गांव में रहकर शुरू करें ये बिज़नेस, कमाई का है बेहतर जरिया, जानिए प्रोसेस

नई दिल्ली. अब वह दिन दूर नहीं जब बस्तर (Bastar) की आबोहवा में बारूद के धमाके और बारूद की गंध, नहीं बल्कि बस्तर में दिखाई देगी मोती (Pearl) की बहार. सुनकर थोड़ा सा आपको आश्चर्य लग रहा होगा. लेकिन कड़ी मेहनत और हौसलों के चलते आने वाले दिनों में बस्तर में मोती की खेती (Pearl Farming) से नदी, तालाब चमकते हुए दिखाई देंगे. प्रकृति का स्वर्ग कहलाने वाले बस्तर में यूं तो प्रकृति ने सुदंरता के साथ ही ऐसा खजाना बस्तर के आचंल में सौंपा है, जिसका उपयोग करके लोग अपनी कठिन राह को आसान बना सकते हैं. बस जरूरत है थोड़ी लगन, मेहनत और आत्मविश्वास की. अगर ये सब आप में है तो आप भी बस्तर की मोनिका की तरह स्वावलंबी बनकर खुद अपनी पहचान बनाते हुए औरों को रास्ता दिखा सकते हैं. बस्तर में आदिवासियों के लिए काम करने वाले संस्था की संचालिका मोनिका आज से बीस महीने पहले बस्तर के नदी तालाबों में सीप की खेती करने का मन बनाया.
बस्तर में सीप की खेती करने का प्रयोग सफल
शुरुआत में सीप से मोती पैदा करने का ये जज्बा ठीक वैसा ही था, जैसा सुनने में लगता है. कई तरह की किताबें और कई तरह की जानकारियों को जुटाने के बाद मोनिका ने अपने साथ काम करने वाले कुछ आदिवासियों की मदद से सीप पालने का काम शुरू किया. इसके लिए स्थानीय संसाधनों की मदद से सीप को पालने का काम शुरू किया गया. इसके लिए छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे प्रांत गुजरात, हावड़ा, दिल्ली, झारखंड से सीपों को मंगाया गया. बाहर से मंगाए सीपों के साथ ही बस्तर के नदी तालाब में मिलने वाले सीपों को एक साथ तालाब में डाला गया. चूंकि सीप पलने और बढ़ने के साथ ही उसमें पैदा होने वाली आबोहवा बस्तर में मौजूद हैं. ढाई सालों के अथक प्रयास के बाद जो चाहा वह मिला. यानी बस्तर में सीप की खेती करने का प्रयोग सफल हुआ.
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सीप की खेती में सफल होने के बाद असली काम था सीप से मोती निकालने का. सीप से मोती निकालना कोई आसान काम नहीं. लेकिन कहते है न जहां चाह, वहां राह. सीप में मोती के टिश्यू को इंजेक्ट करने और 20 महीने के बाद सीप से मोती निकालने का ये पहला प्रयोग बस्तर में सफल हुआ. इस प्रयोग के सफल होने के बाद अब आगे इसकी संभावनाओं को देखते हुए बस्तर के आदिवासियों को जोड़ने की तैयारी मोनिका कर रही हैं.
मोती की खेती बन सकता है कमाई का जरिया
बस्तर में सीप को बस्तरिया जुबान गांजा गुदली कहा जाता है. आम तौर पर बस्तर के लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं. यही वजह है कि बस्तर के नदी तालाबों में बड़ी मात्रा में मिलने वाले सीप के खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में मोनिका के इस प्रयोग से आदिवासी अंचलों के लोग काफी उत्साहित हैं. दरअसल मोनिका श्रीधर के द्वारा बस्तर के लोगों के बीच रहकर ही ये प्रयोग किया गया, ताकि बस्तर के आदिवासी इलाकों के लोग इसमें अपनी अजीविका तलाश सके. इसके लिए जगदलपुर से करीब बीस किमी दूर बस्तर के भाटपाल गांव के किसान मंगलराम के तालाब में बकायदा सीप को पालने का काम किया गया. इस काम में गांव की कुछ बालाओं के साथ ही खुद तालाब मालिक भी जुड़े. बीस महीनों को जो प्रतिफल ग्रामीणों ने देखा है, उससे वे काफी उत्साहित है और मान रहे हैं कि बस्तर के लोगों के लिए ये एक अच्छा जरिया बन सकते हैं.
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सीप में ऐसे पैदा होते हैं मोती
इन सबके आत्मविश्वास को जानने के बाद आखिरी में ये समझ लीजिए कि सीप में से मोती को कैसे पैदा किया जाता है. तालाब में सीप को पालने के बाद सीपों की सर्जरी की जाती हैं. दरअसल, सर्जरी के दौरान सीप मांसपेशियां ढीली हो जाती है और फिर उसके अंदर एक छोटा सा छेद करके रेत का कण डालने के बाद सीप को वैसे ही बंद कर दो दिनों के लिए पानी में रखा जाता है. ऐसा इसलिए कि सर्जरी के दौरान कुछ सीप मर भी जाते हैं. चूंकि सीप की खासियत है कि जब वह मरती है तो अपने साथ कईयों को मार देती है. इसलिए जितने सीप सर्जरी के दौरान मर जाते हैं, उन्हें अलग किया जाता है और जो जिंदा बचते हैं उन्हें एक प्लास्टिक के बकेट में डालकर पानी में छोड़ दिया जाता है. और 20 महीने के बाद जब उसे खोला जाता है तो इस तरह से रेत का कण का मोती के रूप में पैदा होता है. कम लागत और थोड़ी सी मेहनत के जरिए अब बहुत जल्द बस्तर के तालाबों में सीपों की खेती होती दिखाई देगा. कुछ ऐसा होने जा रहा है कल का बस्तर, बस थोड़ा करना होगा इंतजार.
विनोद कुशवाहा, न्यूज 18 जगदलपुर
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FIRST PUBLISHED : February 18, 2020, 08:00 IST
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