BJP scared of NOTA in Indore, competition in Khargone-Ratlam | MP में चौथे चरण की 8 सीटों का हाल: 5 सीटों पर बीजेपी मजबूत लेकिन इंदौर में नोटा का डर, खरगोन-रतलाम में टक्कर

मालवा-निमाड़ से यज्ञदत्त परसाई11 मिनट पहले
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लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में मध्यप्रदेश में मालवा-निमाड़ की 8 सीटों पर 13 मई को वोट डाले जाएंगे। मौजूदा स्थिति देखें तो भाजपा सभी 8 सीटों पर मजबूत दिखाई देती है, लेकिन इनमें से तीन सीटों पर हवा का रुख बदला हुआ है।
चुनाव से ठीक पहले दैनिक भास्कर ने इन सभी सीटों की सियासी नब्ज टटोली। सबसे ज्यादा चर्चा इंदौर, खरगोन और रतलाम सीट की है। इंदौर में माहौल नहीं बदला है, लेकिन नोटा (NOTA) ने मुद्दा बदल दिया है।
खरगोन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी की सभाओं के बाद हालात बदले हुए हैं। यहां आदिवासी वोटर्स में कांग्रेस सेंध लगाने में कामयाब हुई तो उसे फायदा हो सकता है। वहीं, रतलाम में मोदी की गारंटी और स्थानीय मुद्दों की लड़ाई है।
इस क्षेत्र की तीन रिजर्व सीटों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सोशल इंजीनियरिंग का भी असर देखा जा रहा है। बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे और विकास के मुद्दे पर मैदान में है। वहीं, कांग्रेस संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे मुद्दे उछाल रही है, लेकिन ये काम करता नहीं दिख रहा।
जानिए, चौथे चरण की आठ सीटों- इंदौर, उज्जैन, धार, रतलाम, खरगोन, खंडवा, देवास और मंदसौर की चुनावी तस्वीर…

इन सीटों के चुनावी और सियासी समीकरण
इंदौर: कांग्रेस के मैदान छोड़ने से BJP के मौजूदा सांसद शंकर लालवानी का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। लेकिन, इस पूरे घटनाक्रम के बाद पार्टी में सवाल यही है कि इस दलबदल की जरूरत ही क्या थी? पहली बार भाजपा को इससे नुकसान होने का डर सता रहा है। यही वजह है कि बीजेपी कैंडिडेट शंकर लालवानी ने प्रचार तेज कर दिया है। हालांकि, NOTA का समर्थन करने के बावजूद कांग्रेस कहीं मुकाबले में नहीं है।
उज्जैन: अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद नहीं है। ये मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का गृह क्षेत्र भी है। चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार ने शिप्रा नदी की गंदगी का मुद्दा उठाकर सुर्खियां बंटोरीं। हालांकि, वह उसे मुद्दे में बदल नहीं सके। भाजपा का कैडर यहां सबसे ज्यादा मजबूत है। दलित बहुल क्षेत्रों में आरक्षण-संविधान जरूर चर्चा में है।
रतलाम: इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया का रुख नहीं बदला है। भील-भिलाला की लड़ाई तो है ही, भूरिया दो पत्नियों वाले बयान से फिर सुर्खियों में है, वे हर हाल में चुनाव को लोकल फैक्टर पर रखना चाहते हैं। भाजपा यहां मोदी की गारंटी के भरोसे है और इसे जनता के बीच पहुंचाने का जिम्मा तीन मंत्रियों चेतन काश्यप, नागर सिंह चौहान और निर्मला भूरिया को दिया है।
खंडवा: कांग्रेस के नरेंद्र पटेल का गुर्जर दांव कामयाब होता नहीं दिख रहा है। उनके लिए पूर्व मंत्री अरुण यादव और पूर्व विधायक राजनारायण सिंह सक्रिय हैं। बुरहानपुर के मुस्लिम वोटर्स का रुझान कांग्रेस की तरफ होता दिख रहा है। दूसरी तरफ राम मंदिर और 370 जैसे मुद्दों से भाजपा को सीधा फायदा हो रहा है। उसने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।
खरगोन: बीजेपी के सांसद गजेंद्र पटेल के सामने कांग्रेस ने पोरलाल खरते को टिकट देकर चौंका दिया था। यदि पोरलाल ने बड़वानी-सेंधवा के आदिवासी वोटर्स में सेंध लगाई तो नतीजे भी चौंकाने वाले हो सकते हैं। पिछले दिनों पीएम मोदी और राहुल गांधी की यहां सभा हो चुकी है। इसका असर क्षेत्र में दिख रहा है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन किया है इसलिए उसे और ज्यादा उम्मीद है।
देवास: यहां भी वोटों का ध्रुवीकरण नजर आ रहा है। भाजपा प्रत्याशी महेंद्रसिंह सोलंकी हार्डकोर हिंदुत्व के एजेंडे पर हैं। रैलियों में ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ जरूर पोस्टरों पर दिखाई देता है। कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन वर्मा, भाजपा से आए दीपक जोशी जैसे नेताओं ने देवास, सोनकच्छ, खातेगांव, हाटपिपल्या जैसे क्षेत्रों में कोशिश की है लेकिन माहौल यथावत है।
मंदसौर: राजस्थान से लगी हुई इस सीट पर इस बार भी बीजेपी मजबूत दिख रही है। मुस्लिम लोगों के धर्म परिवर्तन की खबरें यहीं से आना शुरू हुईं और यह सिलसिला चुनाव के बीच भी हुआ। भाजपा इस भरपूर भुनाने की कोशिश कर रही है और उसे फायदा हो रहा है। यहां कांग्रेस 2009 में आखिरी बार चुनाव जीती थी।
धार: भोजशाला मंदिर या मस्जिद, आखिरकार यह मुद्दा चुनावी बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सभा में इसका जिक्र किया है। मालवा-निमाड़ में वोट बैंक के लिहाज से कांग्रेस यहां सबसे मजबूत है, बावजूद नेशनल इश्यू के कारण वह विधानसभा चुनाव का परफॉर्मेंस दोहरा पाने में मुश्किल का सामना कर रही है। यहां की 8 में 5 सीटों पर कांग्रेस मजबूत थी लेकिन भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे से हवा बदल गई है।

