मध्य प्रदेश की समस्त भूमि पर राज्य सरकार का अधिकार है, पढ़िए- MP land revenue code 1959
भारतीय संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा अनुच्छेद 31 संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। अब यह एक संविधानिक अधिकार है, मूल अधिकार नहीं जिसका विनियमन साधारण विधि बनाकर किया जा सकता है।
अनुच्छेद 300 क के अधीन यह अधिकार व्यक्ति की संपत्ति को राज्य द्वारा अर्जित किये जाने के लिए केवल एक शर्त है और वह है कि विधि का अधिकार। किस उद्देश्य के लिए तथा क्या उसके लिए कोई प्रतिकार दिया जायेगा और कितना दिया जाएगा इन प्रश्नों का निर्धारण विधायिका के अधीन होगा। संशोधन के फलस्वरूप अब अनुच्छेद 300 क के अधीन संपत्ति के संविधानिक अधिकार में अंतर केवल अन्तर इतना है कि संपत्ति के उपचार की मांग व्यक्ति अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में नहीं कर सकता है वह केवल अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में ही उपचार की अपील कर सकता है।
मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 57 की परिभाषा:-
हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता,1959 की जो कौन-कौन सी भूमि है जिस पर राज्य का स्वामित्व होगा अर्थात जो राज्य सरकार की होगी जानिए। ऐसी समस्त भूमि जो:-1. रुका हुआ तथा बहता हुआ पानी में स्थित हो अर्थात तालाब, नाले आदि।2. कोई भी खाने-खदानें की भूमि।3. कोई भी वन, चाहे वे आरक्षित हो या न हो।4. भूमि की अधो-मृदा(sub soil)।लेकिन कोई भी व्यक्ति की निजी संपत्ति राज्य सरकार में निहित नहीं होगी। यदि ऐसी संपत्ति के बारे में राज्य सरकार या किसी व्यक्ति के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो उसका विनिश्चय राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।
निर्णायक वाद:-1. प्रकाश चंद्र बनाम कन्हैया लाल-मामले में यह कहा गया है कि समस्त कृषि भूमियां राज्य की है और उसमे अपना हित सुरक्षित करने का अधिकार है।2. एच. एच. मेहरताज सुल्ताना नबाव सुल्तान भोपाल बनाम राज्य ऑफ मध्यप्रदेश-मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि व्यक्तियों को ऐसे स्वामित्व में से कुछ अंश अधिकार के तौर पर प्रदान किये जाते है और उसी की वे मांग कर सकते हैं। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)