल से अपराध करने वालों पर सख्ती
इधर, दूसरी तरफ यूपी की जेलों में बंद दुर्दांत अपराधियों, माफिया और उनके गुर्गों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है. प्रदेश के जेलों में बंद टॉप 10 अपराधियों की लिस्ट मुख्यालय स्तर पर तलब की गयी है. सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मशक्कत शुरू कर दी गई है. सीएम ने निर्देश दिए हैं कि जेल अधिकारियों, कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की समस्या हो, उन पर दबाव बनाया जा रहा हो या धमकी दी गई हो, तो इसकी सूचना तत्काल मुख्यालय को उपलब्ध कराएं। घटना के बाद ऐसी बातों का संज्ञान नहीं लिया जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.
योगी आदित्यनाथ जब पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के संकल्प पत्र (लोक कल्याण पत्र) के अनुरूप कानून-व्यवस्था में सुधार को प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर रखा. आज यूपी पुलिस पर ना किसी का दबाव है, ना ही कानून व्यवस्था पर. बिना किसी राजनीतिक दबाव के पुलिस जांच करने के लिए स्वतंत्र है और कानून कार्यवाही करने के लिए.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था-‘अपराधी या तो जेल में होंगे या प्रदेश के बाहर.’ सीएम के इस बयान के बाद से ही यूपी पुलिस आंख दिखाने वाले माफिया और अपराधियों पर कहर बन कर टूटी. बिना किसी भेदभाव के माफिया पर शिकंजा कसा और उनका नेटवर्क खत्म करने में कामयाबी हासिल की.
40 साल से ज्यादा समय के बाद अतीक अहमद को पहली बार किसी केस में सजा सुनाई गई है और इस सजा से कभी अतीक के खौफ के साये में जीने वालों में एक भरोसा पैदा हुआ. एक विश्वास पैदा हुआ है कि अपराधी कितना भी खूंखार हो, किसी न किसी दिन उसका भी अंत होता ही है.
(डिसक्लेमर ः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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Tags: BJP, CM Yogi, Prime Minister Narendra Modi
FIRST PUBLISHED : April 05, 2023, 16:05 IST
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