इंदौर: कांग्रेस को फर्जी वोटिंग का डर, सवाल- बूथ पर कौन बैठेगा?
यहां नोटा ने सियासी हवा बदल दी है। नोटा को मिलने वाले वोट के भले ही कानूनी मायने नहीं है, लेकिन लोगों के बीच वह चर्चा का विषय बन गया है। कांग्रेस मुकाबले से बाहर है, मगर वह हर हाल में नोटा पर ज्यादा से ज्यादा वोट डलवाकर बीजेपी के गढ़ में अपनी ताकत दिखाना चाहती है। वह इस मुद्दे को जन अभियान का रूप देने की कोशिश कर रही है।
अक्षय बम के नाम वापसी के बाद कांग्रेस के सब्स्टिट्यूट प्रत्याशी का केस लड़ रहे इंदौर के वरिष्ठ वकील विभोर खंडेलवाल कहते हैं कि ‘इंदौर में जो हुआ, वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं। हम इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ी है और सुप्रीम कोर्ट ने भी नाम वापसी के बाद सब्स्टिट्यूट को मौका देने के हमारे पॉइंट को सुना है।

लोकसभा क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटें बीजेपी के पास है इसलिए बीजेपी यहां बेहद मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। कांग्रेस के नेताओं का एक के बाद एक भाजपा में आना भी पार्टी कार्यकर्ताओं को निराश कर रहा है। चूंकि अब प्रत्याशी भी नहीं है, ऐसे में कांग्रेस को फर्जी वोटिंग का डर है।
पार्टी नेताओं की बैठक में यह चर्चा हुई है कि ज्यादा से ज्यादा बूथ पर अपना एजेंट बैठाकर सही वोटिंग करवाएं ताकि बीजेपी की लीड बढ़ने से रोकी जा सके। यानी नजरें और लड़ाई सिर्फ इस बात पर टिक गई है कि बीजेपी कितने वोटों से जीतेगी?
लोगों का वोटिंग के लिए उत्साह नहीं दिखाना बीजेपी के लिए चिंता का सबब है। पहली बार इस चुनाव में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी एक्टिव हुए हैं। अब तक वे चुनाव से दूर ही थे।

खंडवा: हिंदुत्व बना बड़ा मुद्दा, आरएसएस भी सक्रिय
यहां इस बार भी हिंदुत्व बड़ा मुद्दा बन गया है। मुस्लिम बहुल बुरहानुपर में वोटों के ध्रुवीकरण को देखते हुए बीजेपी इसी स्ट्रैटेजी पर काम कर रही है। कांग्रेस ने बहुत देरी से उम्मीदवार तय किया जिससे वह जनसंपर्क में भी पिछड़ गई है। बावजूद, बीजेपी प्रत्याशी को मेहनत करनी पड़ रही है।
इस सीट पर पूर्व में उप चुनाव हुआ था, जिसमें लीड घटकर 80 हजार रह गई थी। लेकिन अब पार्टी ने राम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दे को तेजी से छेड़ रखा है। आरएसएस ने भी अपने स्तर से काम तेज किया है, इस कारण पार्टी फिर से मजबूत नजर आ रही है।

पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान का परिवार बीजेपी से नाराज बताया गया था, लेकिन मैदान पर उनका असर नहीं दिखता। ऐसे में यह सीट एक बार कांग्रेस के हाथ से फिसलती दिख रही है। दिलचस्प यह है कि यह पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का क्षेत्र है।
यादव ने शुरुआती दौर में जोर लगाया था, लेकिन अब असर नहीं दिखा पा रहे हैं। सीट पर 1 लाख 85 हजार के करीब राजपूत, 1 लाख 35 हजार के करीब गुर्जर समाज के वोट है। यदि गुजरात से उठा राजपूत फैक्टरं यहां दिखा तो भाजपा की लीड पर संशय रहेगा।
खंडवा सीट के बागली क्षेत्र के मुकेश कुमार पाटीदार कहते हैं कि ‘यहां राम मंदिर सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। किसान जरूर चौपाल पर यह बातें कहते हैं कि गेहूं 2700 में खरीदने का वादा किया था लेकिन 2400 का ही भाव मिल रहा है। लेकिन यह चुनाव पर असर डालेगा, ऐसा बिल्कुल नहीं लगता’।
वरिष्ठ पत्रकार जय नागड़ा कहते हैं कि ‘जो पहले दिन का हाल था, वही है। इसकी वजह है कांग्रेस का कमजोर होना। लोगों में नाराजगी दिखती है, लेकिन कांग्रेस लोगों तक पहुंच ही नहीं पाई। कहीं जनसंपर्क नहीं दिखाई दे रहा है।

धार: कांग्रेस 8 में 5 सीटों पर मजबूत, लेकिन हिंदुत्व और राम मंदिर छाया
इस सीट पर भाजपा ने तेजी से हवा का रुख बदला है। 8 में से 5 सीटें कांग्रेस के पास हैं, लेकिन अब हालात उलट गए हैं। लोकसभा चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी का वोट शेयर बढ़ सकता है। राम मंदिर और हिंदुत्व के साथ पार्टी ने भोजशाला के मुद्दे को आगे कर दिया है। इससे वह मुकाबले में मजबूत नजर आ रही है।
चुनाव के दौरान ही भोजशाला का सर्वे चल रहा है और अखबारों में रोजाना सुर्खियां बन रही हैं। शहरी वोटर्स पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। लोग यह कहने से नहीं चूक रहे कि नतीजा तो वही होगा, जो होते दिख रहा है।’

राम मंदिर के बाद धार सीट के लिए भोजशाला ऐसा मुद्दा बन गया है जहां कांग्रेस का हिंदू वोटर भी इसे लेकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता है। वह साइलेंट होकर मामले पर बहस करने या कांग्रेस का स्टैंड लेने से बच रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और BJP नेता ज्ञानेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि ‘बिजली-पानी जैसी समस्या नहीं रही।
नर्मदा का पानी धार और बदनावर आने ही वाला है, रेल का मुद्दा सॉल्व हो चुका है। जो बुनियादी चुनावी मुद्दे उठते थे, भाजपा ने उसका समाधान कराया है। दूसरी तरफ कांग्रेस एक ढंग का प्रत्याशी भी नहीं दे पाई।
कोई राष्ट्रीय नेता नजर नहीं आया है, जबकि 8 में से 5 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। वे भी सक्रिय नहीं दिखे। भाजपा को सिर्फ यह देखना है कि जीत कितने वोटों से होती है।

खरगोन: वोटों के ध्रुवीकरण ने बदले समीकरण
यह सौ फीसदी निमाड़ी वोटर्स वाली सीट है, लेकिन यहां खरगोन-बड़वानी के वोटरों में हमेशा वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिली है। इस बार भी वोट उसी लिहाज से बंटते दिख रहे हैं। कांग्रेस को बड़वानी-सेंधवा में फायदा हो सकता है तो भाजपा को अपनी परंपरागत सीटों पर। 8 में से 5 सीटें यहां भी कांग्रेस के पास है लेकिन ध्रुवीकरण के सामने सब पस्त हो गए हैं।
बड़वानी रोड पर कच्चे केलों की चिप्स हाथों हाथ तलकर बेचने वाले रहीमपुरा के मयाराम वर्मा कहते हैं कि पहले मेरी दुकान थी जो सड़क चौड़ी करण में हट गई। अब रोड किनारे ही ठेला लगाता हूं। दिनभर में 40 से 50 किलो बिक जाती है। चुनाव से जुड़ा सवाल पूछते ही उन्होंने कह दिया- मोदीजी..। जबकि सवाल प्रत्याशी कौन है, यह पूछा गया था। इससे माहौल का अंदाजा लग जाता है।

