Five women of lucknow made by breaking the shackles your identity

अंजलि सिंह राजपूत
लखनऊ. बुधवार आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर न्यूज़ 18 लोकल आपका परिचय करवाने जा रहा है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पांच ऐसी महिलाओं से जिन्होंने कुरीतियों की बेड़ियों को तोड़कर अपनी अलग पहचान बनाई है. यह महिलाएं युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं. इन्होंने ऐसे क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है जो सिर्फ पुरुष प्रधान माने जाते थे.
पहली महिला महंत देव्यागिरी हैं जो डालीगंज में बने ऐतिहासिक महादेव मनकामेश्वर की महंत हैं. नौ सितंबर, 2009 में उनके गुरु के निधन के बाद अखाड़े ने मात्र 22 साल की उम्र में उनको इस मंदिर की गद्दी संभालने के लिए चुना था. तब से वो यहां की महंत हैं. शुरुआत में एक महिला को महंत बनाए जाने का बहुत विरोध हुआ था. लेकिन, बाद में सब ठीक हो गया. महिला महंत होने के नाते उनको बहुत संघर्ष करना पड़ा. महिलाएं उनको देखकर अब गर्व महसूस करती हैं. सबसे ज्यादा उनका विरोध साधू-संतों ने ही किया था.
आपके शहर से (लखनऊ)
यही नहीं, महंत देव्यागिरी के पास रिवाल्वर और दोनाली बंदूक है जो मंदिर की पैतृक संपत्ति है. यह उनको सौंपी गई थी. इतना ही नहीं, आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की ओर से धमकी मिलने के बाद सरकार की ओर से इनको सुरक्षा गार्ड दिए गए थे. हालांकि, बाद में सरकार ने उनसे यह वापस ले लिया था.
बाइक पर सवार मां-बेटी की जोड़ी
कौन कहता है कि लड़कियां मोटरसाइकिल नहीं चला सकतीं. जो लोग यह कहते हैं, उनको गलत साबित किया है लखनऊ की एक मां-बेटी की जोड़ी ने. लखनऊ में यह मां-बेटी काफी चर्चित हैं. इनके नाम हैं गरिमा और शीला कपूर. दोनों ही रॉयल एनफील्ड लेकर जब लखनऊ की सड़कों पर निकलती हैं तो लड़के और युवा रफ्तार में इनसे मात खा जाते हैं. गरिमा वर्ष 2015 से बाइक राइडिंग कर रही हैं जबकि उनकी मां शीला कपूर 14 साल की उम्र से ही मोटरसाइकिल चला रही हैं. शीला एक सरकारी अस्पताल में प्रिंसिपल हैं जबकि उनकी बेटी गरिमा पीएचडी कर रही हैं. यह दोनों अन्य लड़कियों को भी बाइक चलाना सिखाती हैं.
जान खतरे में डालकर जानवरों का रेस्क्यू
लखनऊ की रहने वाली अरुणिमा सिंह वाइल्ड लाइफ में एक उभरता हुआ सितारा बन चुकी हैं. अरुणिमा एक एनजीओ से जुड़ी हुई हैं जो वन विभाग के साथ मिलकर देश भर में जानवरों के रेस्क्यू ऑपरेशन में जाता है. अरुणिमा ने इसके तहत अभी तक 10 से ज्यादा घड़ियाल और मगरमच्छ का रेस्क्यू ऑपरेशन किया है. इसके अलावा, 20 से ज्यादा डॉल्फिन की जान बचाई है. इतना ही नहीं, अरुणिमा ने 30 हजार से ज्यादा कछुओं की जान बचा कर उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुंचा कर मिसाल कायम किया है. अरुणिमा के कार्यों को देखते हुए रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ने उन्हें ‘नेटवेस्ट अर्थ हीरोज’ अवार्ड से सम्मानित किया है.
शोषित महिलाओं की आवाज हैं अर्चना
अर्चना सिंह एक समाजसेवी हैं जो उत्तर प्रदेश सरकार के वन स्टॉप सेंटर में सेंटर मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. अर्चना की इंटर पास करने के बाद मात्र 18 साल में शादी कर दी गई थी. लेकिन, उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और शादी के बाद पढ़ाई पूरी की. इसके बाद, उन्होंने तमाम समाजसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया और जब से वो वन स्टॉप सेंटर से जुड़ी हैं तब से इसके तहत शोषित, पीड़ित और प्रताड़ित महिलाओं की आवाज बन चुकी हैं. वो उन्हें न्याय दिलाती हैं और उन्हें उनका हक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 07, 2023, 17:35 IST
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