वरिष्ठ पत्रकार ममताराम पाटुद कहते हैं कि बड़वानी से सटे विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशी पोरलाल खरते की पकड़ अच्छी है। यह उनका गृह क्षेत्र है और लंबे समय तक जयस के लिए काम कर चुके हैं। शहरी क्षेत्र का वोट उन्हें मिलेगा या नहीं, यह संशय है।
हाल ही में खरगोन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इसी जिले के सेगांव में राहुल गांधी ने सभा ली। निमाड़ की गर्मी के बावजूद दोनों जगह भीड़ अच्छी आई। ग्रामीण वोटरों के ट्रेंड से लग रहा है कि भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र पटेल की जीत का अंतर घट सकता है लेकिन वे अभी भी कांग्रेस के मुकाबले मजबूत हैं।

मंदसौर: BJP की परंपरागत सीट, कांग्रेस को स्थानीय चेहरा नहीं मिला
यहां भाजपा मजबूत है लेकिन जाति फैक्टर ने चुनाव को रोचक भी बना दिया है। यहां कांग्रेस बाहरी लेकिन गुर्जर प्रत्याशी दिलीप गुर्जर को लाई थी। यही वजह है कि गुर्जर और गायरी के साथ राजपूत वोटरों में अच्छा मैसेज देने की कोशिश की है। अब तक 12 में 8 चुनाव भाजपा ने जीते हैं तो कांग्रेस ने मात्र 4 बार। आखिरी बार यहां कांग्रेस 2009 में जीती थी लेकिन इस बार चुनावी फैक्टर बदल गए हैं।

वरिष्ठ पत्रकार कोमल सिंह तोमर कहते हैं कि जावद समेत कई इलाकों में भाजपा नेताओं में मनमुटाव दिखाई देता है। ऐसे में मोदी फैक्टर ही एकमात्र रास्ता बचा है और यही भाजपा की यहां ताकत भी है। पूर्व विधायक गुर्जर नागदा-खाचरौद क्षेत्र के हैं। इस कारण उन पर बाहरी बताकर का मुद्दा भाजपा बना रही है लेकिन प्रचार में उसके पास सिर्फ मोदी का ही सहारा है।

उज्जैन: कांग्रेस- भाजपा के बीच ‘डुबकी’ का खेल
भाजपा सांसद के वजन की चर्चा से शुरू हुआ चुनाव अब मोदी फैक्टर पर आ गया है। आरक्षण और संविधान, मंगलसूत्र-मुसलमान जैसे मुद्दे हैं लेकिन वे दलित और मुस्लिम क्षेत्रों में..। भाजपा यहां मजबूत दिख रही है। अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर कांग्रेस मुश्किल से निकल ही नहीं पाई है। कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार ने चुनाव काे लोकल फैक्टर पर लाने की कोशिश की लेकिन वह रंग नहीं लाई।

महेश ने शिप्रा शुद्धिकरण का मुद्दा उठाते हुए उज्जैन के लोगों को इमोशनल कनेक्ट करने की कोशिश की और शिप्रा में आ रही गंदगी के बीच डुबकी लगा दी। इसका जवाब दिया सीधे मुख्यमंत्री मोहन यादव ने। जैसे ही वे गृह क्षेत्र के दौरे पर आए तो महेश की डुबकी का जवाब खुद भी शिप्रा में डुबकी लगाकर दिया।
कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार कहते हैं कि मैं शिप्रा का मां बेटा हूं। शिप्रा मां पर राजनीति नहीं करना चाहता हूं। लेकिन 4 जून को परिणाम आने दीजिए, हम शिप्रा में मिलने वाले सभी 100 से ज्यादा नालों को बंद कराएंगे। मुख्यमंत्री ने डुबकी लगाकर सिर्फ दिखावा किया था, आकर देखें कि अभी भी क्या हालत है। बावजूद, सीएम का सीधा हस्तक्षेप होने से भाजपा के सांसद अनिल फिरोजिया और उनकी पार्टी मजबूत दिखाई दे रही है।

रतलाम: बयानबाजी में घिरकर पिछड़ गए कांतिलाल भूरिया
आलीराजपुर में भी हवा बदल गई है। कांग्रेस शुरुआत में भील-भिलाला का मुद्दा लाई लेकिन अब वह भी विवादों में पड़ गया है। भाजपा और संघ की सोशल इंजीनियरिंग से राम मंदिर फैक्टर और धर्मांतरण जैसे मुद्दे तेजी से चर्चा में आ गए हैं। ऐसे में कांतिलाल भूरिया की राह मुश्किल हो गई है।

नानपुर फाटा गांव के रहने वाले भग्गू आज भी टापरी में रहते हैं। सरकारी योजना से घर मंजूर हुआ लेकिन छत बन ही नहीं पाई। घर अधूरा पड़ा है। वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। ताड़ी और खेती से जीवन यापन कर रहे भग्गू को अधूरे घर को लेकर नाराजगी है। लेकिन, चुनाव को लेकर कहते हैं कि मोदी, कांतिलाल भूरिया, इंदिरा गांधी को जानते हैं।
वोट के सवाल पर कहा कि ‘कमल को ही वोट दूंगा। 30 साल पहले हाथ यानी कांग्रेस को वोट देते थे, अब नहीं देते। सरपंच बुलाने आएगा, उस दिन वोट डालने जाऊंगा।’ भाजपा प्रत्याशी कौन है, यह पूछने पर प्रत्याशी अनीता चौहान की जगह उनके पति और मंत्री नागरसिंह चौहान का नाम लिया।

भग्गू आदिवासी को पीएम आवास योजना के तहत मकान आवंटित हुआ था, लेकिन आज तक पूरा नहीं बन सका।
यहां अभी भी मुद्दा राम मंदिर और मोदी की बजाय असली आदिवासी कौन, यही अब भी बना हुआ है। इसी कारण इस सीट को लेकर अभी भी कोई क्लियर राय नहीं बन पा रही है। आदिवासी वोटरों से जब राय ली जाती है तो वे ठीक से प्रत्याशी का नाम भी नहीं बता पा रहे हैं। बावजूद, कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। कांतिलाल भूरिया ने फिर दो पत्नियों वाला बयान दिया जो सुर्खियां बन गया। भाजपा इसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।
भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि यहां से तीन-तीन मंत्रियों की साख दांव पर है। अमित शाह कह चुके हैं कि वोटिंग घटी तो क्या होगा? ऐसे में मंत्रियों को इस चुनाव को जिताने से ज्यादा, अपनी कुर्सी बचाने के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है।
जोबट की कांग्रेस विधायक सेना पटेल कहती हैं कि CM झाबुआ में आए थे लेकिन उनमें बहुत घबराहट है। इसीलिए एक लोकसभा सीट झाबुआ-रतलाम में तीन मंत्री दे रखे हैं। उनके 3 हो या 4, यह कांग्रेस का गढ़ है और रहेगा। भाजपा के जो दो-तीन विधायक जीते हैं, उनका मार्जिन भी बहुत कम था।
वहीं कांग्रेस नेता महेश पटेल कहते हैं कि कांतिलाल भूरिया को पूरे क्षेत्र के लोग जानते हैं इसलिए उन्हें दिक्कत कतई नहीं है। भाजपा के मंत्रियों को साख बचाना मुश्किल हो जाएगा।

देवास: भाजपा लगातार मजबूत, हार्ड हिंदुत्व ही चुनावी मुद्दा
अनुसूचित जाति वर्ग की सीट पर मालवा-निमाड़ दोनों क्षेत्रों का असर है। बावजूद, चुनावी फैक्टर में भाजपा पहले दिन से लीड लिए हुए है। हार्ड हिंदुत्व के सामने कांग्रेस को मुद्दा नहीं ला पाई है। पूर्व न्यायाधीश महेंद्र सोलंकी भाजपा की ओर से लगातार दूसरी बार चेहरा हैं। कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय हैं जिनके सामने युवा वोटरों में पहचान का भी संकट है। सज्जन वर्मा की परंपरागत सीट पर कांग्रेस को अब तक कोई मुद्दा नहीं मिल पाया है।

देवास शहर में पैलेस और राज परिवार का अपना स्थापित वोट बैंक है और उनकी भाजपा प्रत्याशी से अनबन छुपी नहीं है। बावजूद, सीट अच्छे मार्जिन से जिताना ही है, भाजपा ने यह बात साफ कर दी है। इस कारण किसी भी तरह के भितरघात का खतरा भाजपा को नहीं है।
कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के कार्यकारी अध्यक्ष मालवीय को दलित वोट बैंक पर भरोसा है। कांग्रेस आरक्षण, संविधान जैसे मुद्दे उठा रही है। दलित वोटर्स यहां बड़ा फैक्टर है। सोनकच्छ, टोंक, पीपलरावां जैसे बेल्ट में इसका असर दिखाई दे सकता है।

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